फ़रहीन को कबूतरों के संग खेलना था और मुझे बस पकड़ने की जल्दी थी
फ़रहीन के साथ कहीं भी सीधे से पहुंच जाना आसान नहीं है, अचानक टार्ज़न की याद आ गयी इन्हें....
अब लीजिये आगे.....
समय:- ३:३० बजे स्थान:- मुंबई का उपनगर बोरीवली (पश्चिम) ,संजय गांधी नेशनल पार्ककरीब एक माह पहले भाई आशीष(मीडिया स्कैन) ने फोन करा कि अविनाश वाचस्पति जी आपका मोबाइल नंबर चाहते हैं दे दूं क्या.... मैंने कहा दे दो भाई। कुछ समय बाद अविनाश भाई का फोन आया और उन्होंने मुंबई आने की सूचना दी बस तभी से इस समागम का इंतजार कर रहा था। वो दिन भी आ गया। सुबह से जल्दी-जल्दी मरीजों को निपटाया जिन्हें समय दे चुका था फिर विवेक भाई रस्तोगी जी के मार्गदर्शन पर वाशी से बस पकड़ने के लिये पनवेल से वाशी पहुंच गये लेकिन मेरी प्यारी बिटिया भड़ासिन फ़रहीन नाज़ भी साथ में थीं तो इनकी मस्ती के चलते इन्होंने दो बस छुड़वा दीं, बन्नो रानी कबूतरों के संग खेलने लगीं थीं। तीसरी बस किसी तरह पकड़ कर बोरीवली पहुंचे और संजय गांधी नेशनल पार्क में प्रविष्ट हुए तो सबसे पूंछते हुए किसी तरह जैन मन्दिर तलाशा, इस बीच पूरे रास्ते में फ़रहीन की मस्ती चालू थी मुझे जल्दी थी कि सब क्या सोच रहे होंगे कैसे लोग हैं जुबान देकर भी न आए।
समागम में श्री अविनाश वाचस्पतिजी(दिल्ली), महावीर बी सेमलानी , विवेक रस्तोगी , श्री सूरज प्रकाश, श्री राजकुमार सिंह , श्री सतीश पंचम , श्री विमल वर्मा, श्री अजय कुमार, श्री आलोक नंदन , श्रीमती आशा अनिल आचरेकर, रश्मिजी रविजा, शमा दीदी (पुणे ), फ़रहीन नाज़ ( पनवेल) , श्री शशि सिंह, श्री राजसिंह मौजूद थे। सबने अपने विचार बांटे। सूरज दादा ने सबका स्वागत करा। हम सोच रहे थे कि सबसे बाद में हम दोनो ही पहुंचेंगे लेकिन हमारे भी बाद में राज सिंह जी और आशा जी आए। मुंबई ब्लागर मीट के अनुभव
उद्यान के बाहर एक बोर्ड देखा था जिसपर लिखा था कि शाम छह बजे के बाद यहां न रुके तेंदुआ जैसे हिंसक जानवर हमला कर सकते हैं। अपनी तो हवा तंग थी कि अगर तेंदुए के पास घड़ी हुई और सही चल रही होगी तो आज उसके डिनर में कई हिंदी ब्लागर रहने वाले हैं। लेकिन शायद तेंदुए वक्त के पाबंद नहीं होते इसलिये ऐसा कुछ नहीं हुआ।
ताऊ श्री रामपुरियाजी एवं समीरलाल जी उड़न तश्तरी द्वारा भेजे शुभ सन्देश की जानकारी महावीर बी सेमलानी ने सभी ब्लोगरो कों दी । बारी बारी से सभी ब्लोगरो ने अपनी ब्लागिंग संबंधी यादे सामने रखीं, कुल मिला कर मौजमस्ती और गहरे प्रेम का माहौल रहा। हमारे बीच एक ऐसे बुजुर्ग सज्जन श्री एन।डी।एडम जी भी थे जो कि एक आशुचित्रकार हैं उन्होने कई लोगों के रेखाचित्र बैठे-बैठे ही खींच दिये। मुंबई जैसे शहर की तेज रफ़्तार जिंदगी में इस तरह अनौपचारिक मुलाकात से सचमुच आनंद आ गया। भाई अविनाश वाचस्पति और एडम अंकल के साथ मैं और फ़रहीन सबसे विदा लेकर सूरज दादा की कार में अंधेरी तक आए और फिर हम सब बस में सवार होकर कुर्ला तक आ गये जहां भाई अविनाश नेहरूनगर में किसी मित्र के पास रुके हैं, एडम अंकल विक्रोली चले गये और हम दोनो पनवेल की लोकल में सवार हो लिये।
फ़रहीन के लिये यह पहला अवसर था इसलिये वह बहुत उत्साहित थी इस विषय में कि अगली बार इस तरह का आयोजन हम सब करेंगे मेजबानी का आनंद लेंगे।
मुनव्वर आपा और मनीषा दीदी भी साथ आना चाह रही थीं लेकिन परिस्थितियां न बन सकीं। आज भाई अविनाश वाचस्पति पनवेल आने का वादा कर के विदा हुए थे तो उनका इंतजार है।
आशा है कि हम सब वर्चुअल संसार से निकल कर अपने प्रोफ़ाइल के फ़्रेम तोड़ कर बाहर भी मिलते रहेंगे।
जय जय भड़ास
No comments:
Post a Comment