LGBT बनाम किन्नर बनाम लैंगिक विकलांग

जिसे देखिये वही शुभकामनाएं दे रहा है कि दीदी मुबारक हो वोट का अधिकार मिल गया। अच्छा शगुन है अच्छी उपलब्धि है। क्या कोई जानता है कि ये शुभेच्छाएं कथित किन्नरों के हिस्से में ही क्यों आ रही हैं? जबकि बात LGBT समुदाय की है। LGBT यानि कि लेस्बियन, गे, बाइसेक्ज़ुअल, ट्रांसजेण्डर्स का समुदाय; यह शब्द लैंगिक विकलांगता को व्याख्यायित नहीं कर पाता है। लैंगिक विकलांगता शारीरिक अपस्थिति है जबकि लेस्बियन होना, गे होना अथवा बाइसेक्ज़ुअल होना एक मानसिक विकार की स्थिति है। ट्रांसजेण्डर्स में इस स्थिति को स्वीकारा जा सकता है लेकिन उस स्थिति में जबकि उसका मेडिकल परीक्षण हो अन्यथा हरगिज़ नहीं। लैंगिक परिचय के स्थान पर स्त्री अथवा पुरुष के अतिरिक्त "अन्य" लिखा होना कितनी बड़ी उपलब्धि है ये विचारणीय बात है। यदि भाई रजनीश झा, वकील साहब सुमन जी, गुफ़रान भाईसाहब, मुनव्वर आपा और आदरणीय डा.रूपेश श्रीवास्तव भी चाहें तो इसमें खुद को नामांकित कर सकते हैं कोई रोक नहीं है लेकिन इससे हम जैसे शारीरिक (लैंगिक) तौर पर अपंग लोगों का क्या हित होगा जरा सोचिये।
दर असल हो ये रहा है कि LGBT की आड़ में हमारी लड़ाई को एक अलग ही दिशा में न चाहते हुए भी धनबल से मोड़ा जा रहा है और हम इस षड़यंत्र को समझ नहीं पा रहे हैं कि वस्तुतः ये हमारी भारतीय सभ्यता और धार्मिक परंपराओं की जड़ों में मट्ठा डाला जा रहा है। पहले कानूनी तौर पर समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से मुक्त कराना और अब ये नया शॊशा। लोगों को लग रहा है कि सामाजिक बदलाव हो रहा है, कुछ नहीं हो रहा है ये सब कागजी कूदफांद है जो कुछ विशेष लोगों के स्वार्थ साधने के काम आने वाला है। आप के हमारे जैसे बच्चे अभी भी उसी हाल में हैं बाबूजी ने कहा है सामाजिक बदलावों की गति अत्यंत धीमी होती है तो उस गति के बढ़ने का इंतजार है। मनीषा नारायण,हिजड़ा,लैंगिक विकलांग,LGBT,लेस्बियन,गे,बाइसेक्ज़ुअल,ट्रांसजेण्डर्स
जय जय भड़ास

No comments:

Post a Comment