सड़ी गली परंपराओं की दुर्गंध जब इतनी अधिक हो जाए कि सहना मुश्किल हो तब प्रतिक्रिया से एक सुगंध का कतरा उपजता है। वो कतरा अपनी फितरत से बढ़ता जाता है और दुर्गंध के बराबर सीधा खड़ा रह कर बुराइयों को नकारा कर देता है। साहस चाहिये इस काम के लिये जो कि वो लेकर पैदा होगा है। भाई रजनीश झा की शख्सियत के बारे में जितना लिखा जाए कम है। भड़ास पर कमान सम्हाले रहना ताकत की बात है जो कि भाई रजनीश जैसे लोग ही कर सकते हैं। जिस दिन भड़ास की हत्या यशवंत सिंह ने कर दी थी और भड़ास की आत्मा उस ताबूत में तड़प रही थी तब मैंने भड़ासी धर्म का निर्वाह करते हुए भड़ास की मूल आत्मा चुरा ली। यशवंत सिंह ने मुर्दा ताबूत में सजा रखा था और फूल माला चढ़ा कर उसकी नुमाइश लगा ली। मुर्दे की प्रदर्शनी का धंधा उस धंधेबाज ने लगा लिया। मैं अकेला भड़ास की आत्मा को अपने अस्तित्त्व पर चढ़ाए भटकता रहा कई दिनों तक फिर एक दिन फैसला लिया कि भड़ास को दुबारा जन्म दिया जाए। इस प्रसव में दाई का काम करा हमारे बाग़ी भाई रजनीश के.झा ने। भड़ास दुबारा पैदा हुआ और हमारे प्यार से पोषित होकर युवा हो गया, अब भड़ास अजर-अमर है। इस शक्ति का श्रेय है भाई रजनीश को जिनका आज जन्मदिन है। एक बात तो स्पष्ट हो गयी है कि भड़ास के साथ ही हम दोनो भी अब अमर हो गये हैं। भाई रजनीश को जन्मदिन की हार्दिक शुभेच्छा।
जन्मदिन पर किसी की ले ली जाए तो भड़ासी जन्मदिन पूरा हो।
जय जय भड़ास
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