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ये नाटकीय घटनाचक्र सिर्फ कहानी नहीं अपितु एक चरित्र है हमारे राजनीति का जिसके कई अगुआ हैं, कई पात्र मगर शिबू सोरेन ने इसमें हमेशा अपनी अहम् भूमिका निभाई है और एक बार फिर से राजनितिक पतन के मजबूत कर्णधार का किरदार अदा किया।
एस एन विनोद वरिष्ट पत्रकार हैं, अपने आप को कई अखबारों का संपादक और प्रभात खबर का संस्थापक सम्पादक बताते हैं, बिहार विभाजन से पूर्व झारखण्ड के प्रभात खबर के संपादन के दौरान ही शिबू के करीबी रहे विनोद ने शिबू को अपना आराध्य और भारत का दुसरा गांधी कहा।
एक आन्दोलन का सिपाहसलार कालांतर में लोकतंत्र की सबसे बड़ी गरिमा सांसद होने को बेचता है, अपने साथ अपने सहयोगियों की भी बोली लगा देता है, भेद खुलने पर अपने निजी सचिव की ह्त्या करता है, जेल जाता है और हमारे लोकतंत्र का सबसे लुंज पुंज पाया न्यायालय से बड़ी हो कर एक प्रदेश का मुखिया बन जाता है। इस सब से इतर लोकतंत्र की आवाज का दावा करने वाले मीडिया का बुजर्ग इस अपराधी को देश का दुसरा गांधी बता जाता है !
किस को देखूं, किसको सुनूँ, किस पर विश्वास करुँ ?
एस एन विनोद और शिबू सोरेन हमारे लोकतंत्र के दो चरित्र हैं की एक तरफ राजनीति के रसातल में जाने के कारण का पता चलता है तो वहीँ पत्रकारिता के असलियत के भी पर्दा उठता है।
ताजा प्रकरण ने राजनीति की असलियत का जो रूप दिखाया है, सोचनीय हूँ की क्या हमें लोकतंत्र पर गर्व करना चाहिए या शर्म !
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