आज आप के ब्लॉग पर अनजाने मे ही आ गया ,
आप के लिखे लेख को पढ़ा ,
फिर दुबारा से पढ़ा ,
फ़िर उस पर दी गए टिपिनियो को भी पढ़ा ,
कुश एसा महसूस हुआ की आप सभी लोग नारी और नर मे सिर्फ़ भेद को ही देखते है ,
उन को एक दूसरे के पूरक के रूप मे नही देखते /
। आप सभी की बात मन भी ली जे तो प्रक्रति को नर और नारी नही बनने चाइये थे
उसे इस जहा मे सिर्फ़ अर्ध नारीश्वर बनना cahayiye थे ,
उस से आप की ये कुंठा मिट जाती की कोई लड़की ही क्यो गुलदस्ता भेट करती है ,
अरे इस दुनिया के पढ़े लिखो जरा कुछ अपने दिल पर भी हाथ रख कर सोचा करो ,
क्या किसी मेहमान को गुलदस्ता भेट कर देने से किसी लड़की के
शील ,
विचार ,
धर्म ,
मे कोई कमी आ जाती है ,
लगता है सुजाता जी आप को आज तक कोई मौका इस परकार का मिला ही नही की आप किसी समारोह मे किसी भी आगुन्तक तक का स्वागत कर सके / अरे आप को तो इस बात पर भी चिंता है की कोई स्त्री अपने प्यार को अपनी तारीफ मे इस्तमाल क्यो करती है /
अगर आप जैसी ही सारी नारी हो जाए तो इस भारतीय समाज मे से प्यार व समर्पण की भावना न जाने किस कोने मे दुबक जायगी /
लगता है आप मे वो नारी सुलभ कोमलता ही नही है ,
इस लिए आप को वो सारी लड़किया जो स्कूल या कॉलेज मे अपने किसी सह्पादी के साथ खाना खाती है भी नही सुहाई ,
क्या किसी स्त्री का किसी भी पुरूष के लिए किया गया कोई भी काम उसे उस की पत्नी बना देता है ,
बड़ा ही दुःख हुआ आप की इस परकार की सोच पर आप सिर्फ़ और सिर्फ़ कुछ इस परकार का लेखन करना कहती है
जो की आप को औरो से अलग कर दे
और उन बेचारी लड़कियो ,
स्त्रियो को उन के पति ,
दोस्त ,
सहयोगियो से ,
उदासीन कर दे /
लगता है आप किसी बड़ी ही दुःख दये स्थिति से रूबरू हुई है जो की आप को स्त्रियो का दुश मन बना रहा है
चोकरे बलियो अब अमित को भी झेलो .............:)
3 comments:
अमित भाई लग रहा है कि आप चोखेरबालियों पर रीझ गये हैं लेकिन ये रीझना हमें खीझना बना कर दिखा रहे हैं:)
जय जय भड़ास
अमित भाई कभी मेरे जैसे लोगों के बारे में भी लिखिये.... कहां स्त्री और पुरुष के मामले में स्याही खर्च कर रहे हैं
जय जय भड़ास
अमित भाई,
सब पंगे लो, मगर उसमे उद्देश्य जरुर हो.
जय जय भड़ास
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