आज २६ नवम्बर यानी कि मुंबई हमले को पुरे साल होने जा रहे हैं, आज ही के दिन हिन्दुस्तान के मुंबई में आतंकियों ने हमला बोला था, और हमारे जवानों और जांबाजों की बदौलत हमने न सिर्फ़ इस हमले को नाकाम किया था अपितु विजय के साथ साथ पुरे भारतवर्ष की एकता और अखंडता भी सामने आयी थी। आज भी हमारे जांबाज तन मन धन के साथ हमारे सरजमीं की हिफाजत के लिए मुस्तैद हैं।
२६/११ यानि कि आतंकी हमला और उस पर फतह मगर हमारे लोकतंत्र के चारो खम्भे (नि:संदेह दीमक खोखले कर चुके हैं इन्हें) का कर्तव्य, दायित्व और निष्ठा ढेरो प्रश्न छोर गया।
सबसे पहले कार्यपालिका......
अपने नाम के अनुरूप ढील ढिलाई और जो युद्ध हम जल्दी समाप्त कर सकते थे उसके लिए हमने जाने गंवई, उन जानों को हम आतंकी के मत्थे नही मढ़ सकते क्यूँकी निर्णय लेने में ढिलाई के करण हुआ हमारा नुकसान इन्ही अकर्मण्य पुलिस, प्रशासन और पदाधिकारियों की देन रहा। चाहे विशेष दस्ते को बुलाने में देरी आदेश में देरी या फ़िर ऐ टी एस चीएफ़ के मदद के बुलावे का बावजूद कम हॉस्पिटल पर मदद न पहुंचना। नेताओं का अपने नाम के मुताबिक़ श्रेय लेना, और स्थानीय मुख्यमंत्री से लेकर गृहमंत्री तक विवादस्पद कार्य और बयान मगर इन सबमें बाजी मारी मीडिया ने।
इस पुरे युद्ध के दौरान मीडिया कि भूमिका आतंकियों के एजेंट के तौर पर ही तो थी जो पल पल कि ख़बर, पल पल कि तस्वीर को जल्दी जल्दी बेचने के चक्कर में भूल गया कि यहाँ तिरंगा कि अस्मिता दांव पर लगी है। इस ख़बर को बेचने के धंधे में लगे हमारे मिडियाकर्मी किसी युद्ध के सिपाही से कम नही लग रहे थे और बाकायदा अपने संस्था के लिए जम कर बाजार बटोरा, जब इन पर नकेल कसने कि तैयारी शुरू हुई तो सबकी कि एक स्वर में हाय तौबा कि ये मीडिया कि आवाज को घोंटना है।
अब जरा आज कि परिदृश्य पर एक नजर डालें, तो हरेक मीडिया चाहे वो खबरिया चैनल हो या अखबार जहाँ इस विजय दिवस को भुनाने में लगा हुआ है वहीँ अपना अपना बड़प्पन आप सभी खबरिया चैनल पर देख सकते हैं।
हमारी आँखे आज नम हैं मगर इसलिए नही कि हम पर हमला हुआ, इसलिए भी नही कि हमारे कई साथी हमारे साथ आज नही हैं अपितु इसलिए कि तिरंगे की हिफाजत करने वालों की शाहदत बरबस हमें गमगीन बना देती है, उनका न होना आंसू का सबब बन जाता है मगर हम गमगीन क्यूँ होयें ?
आज हमारा विजय दिवस है , भले ही कुछ जांबांज हमारे बीच नही हैं मगर तिरंगे की अस्मिता सुरक्षित है और अपने लाडलों पर नाज भी कर रही है। हमारी आँखें नम हैं मगर हम खुश हैं।
अपने विजय दिवस पर आइये शहीदों को याद करें और मातृभूमि के लिए शपथ लें।
जय हिंद
4 comments:
आपने बिल्कुल सच कहा , हमारी आँखें नम हैं पर हम खुश हैं । देश के उन जांबाजों को श्रद्धांजलि और नमन ।
26-11-2008 के शहीदों को नमन करता हूँ!
धिक्कार है अन्घे संविधान को कि
आज तक दोषियों को सजा नही मिल पाई है!
ha hum khush hai par dukh ki is nami ko khushi ki nami se dhank kar use bhool nahi sakate.ise mahasoosate hi aage jana thik hoga.
rajneesh ji
aapne bilkul sahi baat kahi magar jab tak rajniti ki bisaat par apni rotiyan senki jati rahengi tab tak koi kasaab ya koi afzal ko saja nhi milegi aur iske liye jagruk banna hoga khud janta ko hi.........ek baar phir usi vidroh ki aag ko jalana hoga jo 1857 mein jali thi , phir kisi ko wo pahal karni hogi tabhi is samasya se nijaat milegi agar netaon ke bharose rahe to desh kab bik jayega pata bhi nhi chalega.
isi se related kuch dard maine bhi apni post mein likha hai zara dekhiyega.
http://redrose-vandana.blogspot.com
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