मीडिया की भूमिका पर आज क्यूँ प्रश्न उठ रहे हैं ? लोकतंत्र में लोक की आवाज होने का दावा करने वाली मीडिया आज व्यवसाय के मैदान में महज लाला जी बन कर रह गयी है, बड़े बड़े पत्रकार इन लालाओं के दलाल और बाकी के पत्रकार इन लालाओं के बाबूजी जो अपने लाला जी के व्यवसायिक फायदे के लिए पत्रकारिता तो दूर देश की सुरक्षा भी दाँव पर लगाने से परहेज नहीं करते।
हाल ही में आउट लुक पत्रिका ने फोन टेप होने की खबर फैला कर पुरे देश में सनसनी फैला दी, खबर की सच्चाई या खबर की विश्वसनीयता से इतर अपने डूबते साप्ताहिक के व्यवसाय को बचाने के लिए एक ऎसी खबर जो आई पी एल के विवाद के बावजूद संसद में भारी हंगामा और बाकी खबरिया समूह के लिए एक शानदार खबर बन गया।
वैसे विनोद मेहता के बारे में बताता चलूँ की एक खबरिया चैनल पर स्वीकार कर चुके हैं कि " मीडिया खबर की दुकानदारी करती है" और अपने दूकान को बेचने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है।
प्रधानमंत्री का इस मामले में दो टूक बयान ने जहाँ विपक्षी के जोश पर पानी डाल दिया वहीँ पत्रकारिता के इस नए स्वरुप पर भी एक प्रश्नचिन्ह लगा गया की क्या पत्रकारिता माने देश की संप्रभुता से भी ऊपर खबर की दुकानदारी रह गयी है।
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