शिवेश श्रीवास्तव
बस मिले 25 बरस
आज से 25 बरस पूर्व गैसकांड की उसभय भया भय रात को जगदीश नेमा पुराने शहर के तलैया क्षेत्र में अपने घर के पटियों पर बैठे दोस्तों के साथ बतिया रहे थे। लेकिन उस रात की दासतां कुछ और ही थी रोज देश, शहर और राजनीति के तमाम मसलों पर चर्चा करने वाले जगदीश और उनके सभी साथियों को उस रात किसी अनहोनी का अंदेशा हो रहा था और हुआभी यही। वे कहते हैं रात 9 साढ़े नौ का वक्त रहा होगा और उन्हें भागते -दौड़ते लोग नजर आने लगे। जगदीश और उनके मित्रों ने जानने की कोशिश की, लेकिन बदहवास लोग कुछ भी ठीक से बताने की स्थिति में नहीं थे। आदमी, औरत बच्चे, आंखों से बहता पानी, भागो भगो ये चीख पुकारें आखिर माजरा क्या है कोई नहीं समझ पा रहा था। किसी ने कहा आग लग गई है, तो किसी का कहना था कि कहीं दंगे हो गए हैं। इसी आपाधापी में रात गुजरती गई। जगदीश और उनके मित्र भी सच जानने के लिए घर वालों को बगैर बताए काफी दूर निकल आए भागते लोग लाशों में तब्दील होते जा रहे थे और काली घिरती रात में जगदीश और उनके मित्र मौत का यह अजीब तांडव देखते रहे और लोगों को सँभालने का पूरा प्रयासभी करते रहे। अंधेरे को चीरकर सूरज ने अपनी किरणें बिखरार्इं, लेकिन दूसरी सुबह भोपाल के लिए सुप्रभात नहीं थी, बल्कि ऐसा लग रहा था कि प्रकृति ने सूरज को लाशों के ढेर पर रोशनी करने के लिए भेजा हो कि देख लो आज मानव की औद्योगिक क्रांति का एक विनाश यह कहना है जगदीश का। जब तक उन्होंने सच जाना कि यूनियन कार्बाइड की गैस का यह विनाशकारी तांडव है, तब तक काफी देर हो चुकी थी। दरअसल यह प्र्भभित इलाके की ओर से पुराने शहर की ओर भागे हुए लोग थे, जो उस औद्योगिक इकाई से दूर अपनी जान बचाने के लिए छोला, करौंद, भोपाल टाकीज, बस स्टैंड से भागते हुए तलैया, कमला पार्क और मोती मस्जिद तक आ पहुंचे थे, लेकिन गैस का जहर तो उनकी सांसो में समा चुका था और पूरे शहर की फिजा में ·ाी अब धीरे-धीरे घुल चुका था। सड़कों पर लाशों के ढेर थे और आज जगदीश नेमा व उनके दोस्तों के लिए एक बड़ा और ·ायानक अंतिम संस्कार करने की चुनौती थी, जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी की थी। कोई इस काम के लिए आगे आने को तैयार नहीं हो रहा था, लेकिन ईश्वर ने जगदीश और उनके मित्रों को प्रेरणा और ताकत दी। इन लोगों ने अपने हाथों से मृत लोगों को चिता में अग्नि दी और सुपुर्दे खाक किया। आम आदमी शमशान और मरघट में तीन घंटे भी नहीं ठहर सकता, लेकिन इन्होंने लगातार तीन दिनों तक भूखे -प्यासे रहकर इस नेक काम को अंजाम दिया।
लौटै घर
सैकड़ों लाशों का संस्कार करने के बाद जगदीश और उनके मित्र घर लौटे, तब जाकर घर वालों की जान में जान आई। पूरे शहर में मातम और शौक की लहर थी, लेकिन जगदीश व उनके मित्रों का यह साहस देखकर वह काली रात भी हैरत में थी और फिर से शहर को एक बार यकीन हुआ कि अभी दुनिया में मानवता और जनकल्याण की भावना बाकी है। जगदीश बताते हैं कि जब उनके इस कार्य के बारे में सभी ने जाना तो देश-विदेश की तमाम बड़ी मैगजींस और पत्र-पत्रिकाओं ने उन्हें अपने कैमरे में कैद किया और विश्वप्रसिद्ध टाइम्स मैगजीन व डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माताओं ने उनके साक्षात्कार लिए और घटना के बारे में जितना वे कुछ जानते थे उन्होंने सभी को बताया। जगदीश बताते हैं कि आज भी उनके मित्र बताते हैं कि ·भारत की इस त्रासदी को अमेरिका और ब्रिटेन जैसे मुल्कों में फिल्मों और मैगजींस व चित्रों के माध्यम से बताया जाता है और वहां की आर्ट गैलरियों में भी जगदीश की सेवा कार्य के बड़े-बड़े चित्र लगे हैं। लेकिन जगदीश को न तो इससे खुशी है और न कोई बड़ी उपलब्धि का गुरूर। उन्हें तो मलाल है कि इस औद्योगिक त्रासदी के पीड़ित लोगों को 25 वर्ष बाद भी न्याय नहीं मिल पाया है। सरकार के प्रयासों से वे खुश नहीं हैं। वे कहते हैं कि लोगों के हक का मुआवजा बीच में ही गायब हो गया। गैस पीड़ितों के नाम पर खुले अस्पतालों में उपचार व दवाओं का आभाव है। लोग अभी भी उस भयानक गैस की विकृतियों से जूझ रहे हैं। इनके नाम पर शुरू हुई संस्थाएं भी अपना उल्लू सीधा कर रही हैं।
उनका प्रयास
जगदीश से मिलने पर आपको अहसास होगा कि यह शख्स सड़कों पर पैदल नंगे पैर चलता है, लंबी दाढ़ी हाथ में लाठी और अपनी धुन में दीवाना। वे लेखक और शायर व भजन गायक ·भी हैं। शहर के सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यों में बढ़-चड़कर हिस्सा लेने वाले जगदीश इस त्रासदी से पीड़ितों के लिए न्याय की दरकार रखते हैं। वे न तो राजनीतिक चपलता जानते हैं और न ही सियासी दांव-पेंच। वे अपनी सच्चाई और अच्छाई के बल पर पीड़ितों के पक्ष में यह जंग जीतना चाहते हैं। इसके लिए वे पैदल यात्राएं करते हैं और प्रदेश के विविध धार्मिक स्थल पर निकल पड़ते हैं नंगे पैर। पिछले दिनों द्वारकाधीश की पैदल यात्रा करके आए हैं। उनका ढाई माह का यह सफर था लेकिन उनका नाम किसी रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है और न ही इसकी उनको चाहत है। वे कहते हैं कि अब उनका यकीन इंसानों से उठ गया है और बस ईश्वर से उन्हें आस है। इसी उद्देश के लिए वे इस तरह की पद यात्राएं करते हैं ताकि गैस कांड में मृत हुई आत्माओं को शांति मिल सके और पीड़ितों को न्याय मिले, क्योंकि उस खौफनाक मंजर को उन्होंने अपनी आंखों से देखा है, जिसे वे जीवनपर्यंतभूल नहीं सकते। आज गैसकांड की 25 भी बरसी पर जगदीश का सिर्फ इतना ही कहना है कि विषैली गैस के बदले में पीड़ितों को कुछ नहीं मिला बस मिले हैं ये 25 वर्ष और पीड़ाएं।
No comments:
Post a Comment