झोपड़पट्टी के कुत्ते की गरीबी और उसकी परेशानियों को केन्द्र बिन्दु बना कर जो फिल्म बनाई गई है उसकी अपार सफ़लता हर ओर दिख रही है।
उनका क्या करेंगे जो अपनी गरीबी का नंगा तमाशा फिल्म में चित्रित करे जाने का उत्सव मना रहे हैं धारावी में?????अगर ऐसा ही रहा तो महाराष्ट्र सरकार मुंबई में दस-बारह ऐसी ही धारावी जैसे विशाल झोपड़पट्टियां और कमाठीपुरा जैसे रेडलाइट एरियाज़ बनाने पर विचार करने लगेगी आखिर इनसे विदेशी फिल्म निर्माताओं को प्रेरणा जो मिलती है और फिर आस्कर एवार्ड भी मिलता है।
3 comments:
Guruji sahi likha hai apne ye bina puchh wale KUTTE kuchh bhi kar sakte hain.
क्या बात है डा.साहब बड़ी जोर से रगेदा है कमबख्तों को....
जय जय भड़ास
गुरू एकदम कस कर उल्टी करी है सारे के सारे बस इसी बात का त्योहार मनाए पड़े हैं कि हमारी गरीबी के चित्रण को कितने अच्छॆ तरीके से जगजाहिर करा गया है गटर के कीड़े खुशियां मना रहे हैं अपने लिजलिजेपन की......
जय जय भड़ास
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