कलियुग के लक्षण तो द्वापर के अंत में दिखलाई देने लगे थे।
जब एक भाई ने दूसरे भाइयों की संतानों को उनका न्यायोचित
अधिकार नहीं दिया। ठीक ऎसे ही जैसे आज एक समर्थ भाई
अपने निर्बल भाई की सम्पत्ति दबा कर बैठ जाता है।
"महाभारत" का युद्ध मूल्यों की रक्षा के लिए लडा गया था,
पर उसके परिणाम बडे ही घातक निकले।
सत्ता का घमण्ड सत्ताधारियों के सिर पर सवार हो गया।
महा विनम्र और बडों का आदर सत्कार करने वाले
अर्जुन के पौत्र और बलशाली अभिमन्यु के पुत्र राजा परीक्षित
ने राजसत्ता के मद में चूर होकर एक मृत सर्प को तपस्या करते
हुए ऋषि के गले में डाल दिया था।
और यही गलती उसकी मृत्यु का कारण बनी।
दरअसल हम बताना यह चाहते हैं कि कलियुग
की शुरूआत से ही पाखण्ड ने अपना कब्जा इंसानी दिमाग पर कर लिया।
जैसे अच्छे-खासे कम्प्यूटर में जब वायरस घुस
जाता है तो उसकी मैमोरी की ऎसी-तैसी करके पटक देता है।
यही तो हो रहा है।
लोकतंत्र की मैमोरी में पाखण्ड का वायरस तेजी से संक्रमण कर रहा है।
नीति अनीति में बदल रही है
और इसे बदलने वालों की दौड में नम्बर एक पर हैं नेता
और दूसरे पर हैं हमारे प्यारे-प्यारे अधिकारी।
नेता स्वहित के बुखार से पीडित हैं
और अफसरों पर भ्रष्टाचार का ज्वर चढा हुआ है।
नेता चुनाव जीतते ही मोटे हो जाते हैं
और अफसर पद पाकर अपने आगे किसी को समझना ही बंद कर देते हैं।
मजे की बात कि इनसे बातें करो तो ये पर हित में लीन साधु नजर आते हैं। अब आप यह न कहना कि सभी ऎसे नहीं हैं।
हम भी आपसे सहमत हैं,
पर ईमानदार नेताओं और अफसरों का वही हाल है
जो लंका में विभीषण का था।
विभीषण ने सत्य और मानव मूल्यों का साथ दिया
और घर का भेदी कहलाया।
महाभारत काल में कौरवों के भाई युयुत्सु का भी बुरा हाल हुआ।
यही पाखण्ड है।
ईमानदार को सब सराहते हैं,
पर पीठ पीछे उसे कायर कहते हैं।
आज के युग में "वीर" वह जो सरेआम रिश्वत खाये।
कथनी और करनी में अंतर करने वाले को पाखण्डी कहते हैं।
धीरे-धीरे इन्हीं पाखण्डियों ने अपने आपको इतना प्रबल
बना लिया है कि सच्चे और पाखण्डी में भेद करना
इतना ही मुश्किल हो चला है जैसे दूध और पानी में।
जब शुद्ध दूध में पानी मिल जाता है तो दोनों को अलग-अलग
करना अच्छे-अच्छे ज्ञानियों के वश की बात नहीं बचती।
जब हाकिम ऊपर से ईमानदार और भीतर से बेईमान हो,
जब नेता ऊपर से समाज सेवी और अन्दर से परिवार सेवी हो,
जब साधु ऊपर से वीतरागी और भीतर से धनलोलुप हो,
जब लेखक ऊपर से मूल्य रक्षक और भीतर से धन भक्षक हो,
जब जनता ऊपर से वीर और भीतर से भीरू हो उस युग
को पाखण्ड युग न कहेंगे तो क्या कहेंगे।
आप के क्या विचार है
भड़ास पर आज इतनी ही भड़ास
4 comments:
"भड़ास पर आज इतनी ही भड़ास......"
अमित भाई आप शत-प्रतिशत सही कह रहे हैं मैं आप से सहमत हूं,आप जो भी उगल रहे हैं वह वाकई शहद की तरह पौष्टिक है तमाम लोगों का विचार सौष्ठव बढ़ेगा,इसी ऊर्जा से लिखते रहें ताकि समाज को रचनात्मक दिशा में ले जाने में आप सहायक हो सकें।
जय जय भड़ास
भाईसाहब गहरा और पैना लिखा..आनंद आ गया पढ़कर...
जय जय भड़ास
भाई,ज्यादा डोज़ मत दिया करिये:)
जय जय भड़ास
भाई,
भड़ास भड़ास और बस भड़ास.
इससे न ज्यादा न ही कम,
शानदार भड़ास का डोज दिया है आपने,
बधाई लीजिये.
जय जय भड़ास
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