लूटो ! "राज" नीति का खजाना खुल चुका है...

समाचारों को पढ़ने, सुनने और मनन करने के बाद मन में बस येही ख्याल आता है। काश! मैं भी राजनेता होता ...चलो कोई नही इस जन्म में नही तो अगले जनम में ही सही। आज भगवान के दर्शन कर लेने की अनंत इच्छा जागृत हो गई। सोचा दर्शन भी हो जायेंगे और अगले जनम का कांट्रेक्ट भी भगवान के चरणों में अर्पित कर दूंगा। समय तो लगता हीं है, अरे भाई वो सुना नही है की भगवान के घर देर है लेकिन अंधेर बिल्कुल नही । इसलिए अग्रिम अर्जी दे दिया की अभी तो ५० साल इसी जन्म में बीत जाएगा। फिर अगले जनम के तीस साल भी जैसे-तैसे कट ही जायेंगे। इतने में तो भगवान सुन ही लेंगे और मुझे मेरी इच्छा नुसार राजनेता जरुर बना देंगे। अब आप लोग सोच रहे होंगे की मैं राजनेता बनने पर इतना जोर क्यों दे रहा हूँ। तो जनाब कारन एकदम साफ है बिल्कुल १० जनपथ की सड़कों की तरह की भय्ये नेता बनने में ही भलाई है, अरे यहाँ मलाई ही मलाई है। लेकिन आग लगाने के लिए दियासलाई हमेशा जेब में होनी चाहिए। हाँ तो बात राजनेता की हो रही थी। क्या बताऊँ भाईसाहेब इनके तो ठाट ही ठाट हैं। जब तक सत्ता में रहो जनता को रुला-रुला के मनगढ़ंत पैसा कमाओ, सब कुछ फ्री में, हवाई यात्रा, जमीं यात्रा, पद यात्रा सब में कमाई भी और मलाई भी। जब चुनाव नजदीक आ जाए तो चले जाओ अपने-अपने छेत्र में नोटों की गद्दियाँ ले कर। कुछ उद्घाटन, कुछ देशाटन और कुछ धार्मिक अनुष्ठान कर डालो और अगले पॉँच सालों के लिए पुण्य यानि वोट पर कब्जा कर लो। जैसे हमारे कुछ राजनेता इस समय यह धंधा शुरू कर चुके हैं। रेल बजट, से लेकर तमाम रियायतें सरकार दे रही है। सरकारी खजाने का मुह अपने बैंक अकाउंट की तरफ़ वाया जनता दरबार के लिए खोल दिया गया है। लुटाने और लुटने की खुली छुट में आप भी हिस्सेदार बनना चाहतें हैं तो किसी एक राजनेता के आगे हो लीजिये। हाँ ध्यान रहे पीछे नही होना है क्यूंकि राजनेता दुलत्ती बहुत तेज मरते हैं। आगे रहेंगे तो आप दुल्लती मरने के हक़दार! वरना भाई भगवान ही मालिक है। अभी एक समाचार देखा उसमे लिखा था इस लोकसभा चुनाव में दस हज़ार करोड़ रूपया फूंका जाएगा। जो की सन ०५-६ का पुरा जीडीपी हुआ करता था। अब आप सरकार से ये तो पूछ नही सकते न की इतना पैसा कहाँ से आ गया इस मंदी के दौर में। राजनेता मतलब "राज" नीति करने वाला और आप है इनकी नीति के शिकार लोग! हर चुनाव के ६ महीने पहले से ही जनता जनार्दन की जय जय कर करने के पीछे ये लॉजिक है की जनता माने भेड़! और भेड़ का स्वभाव तो आप मुझसे भी ज्यादा जानते होंगे। जिधर घुमा दिया चल दिए एक के पीछे एक ! राजनेता मुफ्त में देशी घी खाते हैं तो इनकी याददास्त तेज और जनता की एकदम डल! कुछ याद नही रहता बन्दों को की पिछली बार किस नेता ने क्या वादे किए थे। सो यहाँ भी आसानी से दाल गल ही जाती है राजनेताओं की ! यही सब सोचकर ये फैसला लिया है की सबसे चोखे का धंधा है, "राज" नीति करना ! अब देखिये न पुरे पॉँच साल बीत गए किसी को किसी की ख़बर रखने की जरुरत नही महसूस हुई लेकिन चुनाव आते ही वेस्टर्न म्यूजिक छोड़ गंवारू धुनों पर नाच गाना होने लगा है। मजा तो तब आता है जब विलेन के साथ हीरो और हेरोइन भी ता-ता थैय्या करने लगते हैं और तो और खिलाड़ी भी बेचारे अनाडियों की तरह इसी राह आ जाते हैं। राजनेता बनकर बिना टिकेट लिए ही पुरी फ़िल्म और खेल का मज़ा लिया जा सकता है। कुल मिलाकर फायदा ही फायदा है राजनेता बनने में। बिल्कुल सफ़ेद चमकदार लिबास में लुटने का इससे बढ़िया मौका और किसी फिल्ड में नही है। यदि है तो आप मुझे जरुर सुझैएगा! चलता हूँ मन्दिर में बहुत लम्बी लाइन लग रही है..अरे अरे ये क्या मन्दिर में प्रसाद नेताजी बाट रहे हैं? मैं तो कन्फ्यूजिया गया हूँ की किधर जाऊँ ? अब तो आप लोग ही फैसला करिए क्यूंकि केस तो आपकी कचहरी में है....
जय भड़ास जय जय भड़ास

1 comment:

फ़रहीन नाज़ said...

मनोज भाई आप लुट रहे हैं या लूट रहे हैं ....
जय जय भड़ास

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