भाई रणधीर "सुमन" जी और भाई गुफ़रान जी मेरी कुछ निजी बातें
आज कल व्यस्तता की अमीरों को होने वाली बीमारी ने मुझ महाफटीचर को भी अपने चपेट में ले लिया है। सामान्यतः व्यस्तता एक राजरोग है जो कि अमीरों को हुआ करता है लेकिन जब से हमारी बेटी हुमा नाज़ घर पर आयी है तब से हम बिना कुछ करे ही व्यस्त हो गये हैं। भाई सुमन जी से कहा था कि प्रोजेक्ट के बारे में विस्तार से लिख भेजता हूं और गुफ़रान भाई से आने का वायदा करा है लेकिन दोनो अब तक रखे हुए हैं। मेरी धर्मपुत्री हुमा नाज़ को उसके (यहां मैं इतनी गालियां लिख दूंगा कि पेज भर जाएगा लेकिन भड़ास न निकल पाएगी इसलिये ये कार्य आप सब के जिम्मे सौंप रहा हूं) पति ने छह माह का गर्भ पेट में लिये मारपीट कर दर-बदर ठोकर खाने के लिये घर से बाहर निकाल दिया, कारण वही पुराना है, चर्बी आ गयी है अब पत्नी पुरानी लगने लगी है और दूसरी शादी करनी है। बेचारी मेरी बेटी कभी नानी के घर, कभी मामा के घर और कभी अपनी मां यानि आएशा आपा के घर अपनी तकलीफ़ दिल में दबाए भटकती रही क्योंकि वो जानती है कि इनमें से सभी आर्थिक और सामाजिक तौर पर इतने कमज़ोर हैं कि न तो उस कमीने का कुछ बिगाड़ पाएंगे और न ही बेचारी हुमा को अधिक दिनों तक अपने पास रख सकते हैं।मेरी बिटिया ने इस तरह की परिस्थितियों में पांच दिन पहले अस्पताल में बेटी को जन्म दिया। कोढ़ में खाज तो गरीब और बदनसीब को ही होती है सो वैसा ही हुआ, खून पीने वाले व्यवसायिक चिकित्सकों ने बच्चे की दिल की धड़कन कम सुनाई देने का पुराना नाटक खेल कर सिज़ेरियन आपरेशन कर डाला जिसके चलते अब चालीस हजार का बिल बना दिया है। अपनी भी तो मुंह तक फटी है सो जानते हैं कि हमें तो न पैसा चाहिए न प्रसिद्धि और न शांति लेकिन इन बच्चों को तो चाहिए। गुफ़रान भाई यहां तो किसी से बैतूलमाल और कर्ज़-ए-हसना की बात करो तो लोग मुंह देखते हैं जैसे मैंने कुछ विचित्र कह दिया हो और दाढ़ियां लम्बी-लम्बी रखे हुए हैं। अब आप लोग खुद ही विचार करिये कि मेरे जैसा फालतू इंसान आजकल किस कदर व्यस्त है। सवाल हैं हुमा की समस्या का क्या हल निकाला जाए? मेरी नवजात नातिन का क्या भविष्य होगा? क्या हुमा के पति जैसे लोगों का कुछ करा जा सकता है? ऐसी ही कहानी मेरी बहन मुबीना और उसकी नन्ही से बेटी ताबिना की है। जय जय भड़ास
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