आधुनिक मिथिला की राजधानी दरभंगा और मिथिलांचल की हृदयस्थली मधुबनी आदि काल से देश में अपना एक अलग स्थान रखता है। जनक नंदिनी माँ सीते की पावन भूमि ने हमेशा अपनी उर्वरा बरकरार रखी है, चाहे वो खेतों में उपजता अनाज हो या शिक्षा के मन्दिर में शिक्षित होते वैदेही के बच्चे।
शिक्षा में अगर मिथिला अपनी उपथिति दर्ज करता रहा है तो इसके लिए कोई अन्ग्रेज़ी स्कूल नही, अंग्रेजों की पढाई नही अपितु बच्चों की अपनी लगन मेहनत तपस्या और मिथिलांचल के कुछ शिक्षा मंदिरों का ही तो योगदान रहा है। संयोग वश इस पवित्र शाला का आँगन मुझे भी मिला, इसी शाला में मैंने पढाई की, अपने नौनिहाल से लेकर यौवन तक इस विद्यालय और महाविद्यालय का हिस्सा रहा।
अभी कोजगरा ( विवाहोपरांत वर के यहाँ होने वाला मैथिल उत्सव) में घर गया तो अपने पुराने दिनों को ताजा करते हुए अपने इन घरों से मिलने गया, विकाश की बयार को तूफ़ान का रूप दे चुके नीतिश राज या इस से पूर्व के भी राजों की उपेक्षा के कारण कभी प्रान्त का मस्तक रहा ये विद्या का मन्दिर की दुर्दशा को देख कर मन खिन्नता से भर उठा। आप ख़ुद तस्वीरों से जायजा लीजिये।
मेरा पहला स्कूल, लहेरियासराय में एम् एल एकेडमी और एल आर कन्या उच्च विध्यालाह के बीच स्थित सेंत पाल मोंटेसरी स्कूल, शिक्षा के साथ संस्कार देने के कारण एक अलग पहचान है इस स्कूल की।
प्रसिद्ध महारानी लक्ष्मीवती एकेडमी (एम् एल एकेडमी ) लहेरियासराय, उच्चतर माध्यमिक तक की पढाई के लिए कभी इस स्कूल की गिनती बिहार के सर्वश्रेष्ठ स्कूलों में हुआ करती थी।
वाटसन स्कूल मधुबनी, मिथिला की कई विभूतियों ने अपने शिक्षा संस्कार यहाँ से लिए, देश की सेवा में लगे अनगिनत उच्चतम योग्यताधारी इस विद्यालय के मान-मस्तक को शोभायमान करते हैं।
राम कृष्ण महाविद्यालय, मधुबनी। एक ऐतिहासिक आन्दोलन का गवाह। शिक्षा हो या राजनीति इस महाविद्यालय ने अपने पुत्रों से जो अपेक्षा रखी उस पर इसके छात्र खडे उतरे और देश के लिए आज भी योगदान दे रहे हैं।
हमारी इन ऐतिहासिक धरोहरों पर राज्य सरकार के साथ स्थानीय प्रसाशन की उदासीनता कबीले तारीफ़ है जिसके कारण ये अन्तिम साँसे ले रही हैं।
इसके विस्तृत विवरण की प्रतीक्षा कीजिये।
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