मठ पर हुआ बनिये का कब्जा जो खुद ही मठाधीशी सोच रखता है

ये है मेरी वास्तविक पोस्ट जो कि मैंने लिखी थी लेकिन उसमें से जो अंश हटा दिया गया वह कोई विशेष बात नहीं बल्कि निजी बनियापा वाली सोच के चलते हटाया गया है जो कि आप इसमें पढ़ सकते हैं। मेरी सदस्यता समाप्त करके जो करा है उससे क्या हुआ? कुछ भी तो नहीं बल्कि अपने मुखौटे के नीचे जो सही चेहरा छिपा था तुमने उजागर कर दिया अच्छा है चूतिया पंखों को तो समझ में आएगा कि तुम क्या हो और तुम्हें तो पता ही है कि पंखे तुम्हारी ही बैटरी से ऊर्जा चूस रहे हैं किसी ने तुम्हारी रिरियाहट पर ध्यान नहीं दिया कि लिंक लगा दो। किसी ने घंटा लिंक नहीं लगाई ये तो तुम भी जानते हो कि सत्य क्या है तुम अपने बनियापे की कुटिल सोच के चलते कितने अमीर तो बन जाओगे लेकिन एक सच्चा दोस्त नहीं है तुम्हारे नसीब में .......
जय जय भड़ास

राजीव करूणानिधि! तुमने डा.रूपेश के ब्लाग आयुषवेद पर जाकर क्या टिप्पणी करी थी वो तो तुम भी जानते हो और डा.साहब भी वरना इस तरह से तुम्हें हगने के बाद लीपा पोती करने की जरूरत न पड़ती। तुमने डा.साहब को उनके ब्लाग पर जाकर जो टिप्पणी करी थी उसके बाद मैंने पोस्ट लिखी थी क्योंकि मुझे भी तुम जैसे फटीचर एक चाय पर खबर लिखने वाले चिरकुट पत्रकार के मुंह लगने में दिलचस्पी नहीं है पता नहीं एड्स वगैरह हो गया तो मैं तो परेशान हो जाउंगी तुममें तो इतना स्वीकारने का साहस नहीं है कि दम से कह सको कि हां डा.रूपेश को गाली दी क्या उखाड़ लेगा वो मेरा....। लेकिन इतना स्वीकारने के लिये आत्मबल चाहिये तुम्हारे जैसा कीड़ा सत्य को गलती करने के बाद न मानने के झूठे दम्भ का पोषण करने में ही पूरी जिंदगी गुजार देता है। डा.साहब को उनकी अच्छाई का प्रमाणपत्र तुम जैसे मुखौटाधारियों से नहीं चाहिये पहले तुम अपने गलीज पन को दूर कर लो फिर उनके ऊपर कोई टीका-टिप्पणी करने की औकात होगी तुम्हारी। अगर साहस है तो जो लिखा था उसे उन्ही शब्दों में फिर से लिखो फिर देखो कि भड़ासी होने से क्या-क्या फर्क पड़ता है अविनाश दास जैसे मठाधीश को भी ऐसी ही गलतफहमी थी। मैं ही क्या सारे भड़ासी इस बत को स्वीकारने में घबराते नहीं कि उनके भीतर भी बुराइयां है। अब जरा तुम अपनी औकात का ढोल पीटो कि मेरा क्या उखाड़ लोगे बेटा इधर तो कुछ है ही नहीं लेकिन अगर हम चाहें तो तुम्हारा जरूर उखाड़ देंगे। भाषा की पिपिहरी बजाने से तुम अच्छे हो गये तो बने रहो रजनीश झा,यशवंत सिंह, डा.रूपेश श्रीवास्तव को तो तुम अभी जानते हो क्योंकि तुमने अभी पत्रकारिता करते हुए ब्लागिंग का "सफर" शुरू करा है और तुम भड़ास के राष्ट्रीय प्रवक्ता मनीष राज को नहीं जानते वरना भड़ास का यू.आर.एल. भी टाइप करने से पहले हजार बार सोचते लेकिन फिर भी तुम्हारी हिम्मत न होती।(आपको ये अंश मेरी पोस्ट से हटाया मिलेगा और हो सकता है कि अक्षरजीवी नामक हिंदी ब्लाग चलाने वाले मनीषराज के ब्लाग की लिंक को भी हटा दिया गया हो) हम सब बेहूदे,कुंठित,गन्दे,बुरे,गलीज़,गालीबाज,दारूबाज,अभद्र,नीच और हर तरह से बुरे हैं हमसे मत उलझो। तुम्हारी औकात का मापन करके तुम्हें बताएंगे कि तुम कितने बड़े पत्रकार और ब्लागर हो। आओ दिखाओ अपना "अच्छा" व्यक्तित्व......। एक बात याद रखना बेटा कि गाली मत देना क्योंकि तुम जैसे लोग गाली नहीं देते और देते हैं तो स्वीकारने की दम नहीं रखते। तुम कितने सलीकेदार हो और तुम्हारे क्या संस्कार हैं वो तो तुमने डा.साहब के ब्लाग पर जाकर अपनी टिप्पणी से बताया है अब जरा मेरे जैसे नाली के कीड़े की औकात मैं तुम्हें बताती रहूंगी जब तक तुम्हें सही करके तुम्हारा मुखौटा उतार कर तुम्हारा असली चेहरा सामने नहीं ले आती। तुम अब अपनी शराफत की वैचारिकता का गोबर हगो ताकि पता चले कि तुम खसिया बैल हो या सांड........आओ.....आओ .....सींग मारो हमें हम तुम्हारी पिछाड़ी में डंडा ठोंक रहे हैं। नाम के आगे करुणानिधि लगाने का नाटक करते हो लेकिन एक बात साफगोई से मानते हो कि हमारे जैसे नाली के कीड़ॊ पर तुम्हे रहम नहीं आता क्योंकि तुम्हारी करुणा का भी नाटक अब समाप्त होने वाला है......शटर डाउन होने वाला है बेटा।

6 comments:

डा.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

बेचारे मनीषराज ने तो अवसादग्रस्त हो कर ब्लागिंग से ही शायद तौबा कर ली है क्योंकि उनके ब्लाग पर काफ़ी दिनों से कोई नयी पोस्ट नहीं आयी है
जय जय भड़ास

P.N. Subramanian said...

इनको इग्नोर कर दिया जाना चाहिए. शालीनता पर आँच आती है.

मुनव्वर सुल्ताना said...

सुब्बू सर,अगर्मच्छरों और कीड़े मकोड़ॊ को नजरअंदाज कर दिया जाए तो उनकी तादाद बढ़ती ही रहती है इसलिये मैं निजी तौर पर मानती हूं कि यदि घर,समाज,देश में शब्दों का फिनिट या कीटनाशक डाल देने से मैं अशालीन या क्रूर कहलाती हूं कि मैंने मच्छरों(दुष्ट विचारों) की हत्या कर दी तो सहर्ष स्वीकार है। आप आदरणीय हैं पर इनका सामना करना पड़ेगा वरना जो हालात हैं बदतर होते जाएंगे।

फ़रहीन नाज़ said...

गहरी बीमारी की कड़वी दवाई,सड़े हुए अंगो की सर्जरी में भला शालीन का अतिक्रमण कहां से हो जाता है। जो करा गया मैं उसमे प्रतिकार के लिये बुरी से बुरी गाली देना चाहती हूं। इतने ढेर सारे लोगों के विश्वास को एक आदमी अपने निजी लाभ के लिये इस्तेमाल कर रहा है तो मेरी गालियों की पात्रता है उस शख्स में...
जय जय भड़ास

रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) said...

दीदी,
मनीष भाई का अवसाद हम समझ सकते हैं, और आपका दर्द भी,
हममे आग है, और हमें ठंडक नही चाहिए. शिथिल होते पंखे वाले भड़ास पर पंखे ज्यादा हैं आग समाप्तप्राय है.
हमें हमारी आग से दुनिया की क्षद्मता को राख करना है, ऎसी छोटी मोटी हरकतें तो होती रहेंगी.
जय जय भड़ास

kunvarsameer said...

aisi baato par dhyan na dena hi accha hai...

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