कविता झेलो

आकांक्षाओं का विशाल समुद्र ,किनारों से अठखेलियां करता हुआ मैं

आज मै भी कवि बन गया ,

उगती शायरी की जमी बन गया ,

बस एक दुआ और है उप्पर वाले तुजसे ,

भेज कुछ ऐसे फ़रिश्ते ,

जो झेल सके मुझे ,

क्योकि क्योकि क्योकि मै भी एक कवि बन गया...amitjain

1 comment:

डा.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

आप नए नए हथियार निकाल रहे हैं चलिये हम इस अटैक के लिये भी तैयार हैं :)
जय जय भड़ास

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