बकरीद की परंपरा है स्वाभाविक सी बात है कि इस विषय पर लिखना विवादास्पद हो जाता है क्योंकि मैं खुद एक मुस्लिम के घर में पैदा हुई हूं। कुछ दिन पहले मैंने एक अंग्रेज़ी अखबार में एक विज्ञापन देखा कि एक बकरा बिकाऊ है। सहज सी बात है कि बकरीद के अवसर पर ऐसे विज्ञापन ही प्रकाशित होंगे। लेकिन मुझे इस बकरे के बारे में जान कर अजीब सा भाव मन में उठा कि यदि किसी चमत्कार वश इसके बदन पर एक तरह "अल्लाह" और दूसरी तरफ़ "मोहम्मद" लिखा है तो क्या इसे सबसे पहले अधिकतम कीमत पर खरीद कर कथित कुरबानी के जरिये काट-पीट कर खा डाला जाए? अगर खुद ऊपर वाले ने इसके जिस्म पर आटोग्राफ़ करे हैं तो ये प्राणी उसका चहेता होगा लेकिन इसी अल्लाह के आटोग्राफ़ ने इससे तत्काल जीने का अधिकार छीन लिया कि बेटा जा उसी अल्लाह के पास और अपनी हड्डी-बोटी हमें देता जा।
इस लिहाज़ से तो जितने माता-पिताओं ने अपने नौनिहालों का नाम "मोहम्मद" रखा है उन्हें भी तत्काल काट कर अल्लाह की राह में भेज देना चाहिये और उनका मांस पका कर खा लेना चाहिये क्योंकि शायद दुनिया बनाने वाले तक कोई भी चीज भेजने का रास्ता उसके भक्तों के पेट से होकर जाता है।
बेचारा बदकिस्मत बकरा
जय जय भड़ास
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