अचानक रात में दो बजे मोबाइल पर संदेश आने का संकेत हुआ तो मरीज़ से बात रोक कर मोबाइल देखा कि इस समय किसका संदेश है और ऐसी क्या इमर्जेंसी है? लीजिये प्रस्तुत है स्वयंभू बुद्धिजीवी संजय सेन सागर की मेरे साथ संदेश वार्ता की ज्यों का त्यों वर्णन जो कि मेरे मोबाइल पर सुरक्षित है--
संजय सेन - नमस्कार, यंगिस्तान मीडिया प्राइवेट लिमिटेड नये वर्ष पर हार्टबीट प्रिन्ट पत्रिका का प्रकाशन करने जा रहा है। आपसे अनुरोध है कि युवा वर्ग से संबंधित लेख, जानकारी, पोएम, स्टोरी हम तक पहुंचाएं ईमेल करें
मैं - यशवंत सिंह को तेल मालिश करके क्या पाया? प्रभु तुम्हे सदबुद्धि दे। हमसे कभी उम्मीद न रखना कि भड़ासी तोलुओं को सहयोग करेंगे।
संजय सेन - माफ़ कीजिये वो मैसेज बुद्धिजीवियों के लिये था पता नहीं आपका नंबर कैसे बचा रहा। नहीं आपसे उम्मीद भी नहीं है शुभरात्रि जै हिदुस्तान जै यंगिस्तान
मैं - ऐसे माफ़ नहीं करूंगा सुबह पहले तुम्हारी और बुद्धिजीवियों की भड़ास पर ली जाएगी उसके बाद देखते हैं। बुद्धि होकर भी गलती कर दी :)
संजय सेन - अब एक काम कर जो बने सो कर लेना, भोंकना बंद कर। भड़ास में देखेगा मुझे तू। चल अब मैसेज करना बंद कर नींद आ रही है।
मैं - आ गया अपनी औकात पर। हम भौंकते हैं और काट भी लेते हैं पर तेरी तरह चाटा-चूसा नहीं करते। नींद तो हम उड़ाएंगे तेरी। तूने शुरू किया है।
अब आप सब सोच रहे होंगे कि ये मुझे क्या हो गया है जो कि मैं किसी के संदेश का इतना कटु प्रतिसाद दे रहा हूं। बात ज्यादा पुरानी नहीं है जब इसी संजय सेन ने भड़ास के हत्यारे यशवंत सिंह को तेल लगाते हुए हमारा अकारण विरोध करना शुरू करा था लेकिन अब चूंकि बनियागिरी पर उतर आया है तो सोचा होगा कि अपनी दुकान की एडवर्टाइज़ सभी मोबाइल नंबरों पर कर दी जाए। ये साले प्रोफ़ेशनल लोग बड़े ही हरामी किस्म के होते हैं हर रिश्ते को कैश करने के चक्कर में रहते हैं, सब बेच कर टके कराना ही इनका उद्देश्य रहता है, ये आत्मा बेच देते हैं, ईमान बेच देते हैं , रिश्ते बेच देते हैं और न जाने क्या क्या....। रात को दो बजे मैं अपने मरीजों की सेवा में हूं तब इस तोलूराम को बनियागिरी सूझ रही है कि साला अपनी दुकान की मार्केटिंग कर रहा है। हो सकता है कि ऐसा कोई संदेश आप में से किसी के पास भी आए। अब ये सीख गया है कि नाम के छपास की प्यास रखने वाले चूतियों की इस देश में कमी नहीं है तो अब ये प्रकाशन में उतर आया है। इस चिरकुट को लग रहा था कि समय के साथ सब बदलता है तो डा. रूपेश श्रीवास्तव भी बदला होगा और इस तोलूराम के प्रति मित्रता का भाव रख कर जैसे सब नये काम के प्रारंभ की शुभकामना देते हैं वो भी देगा लेकिन हमारी फितरत नहीं बदलती जो थे वो हैं और मरते दम तक रहेंगे, तुम हो जो गिरगिट की तरह रंग बदलते रहते हो। जो चूतिये नाम छपवाने को बौराए होंगे वो इसे कंटेंट भेजते रहेंगे और ये उनकी दम पर अपनी दुकान चलाता रहेगा। इस ढक्कन के बारे में जानना हो तो भड़ास की शुरूआती पोस्ट्स देखें तो आप जान जाएंगे कि ये कितना बड़ा मक्कार और धूर्त है। आपने देखा कि किस तरह अपने संदेशों में इसे कुरेदने पर अपनी असल औकात पर आ गया ये चिरकुटहा प्रकाशक
जय जय भड़ास
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