नरेंद्र मोदी की गुंडागर्दी !

गुजरात में मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक और फरमान जारी कर दिया, लोगों को अपना वोट डालना ही होगा नहीं तो सजा भुगतने के लिए तैयार हो जाइए. लोकतंत्र में अगर शासक फरमान जारी करने लगे, अपना फैसला आम जनों पर थोपने लगे तो वह लोकतंत्र नहीं अपितु निरंकुश तानाशाह हो जाता है और नरेंद्र मोदी की तानाशाही, निरंकुशता और गुंडागर्दी कोई नयी बात नहीं है. 


आज जब हमारे देश के आम जन गंभीर वित्तीय संकट से गुजर रहे हैं तो ऊपर से सरकारी फरमान मानो जले पे नमक का काम करे. महगाई अपने चरम पर है और लोगों की आमदनी में कोई बढोतरी नहीं और सरकार तरह तरह के बहाने के साथ अपना पल्ला झाड़कर नया फरमान जारी करे तो क्या इसे निरंकुशता नहीं कहेंगे. 


मोदी जी आज लोगों को उनके कर्तव्य की और ध्यान दिलाकर जबरदस्ती मतदान में शामिल करवाने का विधेयक पास करते हैं ऊपर से चेतावनी की अगर मतदान में हिस्सा ना लिय तो कई प्रकार के बंधन जो आपको मिलने वाले सहूलियत से परे करेगा. ना आप लाइसेंस के हकदार होंगे ना सरकारी सुविधा के यहाँ तक कि आप सरकारी नौकरी के लिए भी अयोग्य हो जायेंगे. 


मोदी जी कि योग्यता कि कसौटी से सारा देश वाकिफ है कि महाशय नरेंद्र मोदी राम के नाम पर जातिगत वैमनस्यता फैलाने में सबसे आगे रहे हैं, राम मंदिर बाबरी मस्जिद काण्ड हो या गोधरा, फर्जी एनकाऊंटर का मामला हो या फिर गुजरात में मुसलमानों पर प्रसाशनिक अत्याचार मोदी ने सभी जगह खुल कर गुंडागर्दी मचाई. जी हाँ मोदी जी वो ही नाम हैं जिस मुख्यमंत्री को अमेरिका ने उनके कुकृत्यों के कारण वीसा देने से इनकार कर दिया, जो सभ्य मनुष्य ना बन सका वो भारतीयता का पाठ पढ़ा रहा है, लोकतंत्र के मायने बता रहा है.


लोकतंत्र में सम्पूर्ण मतदान होना चाहिए और इसके लिए प्रशाशनिक व्यवस्था पहले दुरुस्त होनी चाहिए मगर जहाँ निरंकुश शासक हो वहां सिर्फ फरमान ही तो निकलते हैं. 


मतदान के लिए सम्पूर्ण व्यवस्था यानी कि मतदाता सूची सही होनी चाहिए, पहचानपत्र उपलब्ध होनी चाहिए और मतदान के लिए सभी व्यवस्था होनी चाहियी मगर सभी जानते हैं कि अगर मतदाता सूची में नाम है तो पहचानपत्र नहीं, पहचानपत्र है तो मतदाता सूची में नाम नहीं. यदि दोनों है तो अशुधता की कोई जिम्मेवारी नहीं. इसी बहाने आपको मतदान नहीं देने दिया जाता और ये सभी मतदान में हो रहा है. 


बेहतर हो कि मोदी जी राज कर्तव्य को निभाएं (जैसा कि वाजपेयी जी ने कहा था कि इसमें वह असफल रहे हैं) और लोगों के हित के इए राज धर्म पर चलें और आम जनता को रोजी रोटी आवास के साथ इस बदती महगाई से निजात दिलाने पर विचार करें, इस तरह के शिगूफे से आम जन के पेट नहीं भर सकते और ना ही मुद्दे ख़तम हो सकते हैं. 

35 comments:

Suresh Chiplunkar said...

बहुत खूब… रोमेश भण्डारी और सिब्ते रजी की भाषा बोल रहे हो यार…। अगर यही कदम कांग्रेस के "भोंदू युवराज" ने उठाया होता तो समस्त चमचे-भाण्ड-गवैये गा-गाकर इसके फ़ायदे गिना रहे होते… लेकिन चूंकि मोदी ने पहली बार कोई क्रान्तिकारी कदम उठाया है तो आलोचना तो करना पड़ेगी, वरना सेकुलर कैसे कहलायेंगे…।

रही बात मोदी की, उन्होंने जितना काम गुजरात में किया है, उसका आधा भी यदि कांग्रेसी मुख्यमंत्री अपने राज्यों में करवा लें तो जनता सुखी हो जाये…

उम्दा सोच said...

लोकतंत्र में वोट डालना अत्यंत ज़रूरी काम है मोदी जी का ये कदम सराहनीय है!

ये कुछ ऐसा ही है की गाडी में हेलमेट पहन कर आप नहीं बैठे तो चोट आप खाओगे.... पर सरकार लगाम कसती है वैसे ही ये कदम आप के हित में ही है !

वैसे वोट न डालने वाले को सज़ा क्या है ??? संजय गांधी की तरह मोदी जी भी पकड़ कर उनकी नसबंदी करवा देंगे क्या ???

sahespuriya said...

@ suresh chipku
तो फिर करवा लो ना मध्यप्रदेश का विकास, अरे यार कॉमेंट करने से पहले दिल साफ़ रखा करो. राजस्थान मैं भी तो बी जे पी की सरकार रही है, यू पी मैं भी तो आप का राज रहा है कितना विकास किया ज़रा हमें भी तो पता चले ? बस कॉंग्रेस को कोस कर हिन्दुत्वा का प्रेम दिखाना चाहते हो,ये क्यूँ भूल जाते हो राजनीति के हमाम मैं सब नंगे हैं, और फिर आप की पार्टी तो बनियो की हमदर्द है

पी.सी.गोदियाल said...

सुरेश जी की बात से पूर्ण सहमत ! मुसीबत यह नहीं कि मोदी जी ने तानाशाही दिखाई, मुसीबत हमारे उन तथाकथित सेकुलरों की यह है कि अगर १००% वोटर के लिए वोट देना अनिवार्य कर दिया गया तो फिर इनके उस तथाकथित "वोट बैंक" की तो अहमियत ही ख़त्म हो जायेगी, फिर इनको पूछेगा कौन ? इसी बात पर दुबले हुए जा रहे है !

vineeta said...

मेरे ख्याल से मोदी जी ने बिलकुल सही किया है। यह जनता की भलाई के लिए उठाया गया कदम है। हो सकता है इससे मोदी की सरकार ही गिर जाए लेकिन फिर भी उन्होंने जनमत के लिए यह सही कदम उठाया है। ये काम अगर सोनिया मैडम करती तो शायद अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार पाने की हकदार (!) हो जाती। मोदी कठोर ही सही लेकिन सही शासक हैं।

अनुनाद सिंह said...

मैं भी इसे गलत कदम मानता हूँ। इससे मुसलमानों का अहित होगा। सभी हिन्दू वोट देंगे तो कांग्रेस का तो बंटाधार हो जायेगा। सांख्यिकी कहती है कि जब भी ५५% से अधिक मत पड़ते हैं तो कांग्रेस बेचैन होने लगती है। मुसलमानों का वोट तो वैसे ही १००% से भी अधिक रहता है और थोकबन्द होता है।

आपकी 'गुण्डागर्दी' की परिभाषा बड़ी विचित्र है!!!

Deepak Sharma said...

5 साल में एक काम तो अनिर्वाय रूप से कर लो भाई, पसंद नहीं है तो हरा देना, 55—60 प्रतिशत वोटिंग के बाद जो जीत के आप पर शासन करता है उस को कितने प्रतिशत वोट मिले और आप पर शासन करता है क्या सही लोकतंत्र होगा..

संजय बेंगाणी said...

लोगों को गुण्डागर्दी लगेगी तो वोट डाल कर मोदी को बाहर का रास्ता दिखा देगी.

वैसे मोदी को गुण्डागर्दी करने का हक कतई नहीं है, यह तो लाल झण्डो को ही शोभा देता है.

Suresh Chiplunkar said...

@ sahespuriya - जरा अनुनाद का कमेंट पढ़ लो, वाकई यदि मतदान अनिवार्य हो गया तो कांग्रेस के लिये बड़ी मुश्किल हो जायेगी… क्योंकि 50% नपुंसक वोटर जो वोट नहीं डालते उनकी नसों में भी जबरन ही सही जोश आयेगा, फ़िर मामला इस पार या उस पार, जनता जिससे अधिक नाराज़ होगी उसका पटिया गोल, फ़िर क्या दिक्कत है? फ़िर इस प्रावधान में "निगेटिव वोटिंग" (इनमें से कोई भी नहीं) वाला बटन भी होगा और यदि इस बटन पर अधिक वोट पड़े अर्थात सारे उम्मीदवार निकम्मे और नालायक हैं। पहल बहुत बढ़िया है, सिर्फ़ मोदी ने शुरु की है इसलिये पेट दर्द हो रहा है लोगों को…

उम्दा सोच said...

सुरेश चिपलूनकर भाई से सहमती १००% है !

sahespuriya said...

@ sureshchipku
तो फिर दीजिए ना वोट,हमे अगर वोट का अधिकार मिला है तो उसे इस्तेमाल करना है आपको किसने रोका था, कि क़ानून बनाए जाए रहे हैं,लेकिन क्या आपको नही लगता कि जनता पर क़ानून ठोकने से पहले, नेताओ को क़ानून के दायरे मैं लाते,की सारे एम पी और एम ऐल ए संसद या विधानसभा मैं रोज़ाना हाज़िर हो, और क्या ही अच्छा होता अगर ये क़ानून बनता कि जनसेवक अपने इलाक़े मैं जनता के बीच जाएँ, मगर आपको तो मोदी का समर्थन करना है,सिर्फ़ इसलिए की इससे आप लोग 'देशप्रेमी' साबित होते है,ज़रूरी नही कि मोदी की हर बात सही हो, कभी कभी सत्ता का नशा ज़्यादा हो जाता है तो ऐसे ही फरमान जारी होते हैं, अभी आप देखते रहिए कल को कहीं उसका निशाना आप ही ना हो? क्योंकि नशे मैं चूर आदमी कुछ भी कर सकता है.

निर्मला कपिला said...

रजनीश जी आपसे सहमत हूँ। एक वोट दालने के लिये किस तरह मुश्किल आती है पहले उस तरफ ध्यान दिया होता । लोगों को घर बैठ कर वोटिंग कार्डज़ उपलब्ध करवाये होते तब ऐसा फर्मान जारी करते । मगर इनकी दादागिरी कौन नहीं जानता। धन्यवाद्

rohit said...

बंधू यह देश तो गोरी चमड़ी के गुलाम लोगो का बन गया है युवराज जो करे जो कहे वोही सही है क्या चाटू करीता की पराकास्ठा है जो सही है उसे गलत कहते है सर्कार मतदान के दिन जो छुट्टी देती है उसे लोग घर पर बैठ कर ख़राब करते है मतदान को अनिवर्य कर नरेन्द्र मिडी जी ने सही किया है.
भाई मोदी जी ने यह तो नहीं कहा है की सिर्फ उन्हें ही अपना मत दीजिये . दिमाग की खिड़की खोल कर लिखना सीखिए

Suresh Chiplunkar said...

@ sahespuriya -

भाई हमने तो हमेशा अपने वोट का इस्तेमाल किया है, (सिर्फ़ एक बार को छोड़कर जब भाजपा ने कंधार की शर्म देश पर थोपी थी तब सजा के तौर पर उसे वोट नहीं दिया था), रही बात वोटिंग में होने वाली तकलीफ़ों(?) की, तो जो उच्च-वर्ग की जनता मॉल में बर्गर की लाइन में आधा घंटे खड़ा हो सकती है, लेकिन 5 साल में एक बार वोटिंग के लिये लाइन में नहीं लग सकती…
और सबसे अन्त में यह कि थोड़ा पढ़ना-लिखना भी सीख ही लीजिये क्योंकि आपको मेरा नाम भी ठीक से लिखना नहीं आ रहा… @ sureshchipku लिख रहे हैं…

रंजनी कुमार झा (Ranjani Kumar Jha) said...

भाई रजनीश,
यहाँ के अधिकतर टिप्पणियों से लगते हैं कि ये लोग भा ज पा और संघ के निष्ठावान कार्यकर्ता हैं, इनकी निष्ठा को प्रणाम मगर इन्होने मूल मुद्दे के बजाय सिर्फ मोदी को पकड़ लिय ये बात राजनीति के अलावे कुछ नहीं लगती. आपने सही मुद्दा उठाया है आज का सबसे अहम् मुद्दा आम लोगों के लिए महगाई है, और इसी मुद्दे को दबाने या छुपाने के लिए प्रान्त कि सरकार हो या केंद्र की नए नए शिगूफे लाती है कि लोगों का ध्यान बंटे.
प्रश्न नि:संदेह राज धर्म का है.
आपको बधाई

अग्नि बाण said...

भाई ,
सुरेश जी हों या उम्दा सोच, पी सी गोंदियाल या विनीता जी. अनुनाद जी या संजय बेंगानी और रोहित जी सभी ने ऐसा कैसे मान लिया कि बात सिर्फ मोदी या भा ज पा की है. फिर से यहाँ कोई हिन्दू गीत गा रहा है तो कोई कांग्रेस पर निशाना साध रहा है कैसे निरा मुरख हैं ये सभी.
अरे पड़े लिखे ब्लोगरों बात सिर्फ आम लोगों की है जिसके पास महगाई से लड़ने कि कुव्वत नहीं है और सरकार इस तरह का ढिढोरा पीट लोगों को बरगलाने की कोशिश कर रही है. चाहे गुजरात का नरेंद्र मोदी या दिल्ली की शिला दीक्षित या फिर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सभी के सभी अपने राज धर्म से भाग रहे हैं, आम लोगों के लिए सवाल कौन उठा रहा है.
राजनितिक गुटबंदी से उठ कर लोगों के बारे में सोचो

रंजन said...

मतदान अनिवार्य करना अच्छा कदम है.. होना भी चाहिए.. पर भारत जैसे देश में जंहा माइग्रेशन इतना ज्यादा है.. अशिक्षा है.. इसे लागू करना मुश्किल है.. सोचिए एक मजदूर किसी दूसरे राज्य में मजदूरी करने जाता है.. १००-१५० रु रोज कमाता है और आप कहे की भाई उस दिन अपने राज्य में जाकर वोट दे आओ.. ओर नहीं दे पाया तो क्या सजा दोगे कैसे दोगे... अफसर जज बनकर शोषण करगें.. रिश्वत मांगेगे..

अभी तो हमारे यहाँ मतदाता सूचिया सही नहीं होतो.. सेकडो नाम फर्जी है.. हजारों गायब है.. क्या कीजियेगा.. पहचान पत्र १५-२० सालों से सही नहीं बन पाए..


मतदान जरुरी करो.. चरणों में.. जैसे सरकरी कर्मचारी.. या वो संस्थान जहां मतदान के दिन अबकाश होता है.. उन्हें अगले दिन कहे की एक प्रमाण पत्र दे की आपने वोट दिया... अन्यथा आप लीव विदाउट पे हो..

और हर बात में काग्रेस और भाजपा से ऊपर उठ कर सोचना सीखें...

पी.सी.गोदियाल said...

आदरणीय अग्नि बाण जी,
आपका शुक्रिया ! लेकिन जब आप जनता की इतनी चिंता कर रहे है तो कृपया यह भी तो बता देते कि आखिर यह गरीबी दूर हटेगी कैसे ? महंगाई कम होगी कैसे ? भ्रष्टाचार ख़त्म होगा कैसे ? नरेंद्र मोदी ने वही तो पहल की है कि जब हर मतदाता ( मुख्यत शिक्षित, क्योंकि अशिक्षित तो देता ही है ) वोट डालेगा तो थोड़ा सा अपने विवेक(अगर होगा उसके पास तो ) का इस्तेमाल करेगा ! भेड़ चाल चलकर वोट नहीं डालेगा, जिसका मतलब यह कि अच्चेलोगो को प्रतिनिधित्व मिलेगा तो जब अच्छे लोग सत्ता में आयेंगे तभी वह कुछ गरीबी दूर हटाने का प्रयास करेगा बेरोजगारी को हटाने का प्रयास करेगा महंगाई को हटाने का प्रयास करेगा ! ये जो आज राजनीति अपने नीचता के स्तर पर पहुँच चुकी उसकी एक मुख्य वजह है वोट बैंक द्वारा आँख मूँद कर वोट देना, और सारे चोर उच्चको को राजनीति के गलियारों में पहुँचना, पिछले ६०-६२ सालो में इन्होने यहे तो किया, और किया क्या ?

उम्दा सोच said...

@ भाई सुरेश चिपलूनकर
यहाँ बहुत से लोग ऐसे है जो चाहते है की जो टोइलेट पेपर युवराज फेके वे लपक कर उससे अपना चेहरा पोछे, और गौरान्वित हो ! मोदी उन्हें खीर भी दे तो वे उसे ज़हर ही कहेंगे, ये इनका मानसिक दीवालियापन है ,मोदी को गुंडा कहते है, गुंडे को चाहिए जो भाजपा को वोट न दे उसे मार मार कर भाजपा को वोट डलवाए तब तो वो गुंडा कहलाने का असली हकदार होगा !

@ भाई रंजनी कुमार झा
मै भाजपा या संघ से सम्बद्ध हूँ या नहीं पर ये पोस्ट कांग्रेस की चम्चागिरा ज़रूर चीख चीख के कर रही है!

@ भाई अग्नि बाण
हे ज्ञानवंत ,मार्ग प्रशस्ति कर्णधार !!! आम लोगो के लिए कोई तब ही कर पायेगा जब वे खुद छोटे छोटे स्वार्थ हित को छोड़ कर राष्ट्रहित पर संगठित होंगे! कुछ आरक्षण के टुकडो पर तो कुछ दलित मुद्दे के टुकडो पर कोई विदेशी गुलामी के अपने पीढीगत मानसिकता के चलते गांधी परिवार के टुकडो के पीछे दौड़ते रहे तो कौन उनकी आवाज़ उठाये ??? पहले संगठित हो विचार करे की असल में वे क्या चाहते है तब कोई उनकी आवाज़ उठाये , चलिए ज्ञानवंत ,मार्ग प्रशस्ति कर्णधार ये ज़िम्मा आप को दिया अब कर दिखाईए फिर बात कीजिये !!!


@ भाई रंजन
किसी भी निर्णय को प्रशस्त करने में बाधा तमाम आती है फिर उसपर चर्चा कर निराकरण होता है ये सामान्य प्रक्रिया है, किसी अच्छे मकसद को निहित छोटी छोटी समस्या जिनका निराकरण भी संभव हो ,बोगस घोषित करना ,विकास के पथ में

rohit said...

बंधू मैं उम्दा सोच और सुरेश भाऊ से पूरी तरह सहमत हूँ . यह तथाकथित सेकुलर लोग गोधरा को भूल जाते है लेकिन गुजरात याद रहता है सिमी को भूल जाते हैं संघ याद रहता है आतंकवादियों को भूल जाते है लेकिन कश्मीर में सेना के द्वारा मारे गए आतंकवादियों के मानवाधिकार याद रहते है. इन्हें रुबिया सईद का अफर्ण भूल जाता है लेकिन कंधार याद रहता है. कश्मीर के टूटे मंदिर याद नहीं आते लेकिन बाबरी की शहादत ? याद रहती है .
कितने नपुंसक लोग है की जो सही है उसे सही न कह कर जो गलत है उसे सही कह रहे है. दूसरी बात किसी ने कहा था की लोग migration कर जाते है तो वोट कैसे देंगे लेकिन जहाँ पर migrate होते है वहां तो वोट दे सकते है उस जगह की मतदाता सूचि में अपना नाम तो दर्ज करवा सकते है मैं म प से हूँ लेकिन अभी बंगलोर की मतदाता लिस्ट में मेरा नाम दर्ज है तो यह तो कोई बहन आना हुआ.
गुजरात का मोदी के शासन में कितना विकास हुआ यह तो सभी जानते है और तो और कांग्रेस के प्रणव मुखर्जी ने खुद इसे माना है फिर जब वोह किसकी सरकार बने यह अधिकार तो जनता से चीन नहीं रहे हैं तो इसमे बुराई क्या है. कुछ लोगो को सिर्फ बुराई देखने की आदत होती है कोई matter न मिले तो कुछ भी लिख डालो यही उद्देश्य होता है .
सोनिया जी या किसी और से मुझे कोई परेशानी नहीं है लेकिन कुछ निति या उनकी सही नहीं है बात बस इतनी सी है

वीरेन्द्र जैन said...

kuchh log theke par kaam kar rahe hai^ aur unakaa kaam hee apane paक्ष् kee andhee prashansaa aur binaa baat hee apane vipaक्ष् kee nindaa karanaa hai isase ye mudde ko bhaTakaane kaa Shadayntr rachate hai^ aur blog jaise mahatwapoorn saadhan ko vaise hee brabaad kar rahe hai^ jaise ki dhaarmik paakhaNdon ke liye audio vedio kaa prayog.
vot daalane ke liye prerit karane kaa prayaas sarahaneey ho sakataa hai kintu dekhanaa yah bhee hai ki aakhir log voT daalane kyo^ naheen jaate aur un awarodhon ko door karane ke liye kyaa kiyaa jaa raha hai. Nasabandee bhee bhaarateey samaaj ke liye achछ्ee thee kintu kyaa pariNaam huaa? 1977 men indiraa gaandhee kee haar ke peeछ्e emergency se jyadaa nasabandee kaa haath rahaa thaa.

Dr. Purnima said...

नरेन्द्र मोदी तानाशाह हों, निरंकुश शासक हों, गुंडागर्दी करती हो उनकी सरकार, पर एक बात तो हम भी जानते हैं कि जिस तरह हमारे देश में लोग वोट दलने जाते ही नहीं, काम से काम पढ़ा लिखा तबका तो बहुत ही काम वोट डालता है, तो ऐसे लोगों के साथ सख्ती तो बरतनी ही चाहिए | वोट वाले दिन तो लोग शहर से बाहर घूमने चले जाते हैं | क्यों ? क्योंकि उनका मानना है कि हमारे votes से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला | जब अच्छे लोग जीतकर नहीं आते तो वे ही लोग गलियां देते है | उनसे पूछिए जाकर कि वोट डालने के समय आगे क्यों नहीं आये ? तो यदि अच्छे लोगों को जितना है तो हर व्यक्ति को अपने वोट के हक़ और फ़र्ज़ दोनों' का इस्तेमाल करना होगा | और यदि किसी भी तरह नहीं मानते तो कुछ न कुछ दंड का प्रावधान हमारे विचार से कोई गलत बात नहीं है | सजा के डर से वोट डालने तो जाएंगे | डॉ. पूर्णिमा शर्मा

परमजीत सिँह बाली said...

मोदी जी का कदम सराहनीय है। क्या हम अपने देश के हित को ध्यान मे रखते हुए जरा सी परेशानी नही सह सकते ? यदि किसी के मन मे अपने देश के लिए जरा सा भी प्रेम होगा तो यह उस की जिम्मेवारी बनती है कि अपना वोट जरूर डाले....।आज ४५....५० प्रतिसत वोट पड़ते हैं...वो भी कई पार्टीयो को ,ऐसे मे सिर्फ २०...२५ प्रतिसत वोट पा कर कोई देश प्रति्निधि कैसे हो सकता है...??..जब यह अनिवार्य हो जाएगा तो जातिगत समीकरण भी टूटेगें...लोगो को बर्गालाने व लालच देकर वोट हासिल करने वालो पर भी अंकुश लगेगा...पता नही आप ने क्योकर इसे गूंड़ागर्दी कहा...???

karambir singh rohilla said...

मेने सभी सुविचारों पर चिंतन किया। अच्छा लगा। मेरे विचार से सरकार टेक्स लगाती ( हर साल नये टेक्स) क्या ये निरकुंश शासन नही हे । लोकतंत्र में वोट डालना एक मात्र अधिकार हे उस अधिकार को कानून के सहारे लागू करना मेरे ख्याल से कोई निरंकुशता नहीं।---- कर्मबीर सिहं रोहिल्ला ( फांट डिजाईनर)

Dr. Purnima said...

हम लोग सीधी सादी बात नहीं समझना चाहते हैं, इसलिए जुर्माने के रूप में वोट ना डालने की सजा का प्रावधान यदि किया जाता है तो कुछ बुरी बात नहीं है हमारी राय में | अपने आपको पढ़ा लिखा कहलाने वाले हम लोग वोट वाले दिन छुट्टी मनाने चले जाते हैं | या फिर घर में बैठकर के पकोड़ों के साथ इस छुट्टी का लुत्फ़ उठाते हैं | यदि ऐसा कोई नियम बन जाये कि जो लोग वोट नहीं डालेंगे उन्हें कुछ जुर्माना भरना पड़ेगा और जो लोग वोट डालने जाएँगे उनके लिए टैक्स आदि में छूट दी जाएगी, या उनके बच्चों को अच्छे स्कूलों में मुफ्त शिक्षा दी जाएगी, या ऐसा ही कोई लालच, तो निश्चित रूप से लोग वोट डालने जाएँगे | हम लोग वोट डालने तो जाते नहीं और अपने drawing रूम में बैठकर सरकारों को महगाई के लिए कोसते रहते हैं ओर इस तरह अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ लेते हैं | कब तक हम अपने कर्तव्यों से इस तरह पलायन करते रहेंगे ? कब तक ? मुद्दों पर बात करनी चाहिए, पर पहले यह सोचना चाहिए कि इन सारी अव्यवस्थाओं के लिए कहीं हमारा आलस्य ही तो ज़िम्मेदार नहीं है ? Dr. Purnima Sharma

वन्दना said...

dekhiye mudda bhajapa ya congress ka nhi hai mudda hai ek vote ka..........uske mahatva ka.........aur mere khyal se har nagrik ka ye kartavya hai ki wo sahi shasak ko chun kar laye magar jab janta hi apne kartavyon se vimukh hogi to koi kaise kah sakta hai ki kaun galat hai aur kaun sahi........aur iske liye agar koi bhi neta ek sakht kadam uthata hai to uski pahal ko prashansa ki drishti se dekhna chahiye kyunki kabhi kabhi kuch logon ko pyar ki baat samajh nhi aati.........vote ka adhikar de rakaha hai samvidhan ne to uska bhi durupyog ho raha hai to agar koi bhi neta agar aisa kadam utha raha hai jisse desh ka hit ho to wo sarahniya hai phir chahe wo kisi bhi party ka ho varna to sabhi ek hi thali ke chatte batte hain...........aam janta to pahle bhi dukhi thi aur aaj bhi sirf kuch log vote ki rajniti khelte hain aur apni kursi banaye rakhne ke liye sab tarah ke hathkande apnate hain........is mudde ko sirf isi samdarbh mein dekhna chahiye ki vote ke mahtava ko samjhane ke liye ek sarahniya prayas hai jiska hum sabko swagat karna chahiye taki desh ko ek sashakt shasak mil sake.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक said...

बहुत बढ़िया!
मगर मैं इससे तब तक सहमत नही जब तक कि लोक सभा और राज्य सभा में 100 प्रतिशत सांसद हाजिर न हों।
प्रजातन्त्र में डिक्टेटरशिप का क्या काम?

murar said...

dear esh ma buraey kay ha modi noa bhut bdey or shraney kaam keya ha aap logo ko bhemet kar rhay ho.......aap kay pak ma rhatay ha...?

Randheer Jha said...

प्रशंसनीय आलेख,

कमाल कि बात है कि लोकतंत्र को तानाशाही से चलाने कि बात हो रही है और लोग हिन्दू मुसलमान और भाजपा और कांग्रेस मैं लगी हुई है। हम चीन नहीं हैं और किसी मोदी और गाँधी कि औकात नहीं है कि वो भारत का चीन कि तरह और उसीके रफ़्तार मैं तरक्की करा पाए। तो क्या हम चीन बनना चाहेंगे? शायद नहीं। चीन मैं ब्लोगिंग करना मना है तो क्या हमारे ब्लोगेर्स ऐसा ही नियम यहाँ लागू कराना पसंद करेंगे ? बिलकुल ही नहीं। कहने का मतलब यह है कि हमारी सबसे बड़ी ताक़त हमारी आजादी और हमारा लोकतंत्र है और इस दौनों कि कीमत पर कोई तरक्की किसी भी भारतीय को स्वीकार्य नहीं होगा और ना ही होना चाहिए.....

लोकतंत्र मैं वोट नहीं देना भी एक अधिकार है और वोट देना कर्तव्य, कमोबेश सभी लोग वोट देते हैं लेकिन साथ ही उनका हक उनसे नहीं छिना जा सकता और वोट ना देना (सभी पार्टियों का विरोध) करना भी जनता का एक अधिकार है जिसे कोई नरेन्द्र मोदी या राहुल गाँधी उससे नहीं छीन सकता.....
सुरेश चिपलूनकर, पी.सी.गोदियाल, उम्दा सोच, रोहित इन सभी लोगों कि बातों से लगा कि दक्षिणपंथी विचारधारा से ताल्लुक रखते हैं और अपने नेता के हर बात को ह्रदय से लेते हैं परन्तु आप सभी लोग सोचें के लोकतंत्र और तानाशाही का आमूल विभेद यही है कि निर्णय लेने वाला जनता होता है। चीन के रस्ते पर चलना हमारे लिए ठीक नहीं होगा......
वैसे कई विश्लेषक मानते हैं कि कभी कभी वोट ना देना सरकार से सहमती कि ओर इशारा करता है और कभी उम्मीदवारों या फिर पार्टियों से तंग आकर भी लोग नहीं देते है और ये दौनों जनता कि चाँद बचे हुए अधिकारों में से एक है जिसे दुनियां का कोई मोदी छीन नहीं सकता है।

प्रबल प्रताप सिंह् said...

देखिए भाईसाहब आपका आलेख तो बहुत अच्छा है, लेकिन हम एक बात से इनकार नहीं कर सकते की विगत में संपन्न लोकसभा चुनावों में वोटिंग कम हुई. जब हम नातों को दोष देते हैं कि उसने ये नहीं किया उसने वो काम नहीं किया. जनता के पास एक ही लोकतान्त्रिक हथियार है. अगर हम इस हथियार का प्रयोग नहीं करेंगें तो लोक्तातंत्र कुछ कठमुल्लों के हाथ कि कठपुतली बनकर रहजायेगी.

--
शुभेच्छु

प्रबल प्रताप सिंह

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रंजना said...

Aapke is aalekh se poorntah asahmati hai....yahan to bahut logon ne is asahmati par bahut kuchh kah diya hai so ab main alag se kya kahun....
Bas itna hi kahungi ki modi ji ki gundagardi se aage badh yadi aap modi ji dwara kiye gaye vikaas ke karyon par bhi drishtipaat karen to bada bhala hogaa...

Vyktigat roop se main to modi jee ke is kadam ki mukt kanth se prashansha karti hun....

उम्दा सोच said...

रंजना जी की अभिव्यक्ति का स्वागत है !
सुन्दर सहज दो टूक टिपण्णी !

imnindian said...

यहाँ जिनको जो कहना था उनमे कुछ मै भी कहना चाहती थी ,पर दुबारा वही बात कहू तो समय और स्थान की बर्बादी होगी. हमारे समाज में मोदी को कोसना एक फैशन है , जो सभी करते है. पर मै कुछ कहना /पूछना चाहती हु - क्या बात है कि मोदी की इतनी बुराई के बाद भी जनता उसे दुबारा चुन कर भेज देती है ? क्यों उसके शासन काल में नौकरशाहों पर लगाम कसने की बात सामने आती है ,गुजरात की प्रगति की बात सामने आती है ? क्या इस पर हमने कभी सोचा है. हम अमेरिका द्वारा मोदी को वीसा नहीं दिए जाने की बात हमेशा करते है, क्या कभी ये सोचा है यही अमेरिका जिसने इराकी बंदियो का अबू गारी... में क्या दुर्दशा कर दी थी , मानव अधिकारों की सारी खिल्लिया उड़ा दी थी? उसी अमेरिका को उध्ग्रित करते है हम मोदी के लिए , जिसके खुद के हाथ रंगे हुए है मुसलमानो के खून से.
रही बात हिन्दू - मुस्लिम की ; आजादी के इतने साल बाद भी अगर हमे हिन्दू- मुस्लिम होने पर विचार करना पड़ता है तो हमने इतने दिन किया क्या वही के वही खड़े रहे - तू हिन्दू , मै मुस्लिम, मै हिन्दू- तू मुस्लिम. मतलब हम दोनों के मन में एक दुसरे के लिए कटुता है. कटुता सिर्फ एक तरफ से नहीं है. तो हमे दोनों और से करवाई करनी चाहिए की कटुता कम हो. सिर्फ एक को कोष कर कुछ नहीं होगा.
अंतिम मुद्दे की बात - हम जनतंत्र में अपने अधिकार की बात तो करते है पर जिम्मेदारियो की नहीं , अधिकार और जिम्मेदारिया साथ- साथ आती है ,बिना एक का इस्तेमाल करे दूसरे के लिए हम चीख- पुकार नहीं मचा सकते . मोदी ने अगर वोट देना जरुरी कर दिया है तो इसमें मुझे कोई खास गलत तो नहीं दीख पड़ रहा है. जनतंत्र में हम घर बैठे चाहते है कि नेता , नौकरशाह ईमानदारी से हमारे लिए काम करे ! पर हम घर बैठे अपनी सुबिधा के लिए घूस देकर अपना काम जल्दी से निकल ले और जब कोसने कि बात आए तो मंत्री से लेकर संतरी को कोसे . खुद को कुछ न कहे.
जब वोट देगे तो वोट के सही उपयोग के लिए �

रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) said...

सभी मित्रों का प्रतिक्रया के लिए आभार,
सभी मित्रगण ने अपने अपने मत रखे जो नि:संदेह स्वस्थ्य लोकतंत्र की परंपरा के अनुरूप है, विभिन्न विचारों से अवगत हुआ और में आप सभी के अभिमत का ह्रदय से सम्मान करता हूँ.
विचारों के इस झंझावत ने सभी लोगों को उत्तर देने के बजाय मुझे एक नए पोस्ट के लिए प्रेरित किया है सो शीघ्र ही आपके साम्मने अपने विचारों का पिटारा लेकर हाजिर होउंगा.
एक बार फिर से बहुत बहुत धन्यवाद

ab inconvenienti said...

अभी तक आपके विचारों की गठरी नहीं बढ़ पाई, या इन सभी तर्कों के खिलाफ कोई विचार है ही नहीं? तुम्हारी चुप्पी यही कहती है की मोदी तुम्हारी भी नज़रों में सही है, मैं कांग्रेस और भाजपा से नफरत करता हूँ पर मोदी का प्रशंसक हूँ. जय मोदी, मोदी जल्द प्रधानमंत्री बनें यही कामना है.

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