रेल का सफर बड़ा ही आनंददायक होता है. कम से कम मेरे लिए तो होता ही है. कुछ दिनों पूर्व की मेरी रेल यात्रा वास्तविक भारत का आइना दिखा गयी. नि:संदेह ये ही असल भारत है ना की उच्चतर श्रेणी में यात्रा करने वाले लोग.
क्या हम इन्हें भारतीय समझते हैं ?
क्या हम भारत की मर्यादा को आत्मसात करते हैं ?
प्रश्न है तमाम भारतीय से संग ही उन लोगों से जिसने क्ष्द्मता का नकाब लगा रखा है.
द्वितीय श्रेणी का बर्थ. सोने का वास्तविक आनंद.
हम भारत के लोग ऐसे सफर करते हैं, और हमारी भारतीयता पर कोई प्रश्नचिन्ह नही लगा सकता.
क्या हम द्वितीय श्रेणी के यात्री के साथ इन्साफ कर रहे हैं?
क्या हम वास्तविक भारत को पुरी जगह दे रहे हैं?
कार, हवाई जहाज, और रेल के वातानुकूलित श्रेणी में यात्रा करने वाले भारतीय होने का दंभ तो भर सकते है, भारतीयता के साथ इन्साफ नही. स्लमडॉग मिलिनिअर एक हकीकत है जिसको मानने से इनकार करने वाले हमारे देश के साथ गद्दारी ही तो कर रहे हैं.
क्या ये भारतीय नही.
5 comments:
हाँ जी भारतीय ही हैं पर इसमें दोष इनका क्या है ? जनसंख्या अधिक,सीट कम, सबका जाना जरूरी- बेचारे क्या करें ? ऐसे प्रश्न निः संदेह ही उठते हैं किन्तु उत्तर क्या हैं ? सोचिए----
शोभा जी क्या यह सब देखने के बाद सरकार के तरक्की के सब वादे खोखले नहीं जान पड़ते ...
आशीष जी,
तरक्की तो हुई है, और डेव भी खोखले नही हैं, बस तरक्की हुई कहाँ है ये प्रश्न है और निसंदेह आम आदमी अगर तरक्की के बिना है तो सरकार का दावा खोखला ही तो है.
आम का अद्भुत चित्रण, हकीकत से रूबरू करने को शुक्रिया. वास्तविक भारत ये ही तो है.
भाई,
ये सब तो बैठ के जा रिएला है, बेहतर हालत में है भिडू अपुन तो साला कभी बैठ के गया हिच नहीं, शायद मुंबई के लोकल के अलावे किसी पर चढा हि नहीं इस लिए.
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