अगर हिंदू पशुबलि दे तो कानूनन जुर्म और मुस्लिम क़ुर्बानी दे तो??????




इस बात से बहुत से लोगों को मेरी दिमागी हालत पर संदेह होने लगेगा, कुछ लोग इसे हिंदू-मुस्लिम मुद्दे से जोड़ कर देखने लगेंगे। सबकी अपनी सोच है तो उसमें मैं अपनी सोच क्यों थोपूं....। आज बकरीद है और आप यकीन मानें कि लाखों जानवर आज कुर्बानी के नाम पर मार दिये जाएंगे। कहानी है कि एक इंसान को अल्लाह ने उसकी सबसे प्रिय वस्तु अल्लाह को देने के लिये कही और जब उस इंसान ने एक-एक करके सब प्यारी चीजें दे डाली और अल्लाह मांगता ही रहा तो अंततः उसने अपने बुढ़ापे की उम्र में पैदा हुए बेटे को ही अल्लाह को समर्पित करने के लिये ही कुर्बान करने के लिये उस बच्चे को जिबह करने के लिए जैसे ही अपनी आंखों पर पट्टी बांध कर छुरी चलायी तो कहानी कहती है कि उस बच्चे की जगह एक दुंबा(बकरा) आ गया और इस तरह वह इंसान अल्लाह के द्वारा ली जा रही आस्था की परीक्षा में सफल रहा। अरे मुसलमानों अगर इतने ही बड़े परंपरावादी हो तो अपने बच्चों को काटो न देखो कि तुम्हारी आस्था कितनी सच्ची है कि अल्लाह बच्चे की जगह बकरा रखता है या नहीं????
क्या ऐसी ही हजारों कहानियां हिंदू धर्म को मानने वाले वो लोग नहीं सुना सकते जो कि कालीमाता या कालभैरव वगैरह जैसे देवी देवताओं के मंदिर में पशुबलि देते हैं??????? आज जब देश में कानून बन गया है कि पशुबलि कानूनन जुर्म है तो फिर क्या आपको सीधे ही यह नहीं दिखता कि हमारे कानून बनाने वाले लोग भी कितने कांईया और धूर्त किस्म के रहे होंगे जिन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों में से मुस्लिमों को उनकी परंपराओं के आधार पर तुष्टिकरण के लिये अनेक जगहों पर इस तरह के दांवपेंच रखे हैं वैसे तो मुस्लिम पर्सनल ला ही मौजूद है लेकिन फिर राष्ट्रीय नागरिकता के आधार पर समानता किधर रह गई? महाराष्ट्र में बाबा साहब अंबेडकर को संविधान का निर्माता कहा जाता है क्या किसी भी बेवकूफ़ ने इस बात पर अंबेडकर महाशय से कोई सवाल नहीं करा होगा या वे खुद भी ऐसी ही सोच से सहमत थे???? मैं इन सवालों से सभी को कटघरे में खड़ा कर रही हूं यदि साहस है तो जिरह करें।
ये सुधार और बराबर नागरिक समानता कानूनी धरातल पर यदि चाहिये तो ये सब बंद करना होगा और संविधान में आमूल-चूल परिवर्तन करने होंगे। पशुओं को हिंदुस्तान ही नहीं सभी मुल्कों में धन माना गया है हिंदी में तो एक प्यारा सा शब्द भी है "पशुधन" जिसमें कि गोधन,गजधन,बाजीधन(बाजी घोड़े को कहा जाता है) शामिल हैं तो इसमें बकरे या दुधारू बकरियां कैसे शामिल नहीं हैं। पशु अत्याचार निषेध अधिनियम बना कर रखा है कि कुत्ते को डंडा मारा तो तीन माह की सजा, गधे पर अधिक बोझा लाद दिया तो सजा है लेकिन अगर बकरे को मार कर उसकी बोटी-बोटी खा गये तो कोई बात नहीं ये तो परंपरा है इसमें कानून क्या कर सकता है??? हास्यास्पद बात है ऐसे कानून की हिमायत करने वालों को तनिक भी लज्जा नहीं है कि इसमें सुधार की जरूरत है अब हिंदुस्तान को आदिम सोच से बाहर आना होगा।

जय जय भड़ास

12 comments:

Suresh Chnadra Gupta said...

आपने बिल्कुल सही कहा. ईश्वर को अपनी सबसे प्रिय बस्तु अर्पित कर देना ही असली कुर्बानी है. एक बकरे की जान लेकर ख़ुद पुन्य कमाना कहाँ तक जायज है. बहुत से लोग यह बकरा भी एक दिन पहले खरीदते हैं. कोई प्रेम भी नहीं होता उस बकरे से, कि यह कहा जाय की अपनी प्रिय बस्तु कुर्बान कर दी.

अल्लाह इस त्यौहार पर जो संदेश दे रहा है वह कहीं कही गया है. बस बकरे की कुर्बानी देना बाकी रह गया है.

Anil said...

इसे एक विडंबना ही कहा जायेगा कि भारत में कानून एक चीज है, और धर्म एक और चीज. दोनों एक दूसरे से बहुत कतराते हैं.

दूसरी ओर, अमेरिका में आज अपने पडोसी को मैंने ईद-मुबारक कहा. मैंने उनसे पूछा कि कैसे मनाओगे ईद? जवाब आया - "यहाँ तो कैसे मनायें, अलबत्ता कुर्बानी के लिये हिंदुस्तान पैसे भेज दिये हैं. मेरा दोस्त मेरे नाम पर कुर्बानी कर देगा."

अमेरिका में एक ही कानून है जो सबपर लागू होता है - चाहे वह ईसाई हो या मुस्लिम, चाहे वह नेता हो या जनता. इसीलिये ये फिरंगी लोग अपने देशों में कानून-व्यवस्था बनाये रखते हैं.

भारत को चाहिये कि संविधान को बदलते समय की माँग के अनुसार बदला जाये ताकि सभी लोग वाकई में बराबरी पायें, न कि सिर्फ कागजों पर.

हरभूषण said...

मुनव्वर आपा आपकी इन बातों से बहुत सारे लोगों की भावनाएं आहत होंगी लेकिन ये बात ठीक वैसी ही है जैसे कि जब सती प्रथा को समाप्त करा गया था तब बहुत से लोग आहत हुए थे लेकिन समय के साथ समझदारी विकसित हुई और अब लोगॊं ने इसे आत्मसात कर लिया है,आपकी बात से सहमत हूं कि लीगल रिफ़ार्म्स की आवश्यकता है ये बदलाव जरूर आयेगा.....
जय जय भड़ास

रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) said...

भडास माता की जय,
आप आपकी बातों का सार सिर्फ़ इतना की इसका काट किसी के पास नही, धर्म की डफली बजाने वाले कानून को हथियार की तरह इस्तेमाल करके लोगों को भी कुर्बान ही तो करते हैं,
मगर धार्मिक ढकोसलाबाद की समाप्ती का बिगुल आपकी आवाज है ये.

जय जय भड़ास

संजय बेंगाणी said...

भड़ास पर कम आता हूँ, टिप्पणी भी नहीं करता. मगर आपने सही लिखा है तो रहा भी नहीं जा रहा.

खरी बात लिखी है. मानेगा कौन?

मनोज द्विवेदी said...

itani badi bat ko jis andaz me apne samne rakha hai. isse impress hua bina nahi rah saka. aaj mujhe bhi garv ho chala hai ki mai bhi ek bhadasi hun. jisme ap jaise logon ka sanidhya mila hai......
jai bhadas jai jai bhadas

Anonymous said...

तुम्हारी कलम बिक चुकी है RSS या विश्व हिंदू परिषद के हाथों जैसे जी न्यूज बिक गया है जो राम के निशान तलाशता फिर रहा है पूरी दुनिया में कैमरा लेकर और कहानियों को हकीकत बनाने पर तुला है। तुम भी बिकाऊ सस्ता लेखन कर रही हो वरना खुद एक मुसलमान हो कर ऐसी बेहूदा बातें हरगिज न लिखतीं धिक्कार है तुम पर और तुम्हारी घटिया सोच पर। तुममें और तस्लीमा नसरीन में मुझे कोई अंतर नहीं दिखता जो इस्लाम के खिलाफ़ लिख कर प्रसिद्धि चाहती है। जैसे उसे हैदराबाद में पीटा था अगर तुम हाथ आओ तो तुम्हारी भी चर्बी उतारी जाए ताकि बाज़ आओ इन हरकतों से

B@$!T ROXX said...

Kya Uncle Anonymus Ma-Baap ne naam nahi rakha kya,ya fir naam batane mein fat rahi hai? Ya kaho to main tumhara naam rakh du. Jaise main ne apne paltu kutte ka rakha hai.
Main ne tumhara naam "FATTU" rakha hai,agar manzur na ho to koi aur suggestion ho to bata do.

फ़रहीन नाज़ said...

अरे मेरे गुमनाम,अनाम,बेनाम बिरादर! मुनव्वर आपा के लिये आपने जो भी लिखा कि मुसलमान होकर ऐसा लिख रही हैं या कलम बिक चुकी है या उन्हें भी पीटा जाना चाहिये वगैरह.... बड़ी ही चिरकुट सी सोच है और अपने आपको मुसलमान कहते हो मुझे तुम पर शर्म आती है। सचमुच साहस है तो सामने आकर तर्क दो और अपनी बात रखो, ये क्या कि चुपचाप आये और कुत्ते की तरह सुस्सू करके चले गये। मैं ही नहीं बल्कि तमाम भड़ासी मुसलमान हैं क्या ये तुम्हे नहीं दिखता या फिर कठमुल्लेपन का चश्मा चढ़ा रखा है जो कुछ दिखता ही नहीं सिवाय नफ़रत के.....
जय जय भड़ास

ab inconvenienti said...

हो सकता है आगे एक समय ऐसा आए की हमारी आगामी पीढियां इस बात को जानकर घृणामिश्रित आश्चर्य व्यक्त करें की कभी सभ्य माने जाने वाले लोग पशु -पक्षियों को काट कर खा जाते थे. वैसे ही जैसे आज हम आदमखोर समाजों-कबीलों के बारे में सोचते हैं. आमीन.

ab inconvenienti said...

अनुरोध है की गली गलौच और असभ्य टिप्पणियों को न तो मोडरेट करें और न ही उसपर प्रतिक्रिया दें. आपका क्रोध और तीव्र प्रतिक्रिया इन विध्नसंतोषी खलों का हौंसला बढाती है. पर दुनिया को यह भी देखने दें की कुछ लोगों की सोच कितनी छोटी है.

गुफरान सिद्दीकी said...

मुनव्वर आपा
अपने जो भी लिखा वो आपकी राय हो सकती है, लेकिन हकीक़त क्या है ये जानने के लिए आपको पहले पवित्र कुरान शरीफ को भी पढना और समझना होगा शायद आपको ये लगे की मै आपको नसीहत कर रहा हूँ लेकिन हकीक़त में मै आपसे बह्स नहीं कर सकता आप अपनी कलम से समाज रुपी दानव को आईना दिखाने का काम करती हैं और मै इसे भडास निकलना नहीं मानता हम यहाँ अपनी बात से मुर्दा समाज को जिंदा करने का काम करते हैं,और मेरा अपना ये मानना है की अगर आप अपने दीन(किसी भी दीन से हो) के प्रति इमानदार नहीं हैं तो आप अपने देश अपने समाज और अपने लोगों के प्रति भी इमानदार नहीं हो सकते ऐसा मेरा मानना है और इसपर मै बह्स नहीं कर सकता.मुझे आशा है की आप मेरी बातों का गलत मतलब नहीं निकालेंगी.

आपका हमवतन भाई गुफरान (ghufran.j@gmail.com)

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