संवेदनाओं के ड्रैकुला वणिक के दांत, चमकाने के अलग.... खून चूसने के अलग

कनिष्का कश्यप की सदस्यता को उनके विचारों के ड्रैकुला वणिक से न मिलने के कारण उनकी सदस्यता बिना किसी लोकतांत्रिक चर्चा के समाप्त कर दी गयी थी जो कि यशवंत ने खुद पोस्ट के रूप में तुगलकी फरमान दिया था।
मक्कार की मक्कारी आप सब देख सकते हैं और अगर फिर भी न समझे तो आप बेवकूफ़ हैं आज अपने एक पुराने सिंह मित्र की अविनाश की बखिया उधेड़ती पोस्ट पंखों वाली भड़ास पर देखी तो पढ़ने चला गया ह्रदयेन्द्र ने तो जी भर कर अविनाश की लानत-मलानत करी लेकिन अफ़सोस है कि यशवंत का मुखौटा अब तक उन्हें चेहरा ही महसूस हो रहा है, खैर देर-सबेर तो ह्रदयेन्द्र की भी आंखे खुलेंगी तब शायद समझ में आए कि जिस मंच से एक बार जब उनकी पोस्ट हटा दी थी तो रिसिया कर उन्होंने लिखा था कि अब वे पंखों वाली भड़ास पर नहीं लिखेंगे क्योंकि यशवंत ने इसे गीत पर निजी हमला करार दिया था और ह्रदयेन्द्र ने अपना सच लिखा था। बात आयी गयी हो गयी। लेकिन आज फिर जब ह्रदयेन्द्र ने सीधे अविनाश के खिलाफ़ जो भी लिखा है वह सच होगा उनके नजरिये से कोई दो राय नहीं है लेकिन यशवंत ने सिद्ध कर दिया कि वो अभी भी मन में अविनाश से स्थायी खुन्नस रखता है क्योंकि अमिताभ बुधौलिया जी की पोस्ट हटा दी लेकिन ह्रदयेन्द्र की अविनाश को गरियाती पोस्ट लगी है। पता नहीं कब लो इस संवेदनाओं के वणिक का असली चेहरा देख पाएंगे। हम तो इसका मुखौटा नोचते ही रहेंगे। अभी कुछ दिन पहले इसने कनिष्का कश्यप जी को अपनी तानाशाही के चलते पंखों वाली भड़ास से बेइज्जत करके भगा दिया लेकिन चूंकि शोकेस में सामान तो दिखना चाहिये वरना दुकान खाली दिखेगी तो नए ग्राहक कैसे आएंगे। कनिष्का के ब्लाग की लिंक अभी भी लगा रखी है। इसे कहते हैं वणिक सोच यानि कि सामान हो न हो लेकिन खाली डिब्बे रख कर तो दुकान को भरा हुआ दिखाना ही है। अलेक्सा की गणनाएं दुनिया के सामने हैं जो इसकी मक्कारी का पर्दाफ़ाश कर रही हैं इसके लिये अग्नि की नीचे लिखी पोस्ट पढ़िये।
जय जय भड़ास

3 comments:

रम्भा हसन said...

अजय भाईसाहब एक आप हैं जो पलकें चीर-चीर कर लोगों को सच दिखाने की कोशिश कर रहे हैं और दूसरी तरफ ये व्योम श्रीवास्तव के नाम से लिखने वाला यशवंत का भड़वा संजय सेन कैसा अंधा बना हुआ है
जय जय भड़ास

रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) said...

भाई अजय,
वनिक, ग्रामीण,देहाती,बाटी चोखा और पता नही क्या क्या का भ्रम दिखा कर ये नौटंकी लोगों को गुमराह कर रहा है, मगर गुमराह होने वाले लोग नए ब्लोगेर हैं. पुराने लोग इसकी हद्कातों को जान चुके हैं इसे पहचान चुके हैं सो सारे इस से किनारा कर चुके हैं,
रही बात रखने की या हटाने की तो इसे पता है की जो भड़ास से जा चुके हैं उसके पोस्ट और लिंक हटाने के बाद इसके पास दिखाने को कुछ न बचेगा जिस पर ये अपना दूकान चला रहा है. भड़ास के लेखकों की लाश पर अपनी दूकानदारी चलने वाला बनिया अपना दूकान चलने के लिए किसी का भी गू खा सकता है.
जय जय भड़ास

डा.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

आप सब देख रहे हैं कि ये वणिक अपनी दुकान में अभी भी पौने छह सौ भड़ासी बताता है जबकि इसने खुद ही न जाने कितने लोगों की सदस्यता समाप्त कर दी है, कौन पूछने जाता है कि कितने हैं रही बात पंखों(fans) की तो इस तरह के लोग या तो पाठक वर्ग के होते हैं या फिर भेड़चाल चलने वाले..... आप एक कनिष्का की बात कर रहे हैं इस संवेदनाओं के हत्यारे ने तो भड़ास के दर्शन को ही मार कर उसका "ममी" बना रखा है जिस पर सारी दुकान सजी है। उसकी दुकान में रखे अधिकतर डिब्बे खाली हैं किसी में बारूद नहीं है जो आग रच सकें...
जय जय भड़ास

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