बलात्कार जैसे मुद्दे को बिना दिखाए या लिखे मीडिया कैसे रह सकती है सो एक पीडित छात्रा की संवेदना को भरपूर बेचा हमारे देश के कर्णधार खबरिया लोगों ने ! आख़िर बेचे भी क्योँ ना लोगों की संवेदना और भावना को आहत करने का ठेका जो ले रखा है इन्होने।
दिल्ली में लोग बढ़ गए, आबादी के हिसाब से दिल्ली सिमटती जा रही है, जगह कम लोग ज्यादा। बस कम चढ़ने वाला ज्यादा सब कुछ का आंकडा बिगड़ता जा रहा है और बिगड़ता जा रहा है इंसानियत का माहौल, विद्रूपता, दुष्कर्म और भी कई शब्द जिसकी व्याख्या में नही जाऊंगा।
जरा एक नजर इस तस्वीर पर मारिये कहानी समझ में आ जायेगी, एक मुस्कान और दूसरा यातना भरा चेहरा। ये तस्वीर है दिल्ली की शान डीटीसी की और ये एकदिनी नही अपितु रोजमर्रा की है। एक बलात्कार होता है मामला थाने और डाक्टरी परिक्षण के बाद न्यायालय तक पहुँचता है तो मीडिया अपने अपने मार्केटिंग प्रतिनिधी को माइक लेकर ख़बरों की तफ्तीश में लगा देती है कि हम कैसे इसे बेच सकें मगर इन्हीं मीडिया संस्थानों की सैकडों महिलायें कमोबेश इसी स्थिति से गुजरती हैं मगर अपने साथ हुए इस मानसिक बलात्कार का जिक्र तक नहीं करती।
ये रोजमर्रा की हालत है, रोज ही महिलायें बसों में सभी प्रकार के (बुद्धिजीवी, अल्पजीवी, शिक्षित, अशिक्षित) पुरुषों से दैहिक और मानसिक बलात्कार का शिकार होतीं है, कौन है इसका जिम्मेदार ?
दूषित वातावरण ?
मीडिया का दुष्प्रचार ?
रोजमर्रा से व्यथित विचार या फ़िर कुछ और ?
कारण जो भी हो मगर हमारी मानवीयता दिन प्रति दिन कैसे खंडित होती ये सब जगह देखने को मिलता है। इस बहस में शामिल होने वाले, इस पर बाकायदा चिंतन करने वाले भी मानवीयता को तार-तार करने वालों में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं?
इंसानियत, मानवता और लोगों को सम्मान के साथ देखने वाली भावना क्या हमारे अंदर से समाप्त हो गयी है।
निरुत्तर हूँ, शायद आप उत्तर दें ?
फोटो साभार :- जयश्री कोहली
दिल्ली में लोग बढ़ गए, आबादी के हिसाब से दिल्ली सिमटती जा रही है, जगह कम लोग ज्यादा। बस कम चढ़ने वाला ज्यादा सब कुछ का आंकडा बिगड़ता जा रहा है और बिगड़ता जा रहा है इंसानियत का माहौल, विद्रूपता, दुष्कर्म और भी कई शब्द जिसकी व्याख्या में नही जाऊंगा।
जरा एक नजर इस तस्वीर पर मारिये कहानी समझ में आ जायेगी, एक मुस्कान और दूसरा यातना भरा चेहरा। ये तस्वीर है दिल्ली की शान डीटीसी की और ये एकदिनी नही अपितु रोजमर्रा की है। एक बलात्कार होता है मामला थाने और डाक्टरी परिक्षण के बाद न्यायालय तक पहुँचता है तो मीडिया अपने अपने मार्केटिंग प्रतिनिधी को माइक लेकर ख़बरों की तफ्तीश में लगा देती है कि हम कैसे इसे बेच सकें मगर इन्हीं मीडिया संस्थानों की सैकडों महिलायें कमोबेश इसी स्थिति से गुजरती हैं मगर अपने साथ हुए इस मानसिक बलात्कार का जिक्र तक नहीं करती।
ये रोजमर्रा की हालत है, रोज ही महिलायें बसों में सभी प्रकार के (बुद्धिजीवी, अल्पजीवी, शिक्षित, अशिक्षित) पुरुषों से दैहिक और मानसिक बलात्कार का शिकार होतीं है, कौन है इसका जिम्मेदार ?
दूषित वातावरण ?
मीडिया का दुष्प्रचार ?
रोजमर्रा से व्यथित विचार या फ़िर कुछ और ?
कारण जो भी हो मगर हमारी मानवीयता दिन प्रति दिन कैसे खंडित होती ये सब जगह देखने को मिलता है। इस बहस में शामिल होने वाले, इस पर बाकायदा चिंतन करने वाले भी मानवीयता को तार-तार करने वालों में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं?
इंसानियत, मानवता और लोगों को सम्मान के साथ देखने वाली भावना क्या हमारे अंदर से समाप्त हो गयी है।
निरुत्तर हूँ, शायद आप उत्तर दें ?
फोटो साभार :- जयश्री कोहली
5 comments:
रजनीश जी,
आप ठीक कह रहे हैं। इस तरह की खबरों को खूब नमक मिर्च लगा कर सुनाया जाता है। इससे पीड़ित की पीडा तो बढ़ती ही है लोगों का मानसिक बल भी कम होता है। काश हम वो खबरें अधिक सुन पाते जो हमारे बच्चों में आत्म विश्वास बढ़ाती और मानसिक रोगियों को भयभीत करती। एक कठोर सत्य की ओर संकेत करने के लिए आभार।
सही कहा आपने ये रोज़मर्रा की बात है बस में सफर करने वाली हर दूसरी महिला कभी ना कभी इन हालातों से दो-चार होती रहती हैं। अपने स्तर पर इन सबसे बचने का प्रयास भी करती है पर क्या वो सफल हो पाती है ? ये दीगर बात है। जब तक छेडछाड सम्बन्धी कानून में कठोर सजा का प्रावधान नहीं होगा और पीडिता को सहयात्रियों का सहयोग नहीं मिलेगा तब तक ऐसे दृश्य आम ही होंगें और रूग्ण मानसिकता वाले व्यक्ति इसका बेज़ा फायदा उठाने से नहीं चुकेंगें। ये सब देख -सुनकर मन आहत होता है। कुछ भी हो भुक्तती तो महिला ही है।
aapke post ne mujhe taslima nasreen ki yaad dila di....unka bhi kuch essa hi likha maine pada hai......
rajneesh ji
jo mudda aapne uthaya hai use sab jante hain magar phir bhi usse anjaan rehna chahte hain kyunki talab ki sari hi machliyan gandi hain.yeh jo mansik yatna hai use bhuktbhogi hi samajh sakta hai.isse har aurat apni zindagi mein do-char huyi hoti hai.aapne jan jagran ke liye jo mudda uthaya hai use blog ke alawa paper aadi mein dene ka prayatn bhi karein jisse kuch to asar pade logo ki mansikta par. unke liye ek sabak bane.
vaise iska hal itna aasan nhi hai kyunki har koi isi mansikta ka hai magar koshish to hamein karni hi hogi na aur koshishein hi kamyaab hoti hain.
बहुत खूब और सत्य लिखा, तस्वीर गवाह है की समाज का पतन किस तरह हो रहा है. मगर सभी जगह स्थिति सामान नहीं होती है और नॉएडा प्रकरण में युवक और युवती दोनों ही सामान दोषी थे.
लेखनी जारी रखिये.
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