हकीकत में किसी झोपड़ पट्टी का लड़का भले ही करोड़पति न पाया हो, लेकिन स्लाम्दोग मिल्लानिओर ने ऐसे लड़के की कहानी बेचकर करोडो जरुर बना लिए हैं। ये कोई पहला मौका नही है जब गरीबों की गरीबी को रुपहले परदे पर उतारकर, दर्शकों की भावनाओ को उबारकर लाखों और करोडो का कारोबार किया गया है। बॉलीवुड फिल्मों में भी राज कपूर ने अनाडी, छलिया , लोफ़र और श्री ४२० में गरीबी को मुद्दा बनाकर बेचा। इसी तरह की अन्य कोशिशों पर सरसरी नज़र डाली जाय तो हकीकत सामने आ जाती है। भारत सहित दुनिया के कई ख्यातिप्राप्त लेखकों ने भी गरीबी को आधार बनाकर न जाने कितने पुरस्कार जीते हैं। हाल ही में भारत के युवा लेखक को पहली उपन्यास के लिए यदि बुकर मिलता है तो इसका श्रेय भी गरीबी को ही देना होगा क्योंकि उपन्यास के मूल में गरीब ही था। ये तो है सपनों की रंगीन दुनिया जिसने फिल्मों और लेखों के जरिये गरीबी को बार-बार बेचा है, लेकिन जब आप हकीकत को सामने देखते हैं तो ये स्पष्ट हो जाता है की हकीकत न सिर्फ़ गरीबी बिकती है बल्कि गरीब भी बिकते हैं। समाज के तथाकथित सेवक कैसे गरीबों को बेचते हैं ये किसी से छुपा हुआ नही है। नेता पैसे के बल पर गरीबों का वोट खरीदतें हैं, दुसरे शब्दों में यहाँ गरीब चंद पैसों के लिए ख़ुद को बेचता है। सरकारी कर्मचारी गरीब की गरीबी दर्शाकर करोड़ों की सरकारी योजनाओं का पैसा गड़प कर जाते हैं। यहाँ भी गरीब बिका क्योंकि उसके नाम पर पैसा जारी किया जाता है। व्यापारी रद्दी सामानों को गरीबों के बिच ही खपाते हैं, यहाँ गरीब पैसा देकर भी बिक रहा है। सेठ महाजन काले धन को दान देने का नाटक करके गरीबों को भंडारा और कम्बल बताते हैं, यहाँ भी गरीब जाने अनजाने अपना और अपने सम्मान का सौदा करते है। हमारे देश में प्रतिवर्ष लाखो, करोड़ों सैलानी आते हैं जो यहाँ की गरीबी और गरीबों का हाल अपने कमरे में कैद करके अपने देश में इससे लाखों बनाते हैं। कौन कहता है की गरीबी अभिशाप होती हैं ? अजी होती होगी अभिशाप गरीबों, जरुरतमंदों और फान्कामारी कर रहे लोगों के लिए! गरीबी तो वरदान है, हमारे बुद्धजीवी लोगों के लिए, विजेता लेखकों के लिए, फिल्मवालों के लिए, टीवी और विज्ञापन वालों के लिए, सरकार
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