उत्तर रेलवे के आधिकारिक सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इन ट्रेनों के बाहर-भीतर विनाइल रैपिंग के जरिए विज्ञापन किए जाएंगे। एक साल पहले कुछ राजधानी ट्रेनों में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर यह योजना लागू की गई थी। इस योजना के तहत पीकाक मीडिया लिमिटेड चलती रेलगाड़ी में ‘आन बोर्ड क्लीनिंग सर्विस’ के अलावा शौचालयों में लिक्विड साप डिस्पेंसर, नैपकिन आदि उपलब्ध कराएगी। बदले में उसे विज्ञापन का अधिकार मिलेगा।
सूत्रों के मुताबिक रेलवे को स्वर्ण शताब्दी के लिए प्रति रैक 50 लाख रुपये सलाना मिलेगा। दूसरे साल इस राशि में 10 फीसदी, तीसरे साल 15 फीसदी, चौथे साल 20 फीसदी और पांचवे साल 25 फीसदी की वृद्घि हो जाएगी। इसी तरह राजधानी में प्रति रैक 33 लाख 400 रुपये का भुगतान सालाना किया जाएगा। दूसरे, तीसरे, चौथे और पांचवे साल में क्रमश: 10, 15, 20 और 25 फीसदी की वृद्घि होगी। रेलवे को इससे पांच वषों में करीब 17 करोड़ रुपये की आमदनी होगी, साथ ही यात्रियों को बेहतर सुविधा भी मिलेगी।
इस तरह की योजना पर सबसे पहले दक्षिण रेलवे ने काम किया था। तब कुरकुरे एक्सप्रेस के नाम से रेलगाड़ी चलाई गई थी। इसी को बाद में कुछ अन्य भाग में भी आजमाया गया। इसके बाद रेलवे बोर्ड ने 30 जुलाई 2009 को एक सकरुलर जारी कर देश भर लागू किया था।
1 comment:
वस्तु या सेवा की गुणवत्ता को देखते हुए ही इन्हें विज्ञापन लेने चाहिए .. वैसे पैसे कमाने के लिए इन्होने जोरदार आइडिया लगा लिया .. पर क्या सामाजिक समस्याओं के उन्मूलन के लिए कभी ऐसा सोंच सके थे .. जबकि अभी भी आवश्यकता उसी की अधिक है .. कॉरपोरेट दुनिया की तरह ही सरकारी संस्थाएं भी लाभ कमाने का ही जरिया बन जाएं .. तो जनता से टैक्स क्यूं लेती हैं ये .. सारे खर्चे खुद निकाले !!
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