ऐसे लोगों की गर्दन धड़ से उतारी जाए



फट चुकी जो तस्वीर दीवार से उतारी जाए...
नए फ्रेम में नई तस्वीर ही संवारी जाए।


चरणामृत देवता का पीने से करे मना...
ऐसे शख्स की अब आरती उतारी जाए।

फट चुका दूध इसमें जब-जब किया गरम...
बदमिजाज देगची ठीक से खंगारी जाए।

जीप, ट्रैक्टर, मोटरें जाएं तो जाएं खुशी से...
आदिवासी क्षेत्र में न रथ-घुड़सवारी जाए।

धर्म बेचें, न्याय बेचें और मरीजों की दावा...
ऐसे लोगों की गर्दन धड़ से उतारी जाए।

कंठमणि बुधौलिया

3 comments:

प्रदीप said...

जो इंसान को इंसान नही समझते...
ऐसे सिरफिरों की अक्ल सुधारी जाय |

डा.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

प्रदीप जी के ही सुर में अपना भी सुर मिला हुआ है और मन कहीं किसी कोने में सिरफिरों की अक्ल सुधारने का सटीक उपाय भी तलाश रहा है
जय जय भड़ास

रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) said...

बुधौलिया जी,
शानदार लिखा है हमारे कन्थ्मानी भाई ने, भाई को नमन और आपको साधुवाद.
सुधारने का जिम्मा किसी न किसी को तो लेना ही होगा.
जय जय भड़ास

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