सरकार ने कहा है कि पाकिस्तान में अब भी आतंकी ढांचे यथावत हैं और 2009 में वृद्धि के साथ ही जम्मू- कश्मीर में घुसपैठ अनवरत जारी है। गृह मंत्रालय द्वारा जारी वर्ष 2009-10 की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बात की सूचनाएं हैं कि सीमा के पार आतंकवादी तत्वों के प्रशिक्षण के लिए अब भी आतंकी ढांचे बने हुए हैं।
रिपोर्ट के अनुसार उपलब्ध सूचनाएं बताती है कि 2005 से लगातार कमी के बाद वर्ष 2009 में पिछले वर्ष 2008 की तुलना में अचानक घुसपैठ बढ़ गई। वर्ष 2009 में घुसपैठ के 485 प्रयास हुए थे, जबकि 2008 में 342 बार आतंकवादियों ने घुसपैठ की कोशिश की थी।
हालांकि रिपोर्ट यह भी कहता है कि सरकार आतंकवादियों और सीमापार की हिंसा से उत्पन्न चुनौतियों को निष्फल करने के लिए कटिबद्ध है। आतंरिक सुरक्षा परिदृश्य पेश करते हुए रिपोर्ट कहता है कि हालांकि देश में स्थिति नियंत्रण में है लेकिन 2008 की तुलना में वर्ष 2009 में ज्यादा घटनाएं घटीं और अधिक लोग हताहत हुए।
रिपोर्ट के मुताबिक हाल के वर्षों में वाम चरमपंथियों की हिंसा का गढ़ मुख्यत: झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र रहा है। चरमपंथी पर्याप्त प्रशासनिक ढांचे की कमी से उत्पन्न हुई रिक्तता में अपनी गतिविधियां चलाते हैं और लोगों में उपेक्षा और नाइंसाफी की भावना का फायदा उठाते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया कि हालांकि सुरक्षाबलों की कार्रवाई में वाम चरमपंथियों की मौत, गिरफ्तारी और आत्मसमर्पण की दृष्टि से 2009 में नक्सल विरोधी अभियान में बहुत अच्छा परिणाम सामने आया है, लेकिन बिहार, झारखंड, उडीसा, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में खुफिया सूचना संग्रहण और पुलिस के बीच आपसी तालमेल तथा पुलिस बल को तत्काल मजबूत किए जाने की जरूरत है।
रिपोर्ट में सशस्त्र संघर्ष द्वारा सरकार को उखाड़ फेंकने की माओवादियों की अवधारणा को पूरी तरह खारिज कर दिया गया है। इसमें कानून व्यवस्था बिगाड़ने वाली घटनाओं में तेलंगाना आंदोलन और गोरखालैंड आंदोलन का जिक्र है।
रिपोर्ट के अनुसार उपलब्ध सूचनाएं बताती है कि 2005 से लगातार कमी के बाद वर्ष 2009 में पिछले वर्ष 2008 की तुलना में अचानक घुसपैठ बढ़ गई। वर्ष 2009 में घुसपैठ के 485 प्रयास हुए थे, जबकि 2008 में 342 बार आतंकवादियों ने घुसपैठ की कोशिश की थी।
हालांकि रिपोर्ट यह भी कहता है कि सरकार आतंकवादियों और सीमापार की हिंसा से उत्पन्न चुनौतियों को निष्फल करने के लिए कटिबद्ध है। आतंरिक सुरक्षा परिदृश्य पेश करते हुए रिपोर्ट कहता है कि हालांकि देश में स्थिति नियंत्रण में है लेकिन 2008 की तुलना में वर्ष 2009 में ज्यादा घटनाएं घटीं और अधिक लोग हताहत हुए।
रिपोर्ट के मुताबिक हाल के वर्षों में वाम चरमपंथियों की हिंसा का गढ़ मुख्यत: झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र रहा है। चरमपंथी पर्याप्त प्रशासनिक ढांचे की कमी से उत्पन्न हुई रिक्तता में अपनी गतिविधियां चलाते हैं और लोगों में उपेक्षा और नाइंसाफी की भावना का फायदा उठाते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया कि हालांकि सुरक्षाबलों की कार्रवाई में वाम चरमपंथियों की मौत, गिरफ्तारी और आत्मसमर्पण की दृष्टि से 2009 में नक्सल विरोधी अभियान में बहुत अच्छा परिणाम सामने आया है, लेकिन बिहार, झारखंड, उडीसा, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में खुफिया सूचना संग्रहण और पुलिस के बीच आपसी तालमेल तथा पुलिस बल को तत्काल मजबूत किए जाने की जरूरत है।
रिपोर्ट में सशस्त्र संघर्ष द्वारा सरकार को उखाड़ फेंकने की माओवादियों की अवधारणा को पूरी तरह खारिज कर दिया गया है। इसमें कानून व्यवस्था बिगाड़ने वाली घटनाओं में तेलंगाना आंदोलन और गोरखालैंड आंदोलन का जिक्र है।
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