बाबरी मस्जिद
इतनी हाय तोबा मचाने की ज़रूरत नहीं है जो होना था हो चूका है उसके बाद खून की गर्मी निकालने वाले गर्मी भी निकाल चुके हैं कानून बघारने वाले कानून बघार चुके हैं और नोट कमाने वाले नोट कमा रहे हैं वोट कमाने वाले वोट कमा रहे हैं रही बात मस्जिद या मंदिर की तो जब ईमान ही यहाँ मुर्दा है तो खुदा के घरों के होने या न होने की बात कोई मायने नहीं रखती 'मरी इंसानियत' को ढोते-ढोते हम बच्चे से जवान हो गए अब इतने सालों बाद फिर से वही खेल शुरू हुवा शायद अबकी बार हमारे जवानी के कंधे इसको बुढ़ापे तक ढोएंगे क्या करें आदत सी पड़ चुकी है जस्टिस लिब्राहन तो बेचारे फुटबाल बन गए मार्च १९९२ से लेकर अब तक जो भी सत्ता में आया अपने हिसाब से किक करता रहा है और अब देखिये बेचारे की ऐसी किरकिरी हुई की पूरी तरह से बुढ़ापा ख़राब हो गया लोग सवाल करते हैं की १६ साल ये जांच क्यूँ चली लेकिन किसी ने जाँच की रिपोर्ट जो ३ महीनो में देनी थी जब पूरी नहीं हुई तो सरकार से सवाल क्यूँ नहीं किया क्यूँ पंजे वाली सरकार को कटघरे में नहीं खड़ा किया या उसके बाद कमल वालों को क्यूँ नहीं जाँच पूरी करने के लिए बोले सीधी सी बात है हर कोई अपनी अपनी रोटियां सेंक रहा था अब जब सब कुछ भुला कर लोग फिर से देश और विकास की बात करने लगे हैं तो फिर से वही सब शुरू किया जा रहा है और इसको शुरू करने में देश को खोखला करने वाले सबसे बड़े दल ने फिर से पहेल की है जब रिपोर्ट मिल चुकी थी तो उसको संसद में पेश करने के बजाये हमेशा की तरह संसद के बाहर ही बहस शुरू कर दी इसके पीछे क्या है किसी से छुपा नहीं अब देखना है की अयोध्या को फिर से अशांत करने की कोशिश कितना रंग लाती है और मुर्दा हो चुके तथाकथित देशभक्त संगठनों को संजीवनी देने वाला ये काम देश को फिर से कितने पीछे धकेलता है कितने घोटाले इसके पीछे दबे रह जायेंगे कितने भ्रष्टाचारी आसानी से जनता की आँखों के सामने से निकल जायेंगे लेकिन हमें इनसे क्या मतलब हमको फिर से मौका जो मिलेगा अपनी अपनी रोटियां सेंकने का,
यहाँ कौन नहीं जनता की न मंदिर बनने वाला है न ही मस्जिद क्यूंकि जैसे ही इनमे से कुछ भी बना सब पहले जैसा हो जायेगा और इन राजनितिक दलों के चकलाघरों में चढ़ावा आना बंद हो जायेगा ये ऐसा कभी नहीं होने देंगे बस सवा अरब आबादी में से चंद हज़ार इनके दिखाए रास्ते पर चलके कटते मरते रहेंगे और पूरे देश को अशांत किये रहेंगे.........,
क्या कोई ये भी जानना चाहेगा की अयोध्या को क्या चाहिए क्या किसी ने अयोध्या के मर्म को भी समझने की कोशिश की है क्या आस्था के नाम पर धर्म को पैरों तले रौंदती ये अंधों की भीड़ कभी ये समझ पायेगी की उसने शांत,शीतल, पवित्र अयोध्या को पूरे संसार में किस रूप में प्रचारित कर दिया है अपने ही देश में अपने ही लोगों के बीच अयोध्या असुरक्षित सी है सिसकती सी डरी सहमी सी अयोध्या अपनों के लहू से लहू-लुहान अपनों के दिए ज़ख्मो को नासूर बनते ख़ामोशी से देख रही है आखिर अपनी व्यथा सुनाये भी तो किसको यहाँ तो हर तरफ व्यापारी घूम रहे हैं जिनका धर्म बस एक है धन और सिर्फ धन.......शायद अब पहेल करने की बारी हम सभी की है अयोध्या को इन व्यापारियों से आजाद कराने की......
आपका हमवतन भाई ...गुफरान सिद्दीकी (अवध पीपुल्स फोरम अयोध्या,फैजाबाद)
इतनी हाय तोबा मचाने की ज़रूरत नहीं है जो होना था हो चूका है उसके बाद खून की गर्मी निकालने वाले गर्मी भी निकाल चुके हैं कानून बघारने वाले कानून बघार चुके हैं और नोट कमाने वाले नोट कमा रहे हैं वोट कमाने वाले वोट कमा रहे हैं रही बात मस्जिद या मंदिर की तो जब ईमान ही यहाँ मुर्दा है तो खुदा के घरों के होने या न होने की बात कोई मायने नहीं रखती 'मरी इंसानियत' को ढोते-ढोते हम बच्चे से जवान हो गए अब इतने सालों बाद फिर से वही खेल शुरू हुवा शायद अबकी बार हमारे जवानी के कंधे इसको बुढ़ापे तक ढोएंगे क्या करें आदत सी पड़ चुकी है जस्टिस लिब्राहन तो बेचारे फुटबाल बन गए मार्च १९९२ से लेकर अब तक जो भी सत्ता में आया अपने हिसाब से किक करता रहा है और अब देखिये बेचारे की ऐसी किरकिरी हुई की पूरी तरह से बुढ़ापा ख़राब हो गया लोग सवाल करते हैं की १६ साल ये जांच क्यूँ चली लेकिन किसी ने जाँच की रिपोर्ट जो ३ महीनो में देनी थी जब पूरी नहीं हुई तो सरकार से सवाल क्यूँ नहीं किया क्यूँ पंजे वाली सरकार को कटघरे में नहीं खड़ा किया या उसके बाद कमल वालों को क्यूँ नहीं जाँच पूरी करने के लिए बोले सीधी सी बात है हर कोई अपनी अपनी रोटियां सेंक रहा था अब जब सब कुछ भुला कर लोग फिर से देश और विकास की बात करने लगे हैं तो फिर से वही सब शुरू किया जा रहा है और इसको शुरू करने में देश को खोखला करने वाले सबसे बड़े दल ने फिर से पहेल की है जब रिपोर्ट मिल चुकी थी तो उसको संसद में पेश करने के बजाये हमेशा की तरह संसद के बाहर ही बहस शुरू कर दी इसके पीछे क्या है किसी से छुपा नहीं अब देखना है की अयोध्या को फिर से अशांत करने की कोशिश कितना रंग लाती है और मुर्दा हो चुके तथाकथित देशभक्त संगठनों को संजीवनी देने वाला ये काम देश को फिर से कितने पीछे धकेलता है कितने घोटाले इसके पीछे दबे रह जायेंगे कितने भ्रष्टाचारी आसानी से जनता की आँखों के सामने से निकल जायेंगे लेकिन हमें इनसे क्या मतलब हमको फिर से मौका जो मिलेगा अपनी अपनी रोटियां सेंकने का,
यहाँ कौन नहीं जनता की न मंदिर बनने वाला है न ही मस्जिद क्यूंकि जैसे ही इनमे से कुछ भी बना सब पहले जैसा हो जायेगा और इन राजनितिक दलों के चकलाघरों में चढ़ावा आना बंद हो जायेगा ये ऐसा कभी नहीं होने देंगे बस सवा अरब आबादी में से चंद हज़ार इनके दिखाए रास्ते पर चलके कटते मरते रहेंगे और पूरे देश को अशांत किये रहेंगे.........,
क्या कोई ये भी जानना चाहेगा की अयोध्या को क्या चाहिए क्या किसी ने अयोध्या के मर्म को भी समझने की कोशिश की है क्या आस्था के नाम पर धर्म को पैरों तले रौंदती ये अंधों की भीड़ कभी ये समझ पायेगी की उसने शांत,शीतल, पवित्र अयोध्या को पूरे संसार में किस रूप में प्रचारित कर दिया है अपने ही देश में अपने ही लोगों के बीच अयोध्या असुरक्षित सी है सिसकती सी डरी सहमी सी अयोध्या अपनों के लहू से लहू-लुहान अपनों के दिए ज़ख्मो को नासूर बनते ख़ामोशी से देख रही है आखिर अपनी व्यथा सुनाये भी तो किसको यहाँ तो हर तरफ व्यापारी घूम रहे हैं जिनका धर्म बस एक है धन और सिर्फ धन.......शायद अब पहेल करने की बारी हम सभी की है अयोध्या को इन व्यापारियों से आजाद कराने की......
आपका हमवतन भाई ...गुफरान सिद्दीकी (अवध पीपुल्स फोरम अयोध्या,फैजाबाद)
2 comments:
nice
बहुत बढि़या , बहुत सुन्दर । कड़वा सच । जोर का झटका जोर से ..........
नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द ''
प्रधान संपादक
ग्वालियर टाइम्स समूह
www.gwaliortimes.com
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