मुंबई कांड समाप्त हो गया, देश के जांबाजों ने हमारी हिफाजत की और वापस अपने अगले मुहीम के लिए रवाना हो गए। देश की जीवंत आर्थिक राजधानी, जिसमें बड़े से बड़े हादसे से निबटने की अद्भुत इच्छाशक्ति है ने वापस अपनी जिन्दगी को पटरी पर ले आयी। और पीछे छोड़ गयी नेताओं की राजनीति और पत्रकारों की बहसबाजी।
पत्रकारिता ने जिस तरह से मानविय भावना और संवेदना का बलात्कार किया है, भौतिकवाद और बाजारवाद के बोझ से मृत होती पत्रकारिता एक बार फ़िर मुंबई आतंकी हमला में दिखा। संवेदना को पडोसने का कार्य किस मुस्तैदी से जारी था। पहले कौन के चक्कर में जिस तरह से मीडिया जांच के कार्य को प्रभावित करती है और दावा भी ने लोकतंत्र के सामने नए प्रश्न तो ही हैं, पत्रकारिता को भी आतंकवाद के साथ खड़ा कर देता है।
नभाटा में लगी एक ख़बर की माने तो दो आतंकी के फोटो दिखाने पर सरकार ने इंडिया वी से जवाब तलब किया है। नोटिस में कहा गया है कि आतंकियों की बातचीत को चैनल पर प्रसारित कर इंडिया टीवी ने आतंकवादियों को अपना मकसद प्रचारित करने के लिए प्लैटफॉर्म मुहैया कराया है।
वेबसाइट के मुताबिक चैनल को एक दिसंबर तक नोटिस का जवाब देने के लिए कहा गया है। जवाब संतोषजनक नहीं हुआ तो चैनल के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इंडिया टीवी प्रबंधन ने आतंकियों से बातचीत के प्रसारण को उचित ठहराने की कोशिश की है। वेबसाइट ने चैनल के सीओओ रोहित बंसल को कोट करते हुए कहा है कि आतंकियों की बातचीत प्रसारित किए जाने से सुरक्षा एजंसियों को आतंकियों की ओरीजिन जानने में मदद मिली। इंडिया टीवी का मकसद इस प्रसारण के जरिए आतंकियों की ओरीजिन, इंटेंशन और बैकग्राउंड को जानना था। इसी बातचीत के जरिए सुरक्षा एजंसियों को पता चला कि ये आतंकी हैदराबाद या कहीं और से नहीं बल्कि पाकिस्तान से आए हैं। चैनल के मुताबिक दुनिया भर में मीडिया द्वारा लादेन के संदेशों और लश्कर तथा हिजबुल के कमांडरों के इंटरव्यू प्रकाशित-प्रचारित कर उनके इरादों का खुलासा किया जाता रहा है।
यानी की टी वी प्रबंधन हिन्दुस्तान की सुरक्षा की बागडोर अपने हाथ में लेने को भी तैयार है, क्या ये ही हमारी मीडिया है। वैसे इस लेख पर आए टिपण्णी अति चौंकाने वाले हैं।
अधिकतर टिप्पणीकारों ने इस टी वी को बैन करने की बात कही है, जबकी कुछ लोगों का कहना है की ये सारे चैनल वाले आतंकी से मिले हुए हैं, भागलपुर, बिहार से रामफल यादव का कमेन्ट भी कम चौकाने वाले नही है। ये कहते हैं की "सबसे गद्दार टीवी चैनल आई बी एन 7 है। अहमदाबाद पुलिस कमिश्नर का ख़ुफ़िया पत्र इसके हाथ कैसे आया और इसने उसके बारे में कैसे प्रसारित किया और इसके खुलासे से क्या उन भागे हुए पाँच आतंकवादियों और दो कंपनियों को और उनके अजेंटों को सावधान और छुप जाने का मौका देना चाहता था यह चैनल? गुजरात और केंद्र सरकार इस सबसे अधिक विवादास्पद चैनल की जाँच करें। "
मीडिया की संदेहास्पद भूमिका विचारणीय तो है ही।
4 comments:
देश का बंटाधार कर दिया इस बार तो कांग्रेस ने
और रही सही कसर हमारे मीडियाकर्मी पूरा कर रहे हैं। किसी भी चैनल की अति सक्रियता और खोजी पत्रकारिता के पीछे के मामले की जांच होनी चाहिए
रजनीश भाई,मीडिया अपने फायदे के लिये आतंकवादियों से हाथ नहीं मिला सकता ऐसा सोचना भी भयंकर अव्वल दर्जे की मूर्खता है। भाई पैसे के लिये कोई आजकल किसी भी हद तक जा सकता है। किसको किसको दोष दें हम... आपकी पहेली आजतक अनसुलझी है किसी माई के लाल में दम नहीं जो उस विषय पर चूं भी कर दे बाकी सब बातों पर बकैती करेंगे साले सुअर कहीं के....
जय जय भड़ास
अलजज़ीरा और अल-अरेबिया जैसे चैनलों का हवाला देकर लादेन से जवाहिरी तक के धमकीभरे वीडियो चलाने में पत्रकारिता कहां गई थी?
२७ अगस्त २००८ को शाम पांच बजकर पांच मिनट पर जम्मू में परिवार को बंधक बनाकर रखे आतंकवादियों ने ''आजतक'' से Live बात की.. तब की पत्रकारिता कहा गई थी?
क्या करगिल युद्ध के दौरान एनडीटीवी की बरखा दत्त के लाइव कवरेज को सैन्य विशेषज्ञों की आलोचना का शिकार नहीं होना पड़ा?
क्या हाल ही में जी, आईबीएन और अन्य चैनलों पर जिस तरह से भारतीय सेनाओं की कमियों पर रपट आ रही हैं- वे आलोचनाओं के कटघरे में नहीं आतीं? इन्हें देखकर और दिखाकर जिओ टीवी, न्यूज़ वन और एक्सप्रेस टीवी जैसे पाकी चैनल यह क्यों कह रहे हैं कि भारतीय मीडिया अब अपने गिरेबां में झांकने लगा है. ऐसे दौर में बाक़ी चैनलों की पत्रकारिता पर उंगली क्यूं नहीं उठाते?
जो भारत को अपना देश नहीं मानते हैं उन लोगों का इंटरव्यू छापने और उनके साथ अपने को खड़ाकर अतिआधुनिक सोचवाला साबित करने वालों की पत्रकारिता कहां चली जाती है?
अपना अमूल्य समय इस तथाकथित भौढंगे चैनल (जिसे आप इंडिया टीवी कहते हैं) को देखने में क्यूं गंवाते हैं? महज आलोचना करने के लिए इस चैनल को इतनी बारिक़ी से देखा जाता है, यह अपने आप में अनोखी बात है।
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