सम्मेलन के मुख्य आयोजकों में शामिल प्रो रिचर्ड सोराबजी ने कहा कि गांधी राजनीति में अपने योगदान के लिए ज्यादा जाने जाते हैं, लेकिन लोगों को उनके इस पक्ष के बारे में कम जानकारी है कि उनका ज्यादा मजबूत आग्रह अराजनीति के प्रति था।
सोराबजी ने कहा कि गांधीजी ने राजनीति को एक आंतरिक विकास से जोड़ना चाहा जो राजनीतिक नहीं, नैतिक था। उन्होंने कहा कि उनकी राजनीतिक कार्रवाइयां इस विकास पर निर्भर थीं। अगर उसका उल्लंघन होता तो उन्हें (राजनीतिक कार्रवाइयों को) वापस लिया जा सकता था। सोराबजी ने कहा कि लेकिन क्या ऐसे नैतिक और राजनीतिक लक्ष्य सुसंगत भी थे यह कैसे होता है, प्राचीन स्टोइक ने इसे दिखाने की कोशिश की, लेकिन क्या गांधी कर सके।
यह सवाल एक दार्शनिक के रूप में गांधी की रूचियों से हमें रूबरू करता है। उनकी दार्शनिक रूचियों को सबसे पहले ऑक्सफोर्ड से प्रकाशित उनकी रचनाओं के तीन खंडों में संकलन में पेश किया गया। यह संकलन 1986-87 में आया था।
सोराबजी ने कहा कि गांधीजी ने राजनीति को एक आंतरिक विकास से जोड़ना चाहा जो राजनीतिक नहीं, नैतिक था। उन्होंने कहा कि उनकी राजनीतिक कार्रवाइयां इस विकास पर निर्भर थीं। अगर उसका उल्लंघन होता तो उन्हें (राजनीतिक कार्रवाइयों को) वापस लिया जा सकता था। सोराबजी ने कहा कि लेकिन क्या ऐसे नैतिक और राजनीतिक लक्ष्य सुसंगत भी थे यह कैसे होता है, प्राचीन स्टोइक ने इसे दिखाने की कोशिश की, लेकिन क्या गांधी कर सके।
यह सवाल एक दार्शनिक के रूप में गांधी की रूचियों से हमें रूबरू करता है। उनकी दार्शनिक रूचियों को सबसे पहले ऑक्सफोर्ड से प्रकाशित उनकी रचनाओं के तीन खंडों में संकलन में पेश किया गया। यह संकलन 1986-87 में आया था।
2 comments:
बहुत अच्छी लगी यह जानकारी.....
जानकारी के लिए आभार.
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