राज ठाकरे ने विधायकों द्वारा सिर्फ़ मराठी भाषा में पद की शपथ लेने की बात करके एक बार फिर से चिरकुटई शुरू कर दी है। इस के पास भाषा के अलावा कोई एजेन्डा है ही नहीं। साफ़ है कि यदि आप किसी दूसरी भाषा में बोलेंगे तो आप महाराष्ट्र का हित नहीं कर पाएंगे क्योंकि आप वहां के लोगों की भाषा ही नहीं समझते। क्या राज ठाकरे को पता है कि इसी प्रदेश में कोंकणी भी बोली जाती है जो कि मराठी से सर्वथा भिन्न है और उनका रहन-सहन भी बिल्कुल अलग है। जरूरी तो बस इतना रहता है कि जनता का नुमाइंदा उस वर्ग की भाषा बोली और भाव के साथ जरूरतें समझ सके जिसकी वह नुमाइंदगी कर रहा है। स्वयं सोचिये कि यदि क्षेत्र का प्रतिनिधि मराठी में शपथ लेता है और मराठी में ही पांच साल उस शपथ को तोड़ता रहता है तो क्या उपयोग?
राज ठाकरे जैसे लोगों में बस इतनी दम है कि व्यापारिक प्रतिष्ठानों के नामपट देवनागरी लिपि में करवा सकें, अगर जरा सा भी पिछवाड़े में दम है तो राज्य में विदेशों से पोषित शिक्षा के क्षेत्र में चलने वाली स्कूल-कालेज जैसे व्यापारिक संस्थाओं के नाम बदलवा कर दिखाएं। राज्य में अंग्रेजी शिक्षा चले कोई एतराज नहीं लेकिन दुकान पर अंग्रेजी में बोर्ड न हो। कितना बड़ा लबेद्दूपन है। मुंबई में ही मैने मुंब्रा, कौसा और चीता कैम्प जैसी तमाम जगहों पर दुकानों के नामपट उर्दू में लिखे देखे हैं। इससे क्या फर्क पड़ता है लेकिन राज ठाकरे के चूहों छछूंदरों को पता है कि इन जगहों पर नाटक करा तो इतने जूते पड़ेंगे कि आने वाली सात पुश्तें गंजी पैदा होंगी। शिक्षा के नाम पर धंधा करने वालों के नामपट नहीं बदलवाएंगे क्योंकि अंग्रेजी में शिक्षा मान्य है यानि कि देसी अंग्रेज अगर पेले रहें तो चल जाएगा लेकिन अगर हिंदी वाले छुआ भी दें तो चिल्लाना शुरू कर देते हैं कि मराठी अस्मिता को खतरा है मराठी अस्मिता के साथ बलात्कार हो रहा है।
भाषा की चिरकुट राजनीति करने वाले का कोई राष्ट्रीय विचार नहीं है। ये उन लोगों में से है जिसने महाराष्ट्र की जनता को सबसे अधिक परेशानी में डाला है। इसे भाषा दिखती है जनादेश नहीं।
जय जय भड़ास
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