तो क्या अब जूते से नीचे बात नहीं होगी?

इराक में जैदी ने बुश पर जूता क्या फैंका कि वह एक प्रतीक ही बन गया विरोध करने का। उसके बाद चीनी राष्ट्रपति‚ फिर अरुंधती‚ और अब आज एक अखबार में छपा है कि उत्तराखंड के एक विधायक ने इंजिनियर पर जूता फेंका। वर्तमान युग में बातचीत को ही किसी समस्या के समाधान का प्रमुख साधन माना जाता है। अगर गौर से देखा जाय तो मुंह और पैरों में जहां की जूता पहना जाता है काफी दूरी है परंतु न जाने क्यों लोग सीधे जूतों पर उतर आते हैं। जबकि अगर बातचीत से समाधान नहीं होता है तो और भी साधन हैं परंतु ऐसा क्या हो जाता है कि लोग सीधे ही जूतों के प्रयोग को सहजता से कर लेते हैं? मुझे जूते के प्रयोग के कुछ कारण दिखाई देते हैं। अगर किसी को नीचा दिखाना है तो जूते का प्रयोग करो। विरोध को अगर प्रचार माध्यमों में प्रमुखता दिलानी है तो जूते का प्रयोग करो। अगर खुद हिट होना है तो जूते का प्रयोग करो। जैदी का नाम आज सारी दुनिया जानती है ये अलग बात है कि पत्रकारों को अब सुरक्षा के और अधिक तामझाम से गुजरना पड़े। हो सकता भविष्य में किसी भी प्रैस कांफ्रेस में उन्हें जूता पहनने की इजाजत न हो। जबकि हमने परीक्षाओं के दौरान ही जूता उतारा है क्योंकि वहां निरीक्षक को छात्रों के जूतों में परचियां होने की संभावना नजर आती थी।
परंतु बात हो रही है उत्तराखंड में विधायक द्वारा जूता फेंकने की। ये घटना कुछ अलग नजर आती है वह इसलिये कि अभी तक आम लोगों द्वारा खासों पर जूते बरसाये गये परंतु पहली बार एक माननीय द्वारा इस प्रकार का जूता प्रहार किया है जो अपने आप में एक विशिष्ट घटना है और अगर खास लोग भी इस प्रकार का बर्ताव करेंगे तो फिर वह दिन दूर नहीं जब जूते का प्रयोग और अधिक होने की संभावना है। और कहीं ऐसा न हो कि जूता प्रहार की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए कंपनियां इस प्रकार के प्रहार के लिये कुछ खास किस्म के जूतों का निर्माण करने लगे।

2 comments:

मनोज द्विवेदी said...

DEKHIYE JUTE KA CHARITRA SAMYAVADI HOTA HAI. JUTA KISI KI AUKAT NAHI DEKHTA WO TO SIRF SIZE DEKHTA HAI. CHALANE DIJIYE JUTE..SAMAY SAMAY PAR YE BHI JARURI HAI.

डा.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

भाई लोग मैं तो मानता हूं कि जूता चले और खूब चले सालों साल चले और आजीवन चले चलता ही जाए अगली पीढ़ियों में लेकिन उसके भीतर पैर भी रहे :)
जय जय भड़ास

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