हाल ही में भाई डा.रूपेश श्रीवास्तव जी की लिखी पोस्ट पढ़ी जिसमें उन्होंने लिखा है कि वे अजमल कसाब जो कि मुंबई पर करे गए आतंकी हमले में शहीद हुए पुलिस के बहादुर स्व. तुकाराम ओंबले द्वारा गिरफ़्तार करवाया जा सका, उसे न्यायपालिका की कछुआ चाल और संवैधानिक लचरपने के कारण खुद मार देना चाहते हैं। मैं ही नहीं हर भड़ासी जानता है कि इस तरह से अराजकता का माहोल पैदा हो जाता है। खुद चीफ़ जस्टिस औफ़ इंडिया ने इस बात को स्वीकारा है कि यदि न्याय प्रक्रिया में इसी तरह से विलंब होता रहा तो जनता कानून अपने हाथ में लेकर खुद अपने फैसले करने लगेगी ये समय आ जाए इससे पहले अदालतों की संख्या बढ़ाई जाए, जजों की भर्ती करी जाए। विचार करिये कि भाई रणधीर "सुमन" जी ने लिखा है कि मारना उचित नहीं है । भाई सुमन जी उस न्यायपालिका का प्रतिनिधित्व करते हैं जो कि हम सभी आम जनों के लिए न्याय का आसरा है , जहां केस इस गति से चलते हैं कि पीढ़ियां गुजर जाती हैं। क्या न्याय प्रक्रिया की इस गति के विषय में पुनर्विचार करने की जरूरत नहीं है? संविधान को समीक्षा की जरूरत नहीं है?
राजनैतिक चुप्पी साधे बिना बताइये कि आपने जो लिखा कि मारना उचित नहीं है(मैं मानती हूं कि शायद गोडसे द्वारा गांधी को मारा जाना भी कुछ ऐसा ही रहा होगा ज्यादा नहीं पता तो लिखना उचित नहीं है पर वर्तमान परिस्थिति तो खुद झेली है) तो क्या उचित है? उसपर जनता को चूस कर बनाया करोड़ों रुपया व्यय कर देना? उसके लिये जेल के भोजन संबंधी नियम बदल देना ताकि वो रोज़ा रख सके? या फिर हर बार नये नय वकीलों के सिखाने पर अलग-अलग बयान दे सके?
आज आम आदमी जिसका भड़ास प्रतिनिधित्व करता है आपको मानद न्यायाधीश की कुर्सी पर बैठाता है जरा इस प्रकरण का निर्णय दीजिये। आप कार्यवाही से वाकिफ़ हैं, सबूतों और गवाहों की भी खबर होगी या आप भी पंद्रह से बीस साल लेंगे इस मामले में? इसके बाद राष्ट्रपति से माफ़ी का विकल्प तो खुला ही रहेगा।
जिस लोकसंघर्ष की आप बात करते हैं उसी लोक(आमजन) का संघर्ष किस रणनीति के तहत हो जरा हम भी तो समझें। शिवसेना द्वारा उसके पुतले को प्रतीकात्मक फांसी देना भी कानूनन जुर्म है या नहीं???
अजमल कसाब को मारना उचित नहीं है। ये सवाल है या जवाब????
जय जय भड़ास
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