पंखों वाली भड़ास पर डाली एक पोस्ट के जवाब में जो दिल की बाते हैं सादर प्रस्तुत हैं गौर से पढ़िये और सलाह दीजिये जिसे इस सलाह की भयंकर जरूरत है
दोस्तों, पिछले दिनों भड़ास से हटाए गए कुछ साथियों(हा..हा...हा... ये बताने में अस्थमा हो जाएगा क्या कि जिसे हटा दिया है वह एक दिन तुम्हारे ही द्वारा अत्यंत कुटिलता से भड़ास का एक और मालिक घोषित करा गया था जिसका नाम डा.रूपेश श्रीवास्तव है जिसे हर पुराना भड़ासी जानता है) ने विरोध के लिए बाकायदा एक ब्लाग(जो ब्लाग बनाया है उसका नाम कुछ अलग नहीं बल्कि भड़ास ही है तकनीकी मजबूरी के चलते जिसका यू.आर.एल. भिन्न बनाना पड़ा था किन्तु धन्य है तकनीक का विकास जिसके चलते हमें अधिक बेहतर यू.आर.एल. bhadas.tk मिल गया जिसके लिये तुम लालाजी को फोन करके खूब रोये भी थे क्योंकि तुम खुशफहमी पाले बैठे हो कि तुम सबको मूर्ख बनाकर इस्तेमाल करते रहोगे जैसे कि मनीषराज को करा था जिन्हें तुमने भड़ास का राष्ट्रीय प्रवक्ता बना दिया था,मुझे भी मालिक और प्रधान संरक्षक वगैरह जैसे लालीपाप चटा रखे थे, श्री हरेप्रकाश उपाध्याय जी को भी तो संरक्षक बना रखा था लेकिन अचानक संरक्षक को ही सदस्यता समाप्त करके हटा दिया, कितने पाखंडी हो तुम.... भोले बनने का ढोंग करके कब तक लोगों को बेवकूफ़ बनाते रहोगे.....???जबकि माडरेटर ही सब चाभियां रखता है) बनाकर हर दो दिन में एक पोस्ट यशवंत सिंह के खिलाफ डाल रहे हैं। इन पोस्टों में यशवंत सिंह को देश का सबसे बड़ा बनिया, दलाल, कमीशनखोर, स्वार्थी, धंधेबाज बताया जा रहा है और इसके पीछे वजह यह बताया जा रहा है कि भड़ास ब्लाग बनाकर और इस मंच का इस्तेमाल करते हुए भड़ास4मीडिया बनाकर और भड़ास4मीडिया के बाद अब प्रधानजी डाट काम लांच कर पैसा क्यूं कमाने लगा हूं। अगर कमा रहा हूं तो उसमें उन लोगों को क्यों नहीं दिया जा रहा है जो भड़ास से जुड़े हुए हैं या जुड़े रहे हैं।(तुम्हारे भोलेपन का पाखंड या तो तुम्हारे जैसे लोग ही स्वीकारेंगे या फिर वो जो कि तुम्हारी फ़ितरत से वाकिफ़ नहीं हैं या जो डा.रूपेश श्रीवास्तव को नहीं जानते; तुम्हें मैंने अपना भाई स्वीकारा है लेकिन तुम्हारे ढोंग के मुखौटे को नहीं स्वीकार सका, मेरा विरोध यशवंत सिंह से कभी नहीं है उसके कुटिल सिद्धांतो और उस शैली से है जिसके चलते वह अभी भी अपने आपको पाक़ साफ़ जता रहा है जिस दिन तुम इन सबसे मुक्त होकर सहज भाव से स्वीकार लोगे तो तुम जानते हो कि डा.रूपेश का स्वभाव कैसा है लेकिन ये तुम्हारा दुराग्रह ही है जो हम भड़ासियों को बाध्य करे है कि हम तुम्हारे कान खींचे या हाथ पकड़ कर घसीटें लेकिन सही रास्ते पर लाएं.... वो रास्ता जो भड़ास के मूल दर्शन का है हम सबको इंतजार रहेगा )जो लोग ये सब आरोप लगा रहे हैं, लिख रहे हैं, उनकी पीड़ा को मैं समझ सकता हूं। ये लोग जब भड़ास में थे तो इसी ब्लाग पर गूगल के विज्ञापन लगाए रखता था और उसका एक बार पांच हजार रुपये का चेक भी आया लेकिन मजेदार है कि आजकल तो इस ब्लाग पर कोई कामर्शियल विज्ञापन भी नहीं हैं।(तुम्हारी यही चालाकी, कुटिलता और दुराग्रह जिसे हम भड़ासी निजी तौर पर तुम्हारी मूर्खता ही मानते हैं, तुम्हें सच्चे मित्रों से दूर करे है आशा है और प्रयास हैं इसी दिशा में कि कभी तो बदलोगे और तुम्हारा दिल जानता है कि जो पैसों का रोना तुम रो रहे हो वो किसके बारे में कह रहे हो..... डा.रूपेश श्रीवास्तव के बारे में?? जो अगर पैसा कमाना चाहे तो कब का अस्पताल रूपी दुकान खोल कर तुमसे सौ गुना ज्यादा पैसा और दुनियाबी सुख कमा सकता था और अभी भी मुंबई में तुमसे हजार गुना अधिक बेहतर स्थिति में है) जो हैं वे होम एड हैं या ब्लागों के लिंक हैं। दूसरी चीज, ब्लागिंग में आने के बाद इसकी आगे की संभावनाओं को देखते हुए डाट काम पर आया और भड़ास4मीडिया शुरू किया। इसके लिए न सिर्फ 45 हजार रुपये महीने की नौकरी छोड़ी(लाइव एम नाम की मोबाइल कंपनी में थे और इससे पहले जागरण में थे LIVE-M के रंजन श्रीवास्तव ही सबको बता सकते हैं या जागरण के लोग ही बता देंगे कि तुम्हारी नौकरी का क्या हुआ था ये किस्से कहानियां सुना कर तुम उन नये लोगों को बहका और बरगला कर अपने आप को बहुत बड़ा महान संघर्ष करने वाला योद्धा सिद्ध कर सकते हो जो तुम्हारे बारे में कुछ नहीं जानते हैं) बल्कि एक चुनौती लिया जिसमें फेल होने पर सड़क पर आ जाने का पूरी तरह खतरा था। शुरुआती दिक्कतों के बाद मामला संभलता गया और निःसंदेह भड़ास4मीडिया के बनने बढ़ने और मुझे संभालने में ऐसे कई साथियों का हाथ है जो किन्हीं कारणों से अब भड़ास ब्लाग के सदस्य नहीं हैं।खैर, शुरू में इनके लिखे को ये मानकर उपेक्षित करता रहा कि भड़ास से हटाए जाने के चलते यह स्वाभाविक तात्कालिक गुस्सा है जो कुछ दिनों में शांत हो जाएगा।(किन-किन को हटाया और क्यों हटाया है ये बताने में तो बुखार आ जाएगा क्योंकि कल तक तो ये ही लोग जैसे मुनव्वर सुल्ताना भड़ास माता कही गयी थीं, मनीषा नारायण नामक लैंगिक विकलांग हिंदी की पहली लैंगिक विकलांग ब्लागर हैं और उन्हें भड़ास ने मंच प्रदान करा था तो मनीषा दीदी सलाहकार मंडल में थीं, मनीषराज से लेकर रजनीश के. झा तक कितने नाम तुम्हें गिना दूं जिनके लेखन की धार से भड़ास ने प्रसिद्धि के शिखर को छुआ लेकिन तुम्हारी तानाशाही की लोलुपता के चलते तुमने कुटिलता से सबको धीरे-धीरे से हटा दिया क्योंकि ये सारे लोग तुम्हारी चालाकी से वाकिफ़ ही नहीं थे, पहले भड़ास के मंच से किसी की सदस्यता समाप्त होती थी तो उस पर लोकतांत्रिक चर्चा होती थी लेकिन जब से तुमने तकनीकी कब्जा होने की कुटिलता दिखाना शुरू करा है तुम चुपचाप किसी को भी हटा देते हो किसे पता चलेगा क्योंकि तुम तो अब बन गये हो "दुनिया के सबसे बड़े हिंदी ब्लाग" के मालिक जिसके चलते भड़ास की प्रसिद्धि को दुह रहे हो ) लेकिन ऐसा नहीं हुआ और इन लोगों का यशवंत को दुनिया का सबसे बड़ा खलनायक (दुर्गुणों, बुराइयों और कमीनगी का शहंशाह) बनाना जारी रहा(अभी भी अपने आप को दुनिया में सबसे बड़ा कहलाने की भूख मिट नहीं रही है....अरे तुम बस एक मुखौटाधारी चिरकुट ब्लागर थे जो भड़ासियों के प्रेम के चलते इतने बड़े दिखने लगे हो लेकिन बड़ा सिर्फ़ तुम्हारा मुखौटा है इसके पीछे का चेहरा तो वही है जो हरेक को इस्तेमाल करने की नीति बनाता रहता है) इन लोगों से मेल के जरिए और एसएमएस के जरिए अनुरोध किया कि भइयों, मान जाओ। पर मेरे अनुरोध को मेरा बनियापा समझकर ये लोग और उग्र हो गए और लगे दे दनादन कलम तोड़ने। इस प्रकरण पर मैं कोई निर्णायक स्टैंड लेना चाहता हूं। इसके लिए, मैंने कल दिन भर अपने कई वरिष्ठ अग्रजों, साथियों से विचार-विमर्श किया तो उनके अलग-अलग सुझाव आए( ये तुम्हारा दिल जानता है कि तुम अपनी कुटिलता के चलते खुद कितने अकेले हो, कोई न वरिष्ठ है तुम्हारे लिये न ही अग्रज और न ही कोई तुम्हारा साथी है क्योंकि तुम सबको इस्तेमाल करने के फेर में रहते हो..... ये सारे सुझाव खुद तुम्हारी कुटिल बुद्धि की उपज हैं लेकिन ध्यान रखना कोई तुम्हें कुछ सुझाव न देगा क्योंकि जो तुम्हें सम्हाल सकते थे उन्हें तो अपनी कुबुद्धि के चलते तुमने अपने से दूर कर दिया है, तुम्हें याद होगा कि तुमने एक बार इसी पंखों वाली भड़ास पर एक पोस्ट डाली थी कि भड़ास से जुड़ा हर व्यक्ति अपने ब्लाग पर भड़ास4मीडिया की लिंक लगाए तो खुद ही सोचो कि कितने पंखों ने ऐसा करा है.... हा...हा...हा... मैं ही था जिसने सबसे पहले ऐसा करा था) पहले सुझाव पढ़ें--
एक का कहना था कि जब आप मशहूर होने लगते हैं, आपकी स्वीकृति बढ़ने लगती है, आपका नाम होने लगता है तो कुछ जले-भुने लोग आपको टारगेट पर ले लेते हैं और कुछ भी उटपटांग लिखते बकते करते दिख-मिल जाते हैं। इनका एक ही इलाज है, अंतिम हद तक इग्नोर करिए। जितना रिएक्ट करेगे उतना ये उग्र होंगे क्योंकि इससे इनका मंशा सधता है।(तुम चुटकुलों की किताब लिखो अच्छी बिकेगी...अच्छा जोक है)
दूसरे का कहना था कि इन लोगों ने वाकई हद कर दी है। साइबर सेल में रिपोर्ट दर्ज कराकर समुचित इलाज करवा देना चाहिए।( ये सही सलाह है मेरी राय में तुम्हें जरूर अपनाना चाहिये ताकि अविनाश दास वाले प्रकरण का खुलासा भी लगे हाथ हो ही जाए,हम सारे भड़ासी जेल चले जाएंगे। तुम भड़ास के मरे हुए पुराने शरीर को न तो जलाना, न दफ़नाना बस इसी तरह ममी बना कर उसका रूप blog लिख कर पट्टियां लपेट कर बदले रहना और खूब सारे पंखे चालू रखना ताकि ममी सड़ न जाए; अरे कुबुद्धि! क्यों नहीं समझते कि भड़ास का पुनर्जन्म हो चुका है और शिशु भड़ास अभी छोटा है लेकिन ममी भड़ास blog से ज्यादा जीवन है मुर्दे को पंखा झलने से वह उठ कर नहीं खड़ा होता है)
तीसरे का कहना था कि यार यशवंत, तुम्हारे पर पहले ही कई तरह के आरोप लगते रहे हैं और उन आरोपों से तुम खुद मजबूत हुए, आरोप लगाने वाले नहीं। होने दो, इससे तुम्हारी चर्चा बनी रहेगी और आज की दुनिया में जो चर्चा या कुचर्चा में नहीं होता वो समझ लो मार्केट या मेनस्ट्रीम से बाहर है।( जिसने कहा, सही है )
चौथे साथी ने मुझसे ही पूछ दिया कि क्या किसी अनाम मंच पर आप दूसरों के लिखे चूतियापों को पढ़ने के लिए वक्त निकाल पाते हैं? अगर निकाल पाते हैं तो फिर आपसे बड़ा कोई चूतिया नहीं है। आप सार्थक चीजों को पढ़िए। नेट पर निर्रथक का तो अंबार लगा हुआ है। बुरा पढ़ेंगे देखेंगे सोचेंगे तो बुरा बनेंगे। ( पंखों वाली भड़ास के चौथे में आए इस साथी को इतना भी नहीं पता कि मंच अनाम नहीं है ढक्कन!!! मंच का नाम है.... भड़ास और यू.आर.एल है bhadas.tk)
पांचवें साथी का कहना है कि यह चरम खंडन का दौर है। इन दिनों हर वो नई चीज जो अलग हट के बनने या बनाने की कोशिश की जा रही है, वो निशाने पर है और उसे तब तक निशाने पर रखा जाता है जब तक उसे तोड़ नहीं दिया जाता या उसे खत्म नहीं कर दिया जाता। ऐसे में यह बहुत जरूरी है कि विरोध करने वालों का विरोध करने की बजाय नई चीज को और ज्यादा मजबूत करने, आगे ले जाने में जोर लगाना चाहिए ताकि प्लस में सृजन रहे, विरोध नहीं।( सही है... तुम्हारे पाखंड को हम तोड़ने का जतन कर रहे हैं और तुम हमारे भड़ास के दर्शन को तोड़ने का हर प्रयास कर रहे हो)
छठें साथी का कहना है कि बेटा यशवंत, तुमने भी बहुत लोगों को गरियाया है, अब झेलो। ईश्वर इसी दुनिया में सबके साथ न्याय करता है। ये तुम्हारे लिए वाकई प्रायश्चित का वक्त है।(ये वाकई में सच्चा मित्र होगा...लेकिन अफ़सोस तुम अपनी कुबुद्धि के चलते जल्द ही इसे इस्तेमाल करोगे और चेतते ही यह तुम्हें छोड़ जाएगा)
सातवें सज्जन के मुताबिक भड़ास जिस गाली-गलौज का प्रतीक रहा है और उसके आप अगुवा रहे हैं तो वही गाली-गलौज अगर कहीं और से आपको मिल रही है तो इसमें इतने परेशान क्यों हैं। सोचिए उनके बारे में जिन लोगों को आप लोगों ने गरियाकर न सिर्फ दुखी किया बल्कि उनकी प्रतिष्ठा भी धूमिल की। उन लोगों ने तो थोड़ा भी रिएक्ट नहीं किया और न पुलिस में रिपोर्ट लिखाने गए। अगर अभिव्यक्ति की इतनी ही आजादी की बातें करते हैं तो खुद को भी गरियाया जाने का स्वागत करिए। (ये तुम भी जानते हो कि भड़ास के मंच पर कभी किसी को अकारण नहीं गरिआया गया है बस वह तो हम भदेसी हिंदी गंवारों के विरोध का तरीका है मुखौटाधारी कमीनों के विरोध का.... तुम गरिआये जा रहे हो तो कारण ही यही है कि तुम खुद मुखौटा ओढ़े हो, किसानों का मित्र केंचुआ बनने का पाखंड करते हो लेकिन हो उनका खून चूसने वाली जोंक .... तुम गंवार दिखने का वैसा ही नाटक करते हो जैसा कि देश के कुछ राजनेता करते हैं)
आठवें मित्र का कहना है कि उन लोगों के लिखे को कोई नहीं पढ़ रहा है, तुम खुद अपने मित्रों को यूआरएल देकर पढ़वा रहे हो(कितना झूठ है तुम्हारे चरित्र में....आज तक तुमने नये भड़ास का यू.आर.एल. bhadas.tk अगर किसी पोस्ट में लिखा हो तो बताओ... यहां तक कि अभी भी तुम्हारे अंदर का सियार ऐसा करने से डर रहा है)। दूसरी बात, अगर कोई पढ़ता भी है तो वो तुम्हारे बारे में तो धारणा बाद में बदलेगा या बनाएगा, जो लिख रहे हैं, उनके बारे में धारणा पहले बना लेगा इसलिए समझो मुनाफे में तुम्हीं हो। तुम्हें तो कायदे से अपने विरोध के ब्लागों का लिंक भड़ास पर लगा देना चाहिए, ये कहते हुए कि ये हैं मेरे खुले विरोधी, जिनका मैं स्वागत करता हूं, अगर आप भी मेरे खिलाफ लिखना चाहें तो इस क्लब में जुड़ जाएं। ऐसा अगर कर दिया तो समझो वाकई तुम दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक व्यक्ति बन जाओगे, जो बनना अभी बाकी है।(जिस दिन तुम ऐसा कर लोगे मैं खुद तुम्हारा सबसे बड़ा प्रशंसक बन जाउंगा लेकिन ये दिल से करना किसी कुटिल नीति के तहत नहीं वरना हम पता चलते ही फिर से पेलेंगे)
एक अन्य दोस्त का कहना है कि यशवंत गल्ती तो तुम्हारी भी है। आप किसी को यूं ही निकाल दोगे तो उसका रिएक्ट करना स्वाभाविक है। इस प्रकरण से ही पता चलता है कि तुम भी कच्चे खिलाड़ी हो। पक्का खिलाड़ी अपने नजदीकियों को कभी नाराज नहीं करता। जो कच्चे खिलाड़ी होते हैं, वो आपस में ही लड़ जाते हैं। तो बच्चा, अभी खेल खेलना कायदे से सीख। ऐसे नहीं चल पाओगे दिल्ली में।( ये आदमी तो गोपाल राय भाई जान पड़ते हैं वो ही ऐसी सलाह दे सकते हैं लेकिन तुम धूर्त हो उन्हें भी बस इस्तेमाल ही कर रहे हो)
एक सलाह ये थी कि आप लोग उनके बार बार लिखने के बावजूद उत्तेजित नहीं हो रहे हो, भड़ास पर उनके खिलाफ गालियां नहीं लिख रहे हो, उनसे पंगा नहीं ले रहे हो, यही चीज तो उन लोगों को परेशान किए जा रही है। जब जब आप उनको नोटिस करेंगे, उनके लिखे पर रिएक्ट करेंगे, तब तक उनका मकसद हल होता जाएगा। आप लोग प्लीज, चुपचाप अपना काम करें।(ये तुम्हारी मक्कारी मैं अगली ही पोस्ट में दुनिया के सामने ला सकता हूं कि तुमने मुझे क्या-क्या मेल करे हैं और मैंने कोई प्रतिक्रिया मेल के रूप में नहीं करी, तुम जानते हो मैं ऐसा नहीं करूंगा क्योंकि मैं तुम्हारी कुटिलता का मुखौटा उतार कर अपना असली वो भाई चाहता हूं जिसे मैं हमेशा प्यार करता रहूंगा, तुमने झूठ ही सही लेकिन कहा जरूर था कि हम परिवार का विस्तार हैं तुम मेरे परिवार का विस्तार हो लेकिन तुम मुझे कभी स्वीकार ही न पाए इसी कारण मैंने तुमसे सारे संपर्क समाप्त करके बस एक ही संबंध रखा है कि अब हम ब्लाग पर मिले थे और वहीं रहें जब तुम ब्लाग से निकल कर परिवार का हिस्सा बनने लायक सरल हो जाओगे तो अभी भी एक फ्लैट अपने परिवार के इस विस्तार के रहने लिये रख छोड़ा है)
एक दार्शनिक सलाह ये थी कि इसी दिल्ली में कोई यशवंत सिंह रिक्शाचालक भी होगा। अगर उसके खिलाफ कोई ब्लाग बनाकर लिखना शुरू कर दे तो उस रिक्शाचालक को ता-उम्र न पता चले कि उसके खिलाफ लिखा जा रहा है। कोई अगर उसे बता भी दे कि ऐ रिक्शावाले भइया, तुम्हे एक ब्लाग पर गंदी गंदी गालियां दी गई है, तो भकुवा कर इधर उधर ताकेगा, उसे समझे में नहीं आएगा कि गाली कहां दी गई है। तो यशवंत जी, आप भी भकुवाना सीखिए। खुद को रिक्शाचालक मानिए और कुंठितों को विष वमन कर अपना मन हल्का करने का मौका देते रहिए। अगर आप रिएक्ट करेंगे तो उनका मन फिर भारी हो जाएगा और भर जाएगा इसलिए अपना काम करिए।( ये सलाह सही है लेकिन क्या करो तुम्हारी मजबूरी है कि तुम्हारा दिमाग और दिल कुटिलता का दामन ही नहीं छोड़ पाता.... तुम्हें तो प्रसिद्धि का टोटका पता चल गया है और उसका दोहन कैसे करना है ये भी पता चल गया है तो तुम ये सलाह नहीं मान सकते हो, वैसे कन्नी काट कर निकल लेना भी एक कुटिल नीति है लेकिन अब वह तुम्हारे हाथ में नहीं रही)
इतने सारे मत आने के बाद आपकी तरह मैं भी कनफ्यूज हूं, इसीलिए ये पोस्ट लिख रहा हूं। इस मामले में क्या किया जाना चाहिए। बात यहां किसी यशवंत सिंह को किसी ब्लाग पर गाली लिखे जाने की नहीं है। ऐसे मामले में हम जैसे ब्लागर को क्या एथिकल या लीगल या मोरल स्टैंड लेना चाहिए। अभी तक के जो उदाहरण हैं वो ज्यादातर साइबर पुलिस के जरिए आरोपी ब्लागर को पकड़ने के रहे हैं।(भ्रमित होने की क्या जरूरत है तत्काल पुलिस-पुलिस खेल लो अगर मन करता है तो..... कोई सलाह देने न आएगा...... मैं डा.रूपेश श्रीवास्तव बिना किसी दबाव के यह स्वीकार रहा हूं कि मैं और मेरे तमाम साथी भड़ासी श्री यशवंत सिंह जी के पाखंड के मुखौटे को उतारने का मुहिम छेड़े हुए हैं इस के लिये जो भी संवैधानिक सजा है हम सब भड़ासी सहर्ष भुगतने को तैयार हैं...... जय हिंद... जय भड़ास)मैं आप सभी ब्लागरों के दरबार में अपने लिए गुहार लगा रहा हूं, प्लीज, मुझे गाइड करें। इस पोस्ट को पढ़ने वाले हर शख्स से विनती करता हूं कि अपनी राय कमेंट के रूप में नीचे जरूर दे ताकि मैं कोई भी अगला कदम निजी भावावेश में उठाने के बजाय अन्य लोगों की राय के आधार पर उठाऊं जिससे यह मसाल एक नजीर बन सके।
(हम सबने ये पोस्ट पढ़ी है तो जो सलाह या दिल की बाते थीं वो लिखी हैं बाकी तो "होइहै वही जो राम रचि राखा...." की तर्ज पर जिंदगी है)
जय जय भड़ास
4 comments:
भैया,
अपुन ने पेले हीच बोला था ये भैन डा टक्का साला पक्का नौटंकी है, ये गुडी गुडी क्या होता अपुन को नैइ मालूम पण तुमने ही बताया की अच्छा अच्छा को ये साला गुडी गुडी कहते हैं.
भैये याद है अविनाश वाला मामला जब इस माँ की आँख को बलात्कार के आरोप में पुलिस पकड़ कर ले गई थी, और अविनास ने इसकी सच्चई ज़माने के सामने इसी ब्लॉग पर पख दी थी, तब भैन का टक्का रुपेश भैया, रजनीश भैया को फोन पर रिरिया रहा था, आज भी मामला का ऍफ़ आर आई दर्ज है, नही पता तो मोहल्ला वालों से पूछ लो. ये गुडी गुडी वाला सफ़ेद चेहरे का साला नौटंकी आज अच्छा बनने की कोशिश कर रहा है, पण तब साले ने ब्लॉग की लदी को अविनाश के बिस्टर तक पहुंचा दिया था, भीं के टक्के ने मोहल्ले की बीवी तक को ब्लॉग पर घसीटा था और आज स्स्स्स्साला शरीफ बनने का ढोंग,
भइया ये सब इस भैन दे टक्के का ढोंग सिर्फ़ इसलिए की इसे पता है की इस दोगले सफेदी की सारी काली करतूत की कमजोर नब्ज किसके हाथ में है, और इस को छुपाने के लिए ये नोटंकी करेगा ही, अपने को अच्छा बताये या बुरा, इस दो टकिए को पता है की इसकी सारी अच्छाई को भैया सामने लाएगा नही तो छोरुंगा मैं अग्निबाण.
यशवंत को खुली चुनौती........
कानून, पुलिस, ब्लॉग, लेखनी,
आ जा पट्ठे मुकाबले में,
भैन के टक्के कच्छा वैसे ही तू कस कर पकड़ता है, मगर उतडेगी जरुर,
जय जय भड़ास
गुरुदेव,
यशवंत की क्षद्मता, अछइयां, बुराइयां, महानता, विद्वता,पत्रकारिता, और व्यावसायिकता इस सब पर हम से बेहतर कौन जान सकता है.
यशवंत की नौटंकी हमने देखी है, हमने भुगती है. आज भी यद् है जब मेल, टेलीफोन, और एस एम् एस का मुहीम सिर्फ़ और सिर्फ़ यशवंत ने हमसे चलवाया था, हमारी बुराइयां या हमारे अल्प दिमाग की हम भड़ास से संलिप्तता और भड़ास को जीने के कारण सब करते गए जो यस बहुरुपिया हमसे करवाता गया,
अब भड़ास हमारे पास है, भड़ास भडासी के पास है, और यशवंत की सभी अच्छइयां और बुराइयां हमारे पास दस्तावेज के रूप में वर्णित है, बस ये दस्तावेज का उल्लेख और यशवंत की सच्चाई.......... सामने ही तो आना है.
हमें यशवंत के बनिए बनने से कोई आपत्ति नही, वैसे भी यशवंत किसी को भी बेच सकता है, हम यशवंत की तरह परिवार के अंदर नही जायेंगे मगर ४५ हजार का भुलावा वो लोगों को दे सकता है, भडासी को नही, हम इसका भी पोल खोल सकते हैं. मगर भड़ास को बेच कर नही, अरे मुखौटेधारी अपनी काबिलियत (जो है नही) योग्यता ( जो तुमने कभी पाया ही नही) पर करो ना की भडास के लोगों के विचार और सम्मान को बेच कर.
पुलिस और साइबर क्राइम का नाटक हम पहले भी खेल चुके हैं, और वो भी इसी बहुरूपिये के कारण सो इसे पता है की ये गिदरभभकी ये हमें नही दे सकता.
जय जय भड़ास
बस इस आदमी से एक सवाल करना है जिसका कि इसके पास कोई जवाब नहीं है कि इसने मेरी सदस्यता क्यों रद्द करी थी? कई कारण हो सकते हैं कि ये आदमी अव्वल दर्जे का मूर्ख हो,धोखेबाज़ हो,मौकापरस्त हो या फिर पागल हो क्योंकि मैंने,मुनव्वर आपा और हमारे बुजुर्ग साथी श्री मोहम्मद उमर रफ़ाई ने भड़ास पर ऐसा क्या पाप कर दिया था कि बिना किसी चर्चा के इसने पहले अपना तकनीकी कमीनापन दिखाया फिर काफ़ी दिन बाद हमें हटाने की पोस्ट डाल दी कि हम लोग गालियां लिखते हैं और ये जबसे भड़ास4मीडिया बना है तबसे संत बन गया है। मेरे दिल से इसके लिये कोई बद्दुआ नही निकली,भड़ास के मंच पर मुझे हमारे भाई डा.रूपेश श्रीवास्तव ने पहुंचाया था लेकिन जब इसने उस मंच से धक्का देकर बेइज्जत कर दिया तो भाई ने भड़ास को पुनर्जीवित करके मुझे मेरा सम्मान वापस दिलाया जिससे इसकी छाती पर सांप लोट रहा है। इस तरह के लोग ही मेरे जैसे लैंगिक विकलांग बच्चों को इस हाल में ला देते हैं कि हम सम्मान का जीवन न जी सकें और जिंदगी भर तालियां बजाते इनके घर बच्चे पैदा होने पर भीख मांगते रहें। भड़ास को फिर से सच बोल पाने का स्थान हम सब बना पाए तो ये मरा जा रहा है। भाई डा.रूपेश ने इसकी हर बात का जवाब दे दिया है तो अब मुंह काला करके बैठा है पुलिस में क्यों नहीं जाता हम सबके खिलाफ़...
जय जय भड़ास
इस शराफ़त का नाटक करने वाले पाखंडी के बारे में ब्लागर समाज क्या राय रखता है क्या ये खुद नहीं जानता? पंखों वाली मुर्दा भड़ास पर जो भी नये लोग जुड़े हैं वे अगर इस जगह जाकर देखेंदेखें तो जान जाएंगे कि यशवंत सिंह क्या है,हम सब भड़ासी भी एक लंबे समय तक इसके ढोंग के शिकार थे और इसे एकदम सरल और सीधा मानने की भयंकर गलती करते रहे लेकिन अब समझ गये हैं तो ये कमीना अपनी शराफ़त का जाल नये लोगों पर फैला कर हम भड़ासियों की छवि खराब कर रहा है लेकिन जैसे किसी सुअर से स्वाद निरीक्षण नहीं कराते वैसे ही भड़ासियों को यशवंत सिंह से चरित्र प्रमाण पत्र नहीं चाहिए। नये लोग सावधान हो जाएं इस पोस्ट को देख कर......
जय जय भड़ास
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