मैं तो अपने पूर्वजीवन में अपराधी रहा हूं इसलिये मेरे पास गर्व करने जैसा तो कुछ नहीं है। मुंबई आर्थर रोड से लेकर पुणे की येरवड़ा की जेल में काफी समय कई-कई बार बिताया है। मैं सोचता था कि मेरी दुनिया के बाहर रहने वाले लोग जो साफ़ सुथरे कपड़े पहनते हैं बीबी और बच्चों के साथ रहते हैं थोड़े तो शरीफ़ होते होंगे लेकिन ऐसा नहीं है,शराफत किसी चिड़िया का नाम नहीं है जो कि सफ़ेदी के पेड़ों पर ही घोंसला बनाती है। आज मैंने लोकल ट्रेन में फ़र्स्ट क्लास मे देखा कि सोलह-अठारह साल की भिखारी लड़की भीख मांगने आयी तो एक सफेद सूट बूट पहने आदमी जो कि अपने लैपटाप कम्प्यूटर पर पिछले एक घंटे से चिपका था पहले तो बिना देखे झिड़क दिया फिर जब नजर उठा कर देखा तो सीधे नजर उसके फटे हुए ब्लाउज से अंदर जाती दिखी। मैं ठहरा पुराना पापी लेकिन औरतों का सम्मान करता हूं तो इसकी नजरों को देखा तो अपनी जगह से उठ कर इस हरामी के पास आ गया तो पता है भाइयों आज संडे के कारण ट्रेन खाली रहती है वो साला उसे सौ रुपये दिखा कर अपने साथ ले जाने के लिये उसकी गरीबी को खरीदने की कोशिश कर रहा था बोल रहा था कि और दूंगा। साला, कमीना मुझे देख कर सिटपिटा गया लड़की तो अगले स्टेशन पर उतर कर अगले डिब्बे में चली गयी लेकिन मेरा दिल नहीं माना तो मैंने इसको पूछा कि क्या बात कर रहे थे, साला अंग्रेजी बोलने लगा तो मैं क्या करता चटाचट तीन-चार मजबूत थप्पड़ जड़े साला सब अंग्रेजी भूल गया और माफ़ी मांगने लगा। मुझको पुलिस वाला समझ बैठा। मैं अब तक सोच रहा हूं कि मैंने ऐसा क्यों करा?
2 comments:
चाचा आपने इसलिये ऐसा करा क्योकि आप के भीतर इंसानियत और भलमनसाहत जीवित है आपकी जगह कोई भी भड़ासी होता तो यही करता...
जय जय भड़ास
भडास जिंदाबाद,
चाचा डोक्टर साहब ने सही कहा कोई भी भडासी होता जिसे लोग चुटिया कहते हैं वो ये ही करता, मगर ऐसी ही सफेदपोश लोग हमें गाली देते हैं, साले नाली के बेनामी कीडे.
आपको प्रणाम.
जय जय भड़ास
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