शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर वर्ष मेले,
वतन पे मिटने वालों का यही बाकी निशाँ होगा
वतन पे मिटने वालों का यही बाकी निशाँ होगा
जब जब हम ये संदेश सुनते हैं विचारों के झंझावात में जरुर उलझते हैं। वतन के लिए शाहदत देनेवाले अपने परिवार को वतन के भरोसे छोर जाते हैं वहीँ हम कृतघ्न राष्ट्र देश के सपूतों के साथ कितना न्याय करते हैं, बलिदानी माँ बाप जिसने अपने बच्चे को देश पर कुर्बान किया को क्या दो रोटी, एक छत और तन ढकने को कपड़ा नही दे सकते? अगर नही दे सकते तो हमें हक नही है अपने पूर्वजों को याद करने का, अपने सपूतों को श्रद्धांजलि देने का, और इस माटी के बेटे के शवों को बेचने का..............................
शायद केसरी सिंह और हमारे ऐसे हजारो लाखो शहीद की आत्मा अपने देश के कृतघ्न होने पर खून के आंसू बहा रही होगी।
राजनेताओं को आजीवन सुरक्षा चाहिए, खिलाडी जीवन भर पेंशन पायें, फ्राड स्वतन्त्रता सेनानी को तमाम सुविधा मगर देश का बलिदानी, देश का श्रवण कुमार शहीद होने के बावजूद जन्मदाता माँ के लिए श्रवण ना बन सका, दोषी कौन?
गिरधारी लाल की माँ की ताकती आँखे कृतघ्न राष्ट्र से प्रश्न पूछती !
अब अखबार की ख़बर ...........................
कैथल, जिले सिंह 1971 युद्ध में पाक के दांत खट्टे करने वाले कैथल के गांव कलासर के जांबाज गिरधारी लाल देश पर कुर्बान हो गए, लेकिन आज उनकी मां केसरी देवी को रोटी के लिए जंग लड़नी पड़ रही है। केसरी देवी के पास अपने शहीद बेटे की निशानी के रूप में केवल उसका एक बरसाती कोट ही बचा है, उसके सहारे ही अपने बेटे को याद कर अपने जीवन की गाड़ी को धकेल रही है। बेटे के शहीद होने के बाद सरकार की ओर से उसे कुछ नहीं मिला। शहीद होने के बाद उनको तीन बार चार-चार सौ रुपये जरूर आए लेकिन शहीद के अन्य परिजनों ने उससे वह भी उससे छीन लिये और नौबत ऐसी आई की शहीद की मां ने दूसरे लोगों से मांग कर अपना पेट भरना पड़ा। उसने बताया कि जब उसका बेटा सेना में था कि अपने बेटे के पास केसरी देवी ने पत्र डाला और उसको बुला लिया तथा उसकी शादी कर दी। शादी को अभी एक सप्ताह ही हुआ था कि सेना से उसका तार आ गया कि पाकिस्तान के साथ युद्ध शुरू होने वाला है।
माँ का एक मात्र सहारा बेटे का सेना से मिला बरसाती कोट.....
उन्होंने बताया कि उसने उसको दो चार दिन रुकने के लिए कहा लेकिन उसने एक नहीं मानी क्योंकि दिल में देशसेवा की धुन सवार थी और यहां से रवाना हो गया। युद्ध समाप्त होने पर बेटे का पत्र आया कि मां हमने पाकिस्तान को हरा दिया और कुछ ही दिनों में वह वापस आ जाएगा, लेकिन अस्पताल में गंभीर रूप से घायल शहीद गिरधारी लाल ने यह सुना कि सीमा से शहीदों के शवों को
लेकर आना है तभी वह भी दूसरे सैनिकों के साथ चला गया और फिर दुश्मन ने उन पर वार कर दिया और वह वहीं शहीद हो गया। उसके शहीद बेटे का सारा सामान उसके परिवार के सदस्य छीनकर ले गए हैं। केवल उसके बेटे की सेना से मिला बरसाती कोट है। केसरी ने बताया कि वह कहता था कि मां
समय आने दे तुम्हारा बेटा तुम्हारा नाम रोशन करेगा और एक दिन वह शहीद हो गया। केसरी देवी ने बताया कि शहीद होने के बाद देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी शहीदों की मां व उसके परिजनों को हर तरह से सहायता करने का आश्वासन दिया लेकिन सरकार ने अब तक उसके बेटे की शहादत पर उसको कुछ नहीं दिया और आज भी वह अपने बेटे की शहादत पर नाज करती है। बेटे की बात करने पर वह फफक-फफक कर रो पड़ती है। दुख की बात यह भी है कि केसरी देवी पर ठंड से बचने के लिए रजाई तक नहीं है जिसके चलते उसे ठंड का भय भी सता रहा है। उसने बताया कि उसके तीन बेटे और हैं, लेकिन वह उनके पास रहना नहीं चाहती और अपने बेटे की याद में ही आखिरी पड़ाव पर सांस देना चाहती है। उन्होंने बताया कि उसकी आखिरी तमन्ना है कि उसके बेटे शहीद गिरधारी लाल के लिए कैथल या उसके गांव कलासर में कोई स्मारक बनाया जाए ताकि आने वाली पीढ़ी के लिए उसका रणबांकुरा याद बनकर रह जाए।
लेकर आना है तभी वह भी दूसरे सैनिकों के साथ चला गया और फिर दुश्मन ने उन पर वार कर दिया और वह वहीं शहीद हो गया। उसके शहीद बेटे का सारा सामान उसके परिवार के सदस्य छीनकर ले गए हैं। केवल उसके बेटे की सेना से मिला बरसाती कोट है। केसरी ने बताया कि वह कहता था कि मां
समय आने दे तुम्हारा बेटा तुम्हारा नाम रोशन करेगा और एक दिन वह शहीद हो गया। केसरी देवी ने बताया कि शहीद होने के बाद देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी शहीदों की मां व उसके परिजनों को हर तरह से सहायता करने का आश्वासन दिया लेकिन सरकार ने अब तक उसके बेटे की शहादत पर उसको कुछ नहीं दिया और आज भी वह अपने बेटे की शहादत पर नाज करती है। बेटे की बात करने पर वह फफक-फफक कर रो पड़ती है। दुख की बात यह भी है कि केसरी देवी पर ठंड से बचने के लिए रजाई तक नहीं है जिसके चलते उसे ठंड का भय भी सता रहा है। उसने बताया कि उसके तीन बेटे और हैं, लेकिन वह उनके पास रहना नहीं चाहती और अपने बेटे की याद में ही आखिरी पड़ाव पर सांस देना चाहती है। उन्होंने बताया कि उसकी आखिरी तमन्ना है कि उसके बेटे शहीद गिरधारी लाल के लिए कैथल या उसके गांव कलासर में कोई स्मारक बनाया जाए ताकि आने वाली पीढ़ी के लिए उसका रणबांकुरा याद बनकर रह जाए।
साभार:- दैनिक जागरण।
3 comments:
दुखद परन्तु सत्य...
सब बडी बडी बातें करते हैं मगर काम कोई नहीं आता. यही चलता रहा तो कौन देश के लिये कुर्बानी देने को तैयार होगा... राजनेता सिर्फ़ वोटों की दलाली करना जानते हैं उन्हें देश प्रेम नहीं है
दुखद सत्य ........किसी की शहादत को यूं नज़रअन्दाज़ करना अपराध की श्रेणी में आता है। अगर शहीदों को यूं ही विस्मृत करते रहेंगें और उनके परिजनों को इसी तरह रोज़र्मरा की जरूरतों के लिये मोहताज़ होना पडेगा तो कौन अपने बच्चों को इस राह पर जाने के लिये प्रेरित करेगा । सहायता राशि शुरू से ही अलग-अलग देनी चाहिये । शहीद की विधवा और बच्चों को अलग और मां-बाप को अलग। ताकि भविष्य में किसी एक पक्ष के साथ अन्याय ना हो। राजस्थान में कारगिल के शहीदों को इसी तरह से सहायता राशि का वितरण किया गया ताकि सभी को न्याय मिलें। सरकार के साथ-साथ स्वयं सेवी संस्थाऒं को भी आगे आना चाहिये जो यह सुनिश्चित कर सके कि सहायता राशि का समुचित विभाजन हुआ या नहीं यदि नहीं तो जिनको उनका अधिकार नहीं मिला है उन्हें स्वयंसेवी संस्था की तरफ से राहत राशि उपलब्ध करायी जानी चाहिये।
दुखद सत्य ........किसी की शहादत को यूं नज़रअन्दाज़ करना अपराध की श्रेणी में आता है। अगर शहीदों को यूं ही विस्मृत करते रहेंगें और उनके परिजनों को इसी तरह रोज़र्मरा की जरूरतों के लिये मोहताज़ होना पडेगा तो कौन अपने बच्चों को इस राह पर जाने के लिये प्रेरित करेगा । सहायता राशि शुरू से ही अलग-अलग देनी चाहिये । शहीद की विधवा और बच्चों को अलग और मां-बाप को अलग। ताकि भविष्य में किसी एक पक्ष के साथ अन्याय ना हो। राजस्थान में कारगिल के शहीदों को इसी तरह से सहायता राशि का वितरण किया गया ताकि सभी को न्याय मिलें। सरकार के साथ-साथ स्वयं सेवी संस्थाऒं को भी आगे आना चाहिये जो यह सुनिश्चित कर सके कि सहायता राशि का समुचित विभाजन हुआ या नहीं यदि नहीं तो जिनको उनका अधिकार नहीं मिला है उन्हें स्वयंसेवी संस्था की तरफ से राहत राशि उपलब्ध करायी जानी चाहिये।
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