बचपन में किसी बुर्जुग ने यूं ही हंसी-ठिठोली में मुझे एक विशेष किस्म का पहाड़ा पढ़ाया था। प्राइमरी स्कूल में 2 से लेकर 20 तक का पहाड़ा तो मास्टर जी ने चिल्ला-चिल्ला कर इतना रटा दिया था कि वह ऑटोमैटिक मशीन की तरह जुबान पर चढ़ गया था। कोई बोला नहीं कि माइक्रो सेकेंड की स्पीड से पहाड़ा चालू! लेकिन उस बुर्जुग द्वारा बताये गये पहाड़े में कुछ खास बात थी, वहां अंकों का नहीं शब्दों का पहाड़ा था। जिसमें अपने देश, समाज, और व्यवस्था का गुणा-भाग, जोड़-घटाव सब कुछ था। आज भी कभी-कभी वह पहाड़ा याद आ जाता है। बुर्जुग ने कहा भी था कि-बेटा यह ऐसा पहाड़ा है, जो तुम्हे हर वक्त काम आयेगा। मैंने उस समय तो बचपने वश उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया, पर पहाड़ा था बड़ा लाजवाब आप भी पहले सुन लिजिए फिर बतियायेंगे...
नेता एकम नेता
नेता दूनी दगाबाज़
नेता तिया तिकड़मबाज
नेता चौका चतुर-चालाक
नेता पंजे-पक्का हरामी
नेता छक्का-छी छी छी छी छी
नेता साते- सच में झूठा
नेता अट्ठम- अठन्नी चोर
नेता नवां- नमक हराम
नेता दहा में- 10 सुन्ना बगल में ....
अब 10 सुन्ना बगल में, का रहस्य तो आप समझ ही रहे होंगे और बाकी के शब्दों की परिभाषा हम आप से बेहतर भला कौन जान सकता है? हां नेताओं को थोड़ी व्याख्या करनी पड़ सकती है, क्योंकि बेचारे आज तक इन शब्दों का भावार्र्थ नहीं समझ पाये हैं। देखिए अपने मेगा क्रिकेट कानिर्वाल यानि आईपीएल को ही देख लिजिए। नेता जी की कथा-व्यथा सब कुछ दिख रही है। फिर भी सफेद खादी लपेटे उससे भी सफेद झूठ बोल रहे हैं कि हमें तो कुछ पता ही नहीं? एक चले गये और खेल अभी बाकी है मेरे दोस्त की तर्ज पर फिल्मी पटकथा राजनीति के पर्दे पर पूरा देश फ्री ऑफ कॉस्ट देख रहा है। सच का झूठ और झूठ का सच...दो चार दिन में इतना हॉच-पॉच हो जायेगा कि आम पब्लिक कन्फ्यूज! खैर, नेता जी की पुत्री हैं तो आईपीएल की हॉस्पिटैलिटी मैनेजर हैं, वह भी मात्र 24 साल की कम उम्र में। टैलेंट है, आपके पास नहीं तो कोसिये, कौन मना कर रहा है। ठीक है भई कोरी बात नहीं...मंत्री जी के परिवार का फोन आ जाए तो सरकारी कर्मचारी तो पागल हो जाते हैं, क्या करें? कैसे करें? कि मंत्री जी नाराज ना हों, कीमत, हमारी आपकी ऐसी-तैसी।
सुनंदा जी, ऐसी सफल बिजनेस वुमेन है कि एक कंपनी का 25 प्रतिशत शेयर ही तनख्वाह में लेती हैं? गुड है जी! देश के किसी एक गरीब परिवार की बेटी थोड़ी-बहुत पढ़लिखकर एक कुछ हजार की नौकरी कर ले तो बाप-मां इतने खुश होते हैं कि जीवन भर की गरीबी, लाचारी को भूलकर मिठाई जरुर बांटेंगे। इसी देश के नेताजी की बेटी इतने बड़े ऑर्गनाइजेशन की हॉस्पिटैलिटी मैनेजर है और नेता जी दु:खी भाव से कहते हैं कि मेरी बेटी मामूली सी जूनियर कर्मचारी है। यह इसी देश की दो तस्वीरें हैं। देखिए, सोचिए और परखिये!! सॉरी सॉरी कुछ ज्यादा ही समझा रहा हूं, बेवकूफ मैं।
देश में महंगाई है, भूख है, गरीबी है और इससे आजि़ज आकर बंदूक थामे अपनों को ही निशाना बना रहे नक्सली हैं। लेकिन इस सरकार को आईपीएल पर बात करने के लिए फुर्सत है, इन चीजों पर कोई ध्यान नहीं। अभी किसी एक नेता का ही बयान आया था कि पता नहीं कैसे नेताओं को क्रिकेट के बारे में सोचने तक की फुर्सत मिल जाती है। सुनने में कितना आदर्शवादी बयान है, पर उन्हीं की सरकार में व देश के कृषि जैसे महत्वपूर्ण विभाग के मंत्री, बस क्रिकेट ही सोचते, बोलते और समझते हैं। बाकी के लिए वे कोई ज्योतिषी थोड़े ही हैं कि बता देंगे-महंगाई कम होने वाली है। यह चरित्र है, उस देश के नेताओं का जिनका काम तो समाजसेवा का है, पर असल में वे स्वसेवा, स्वजन सेवा के आगे का पहाड़ा नहीं जानते। पर जनता जान रही है यह पहाड़ा और वह पहाड़ा भी जो ये जनता को पढ़ाते हैं।
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