जवाब दर सवाल है की इन्कलाब चाहिए

जी,

भारत एक लोकतान्त्रिक कल्याणकारी देश हैहमारे देश की व्यवस्था के तहत विधायिका कानून बनती है कार्यपालिका उसको लागू कराती हैन्यायपालिका विधि के अनुसार फैसला देने का काम करती है अपराधिक विधि में उस व्यक्ति के द्वारा किये गए अपराध के अनुसार परिस्थितियों के हिसाब से सजा देने का कार्य करती हैइस व्यवस्था को किसी विशेष मामले में समाप्त नहीं किया जा सकता हैराष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की हत्या नाथूराम गोडसे ने की थीमुकदमा चला अभियोजन पक्ष ने गवाही सबूत न्यायलय के समक्ष प्रस्तुत किये और वाद का फैसला हुआअमेरिकन साम्राज्यवाद को चुनौती देने वाली एक मात्र महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी की हत्या साम्राज्यवादियों ने कुचक्र करके करवा दी थीअभियोजन पक्ष ने न्यायलय में गवाही सबूत दिए अभियुक्तों ने अपनी सफाई दी और वाद का निर्णय हुआइधर लगभग 15 वर्षों से न्यायपालिका का काम समाप्त किया जा रहा है । अपराधिक तत्वों के नाम पर अपराधियों और गैर अपराधियों मुठभेड में मार गिराने का परिद्रश्य सामने आ रहा है । बॉम्बे का ही एनकाउन्टर विशेषज्ञय श्री दया नायक ने कितने नवजवानों को पकड़ कर मार डाला है और फिर जेल में उसको भी जाना पड़ा । आप की जानकारी के लिए यह लिख रहा हूँ कि मुठभेड के नाम पर पूरे देश में पैसे वाले लोगों ने हजारो नवजवानों को सरकारी एज़ेंसियों से मिलकर मरवा डाला है । कई मामलों में जिनके घरों के लोग मरे थे वह लोग आर्थिक रूप से काफी समर्थ होने के कारण जांच कराई तो मुठभेड करने वाले लोग पकडे गए और सजा भी हुई । पुलिस को किसी अपराध की विवेचना का अधिकार होता है । पूरे देश में पुलिस की स्तिथि बद से बदतर हो गयी है । इनाम-इकराम के चक्कर में वह क्या करने लगे इसका कोई भरोसा नहीं रह गया है । मुंबई आतंकी घटना ने भारतीय विदेश नीति को पलट कर रख दिया है । भारतीय विदेश नीति गुट निरपेक्ष विदेश नीति थी । इस घटना के बाद हमारी विदेश नीति अमेरिका परस्त हो गयी है । मैं कसाब का समर्थन नहीं कर रहा हूँ । विधि अपना काम करेगी । धैर्य के साथ प्रक्रिया पूरी करना आवश्यक है । मुंबई आतंकी घटना में आरोप पात्र दाखिल होने के पश्चात् हेडली प्रकरण चल रहा है और देखिये अभी कितने प्रकरण सामने आते हैं । हेडली सी.आइ.ए का मुखबिर या एजेंट निकला है । मुंबई घटना के बाद अमेरिका की खुफिया एजेंसी ऍफ़ .बी.आइ व इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद खुले आम कार्य कर रही है यही लोग मुंबई आतंकी घटना के जिम्मेदार हैं । पकिस्तान अपने उदय के बाद अमेरिकन साम्राज्यवाद के पाले आइ .एस.आइ अमेरिकन साम्राज्यवादी शक्तियों से ही गवर्न होती है लेकिन हम लोग मुख्य अभियुक्त को गले लगाये हुए हैं और भाड़े के टट्टू कसाब को मरने व मारने के लिए कानून को हाथ में लेने की बात कर रहे हैं । पकिस्तान हो या हिन्दुस्तान भूख और प्यास को हल करने की दिशा में कोई कार्य नहीं हो रहा है । बड़े आदमी बड़े होते जा रहे हैं , गरीब आदमी भुखमरी की ओर अग्रसर हो रहा है । भूख की ज्वाला के लिए उससे कुछ भी कराया जा सकता है । मुख्य समस्या भूख और प्यास की है ।
लोकतंत्र में जनाक्रोश का बहुत महत्त्व है लेकिन जब व्यवस्था सड़ गल गयी हो तो व्यवस्था परिवर्तन आवश्यक है । इसिलए मैंने शीर्षक चुना है : जवाब दर सवाल है की इन्कलाब चाहिए । विषय बहुत लम्बा है आशा है आप संवाद जारी रखेंगी जितना मुझे आता है उसके हिसाब से आपको संतुष्ट करने की कशिश करूँगा।

सुमन
loksangharsha.blogspot.com

3 comments:

डा.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

आशा है कि आप लोग इस बात की गहराई को समझ कर विमर्श को आगे बढ़ाएंगे। असली शत्रु इतने घुलमिल गए हैं हम आप में कि दिखाई ही नहीं देते। ये जो जनाक्रोश है वो इन्कलाब का बीज ही है जो कि अभी थोड़ा सही दिशाबोध न होने के कारण हिंसक सा प्रतीत होता है। रही बात मेरी तो मैं तो आम आदमी की जुबान हूं जो बोला वो दिल से बोला। नैसर्गिक न्याय जंगल का न्याय है या नहीं इस विषय पर चर्चा करिये। हमारा संविधान और विधि का शासन के साथ लोकतंत्र जैसे बड़े शब्द आजकल बस आम आदमी को झुनझुना ही प्रतीत हो रहे हैं। अब इत्ता बड्डा दिल किधर से लाऊं कि कसाब को छोड़ कर साम्राज्यवाद और उसके पिट्ठुओं को देख सकूं और उनसे लड़ूं.......
जारी रहिये
जय जय भड़ास

अजय मोहन said...

कोई मसीहा नहीं आएगा बदलाव लाने के लिये....
इंकलाब खुद नहीं आएगा, उसे पकड़ कर अपने भीतर से खींच कर निकालना पड़ता है। यदि इस इंकलाब की शुरूआत हिंसक हो और कसाब की हत्या इस बात का शंखनाद मात्र हो तो इसमें हर्ज ही क्या है। क्रान्ति शान्तिपूर्ण रहेगी ये दशा सर्वमान्य नहीं रहती। हमारा संविधान भगवदगीता और कुरान शरीफ़ की तरह हो गया है जिसे लोग पूजते हैं अमल में नहीं लाते। व्यक्तिनिर्माण आवश्यक है इसमें कुछ पुरानी मान्यताएं टूटेंगी, कुछ पीले पत्ते शाखों से गिरेंगे, पुराने दरख्त चरमरा जाएंगे। जनता दस हज़ार की संख्या में इकट्ठा होकर यदि जेल पर हमला करके कसाब का वध कर दे तो ये निःसंदेह अराजकता का नमूना होगा लेकिन क्या ये जनता बाबरी मस्जिद ध्वस्त करने के लिये ही उकसावे में आ जाती है और बाकी इनका कोई आक्रोश नहीं है तो ये सब के सब षंढ हैं,कापुरुष हैं। मैं डा.रूपेश के अंदाज़ को सैल्यूट करता हूं वो बुद्धिमान हैं और वीर भी... साम्राज्यवाद को जवाब देने की शुरूआत कैसे और कहां से हो ये बताइये, क्यों न यहां से ही हो क्योंकि उस साम्राज्यवाद के पिट्ठुओं को पता तो चले कि आम आवाम बग़ावत कर उठा है और ये इंकलाब की शुरूआत है....
जय जय भड़ास

मनोज द्विवेदी said...

AJAYA MOHAN JI APKI BATE SATYA HAI AUR HAME BHI AISA HI SOCHANA CHAHIYE

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