क्या आप छत्रधर महतो को जानते हैं ?

क्या आप छत्रधर महतो को जानते हैं ?


शायद ये सवाल आज जवाब का मोहताज ना हो क्यूंकि भुवनेश्वर राजधानी एक्सप्रेस के अगवा होने के बाद अब सभी इस नाम से वाकिफ हो गए होंगे। मगर जिस के करण राजधानी को अगवा किया गया पुरे देश में अपरा तफरी मची रही उस नाम के साथ मीडिया ने इतने लेट से हो हल्ला हंगामा क्यूँ किया शायद इसका जवाब मीडिया भी ना दे।

हम सभी अपने देश से बहुत प्यार करते हैं और राष्ट्रीय अस्मिता, एकता और अखंडता में बाधक बननेवालों को देशद्रोही ही समझते हैं, मानते हैं की ऐसा करने वालों पर तत्काल राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चले मगर छोटे छ्होटे अपराध को भयावह रूप देकर विकराल ख़बर बनाने वाली मीडिया ने छत्रधर को ख़बर नही बनाया क्यूँ ?

आइये इसको तलाशते हैं।

क्या आप जानते हैं कि छत्रधर महतो को बंगाल पुलिस ने किस प्रकार गिरफ्तार किया ? नही तो नीचे के तस्वीर पर नजर डालिए।




शीर्षक ही बताता है कि छ्त्र्धर को धोखे से पकड़ा मगर कौन सा धोखा ? कैसा धोखा ?

स्टिंग ओपरेशन और कई सवाल खड़े हुए, औचित्य और गरिमा की बात भी खड़ी हुई मगर प्रश्न अनुत्तरित ही रहा।

बंगाल पुलिस ने पत्रकार के रूप में छ्त्रधर से सम्पर्की साधा और पत्रकारिता का लबादा ओढ़ कर गिरफ्तार कर लिया, अपने अधिकार के लिए चिल्ल पों करती मीडिया के लिए ये कतई ख़बर नही थी, और पुलिस के इस कार्य पर गिने चुने बंगाल पत्रकार और कुछ पत्रकारिता संगठनों के अलावे किसी ने चुन-चपड़ भी नही की।

जिस सूत्र के आधार पर पत्रकारिता चलता है, बड़े बड़े फन्ने खां पत्रकारों की भी पत्रकारिता इन्ही सूत्रों पर चलती है। जों यह सूत्र ना हो तो बड़े बड़े संपादक जो टेबल पत्रकारिता कर बहस का सदस्य बन बुद्धिजीवी बनने का स्वांग रच समाज को छलते हैं की पत्रकारिता भी धरी की धरी रह जाए। मगर पत्रकारिता के सूत्र का बेजा इस्तेमाल और पत्रकारिता चुप वस्तुतः दोगले चरित्र का प्रमाण है। लोग भूले नही होंगे जब छतीसगढ़ में विनायक सेन को गिरफ्तार किया गया था तो पत्रकारिता का हुजूम एक स्वर में राष्ट्रवादी हो गया था तो इस बार कहाँ गई आवाज?

सबके अपने अपने कार्यक्षेत्र हैं, पत्रकारिता के भी और पुलिस के भी। प्रशाशन और न्यायपालिका के भी मगर जिस तरह से पत्रकार बहुरूपिये होते जा रहे हैं, पुलिस इनके ही रुख को अख्तियार कर इसी समूह का हिस्सा बन रही है आने वाले दिनों में अपराधी और आतंकी पुलिस या पत्रकार, जज या पदाधिकारी का रूप ले आम लोगों के बीच आतंक का दायरा बढाये।

प्रश्न अनुत्तरित है ........

4 comments:

Kusum Thakur said...

इस जानकारी के लिए और पत्रकारों का सही रूप दिखने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।

वन्दना said...

kya kahun is bare mein...........sab jagah lagta hai jaise fareb aur chhal hi chhal hai.

Prashant Kr Gunjan said...

Now we know....
46 minutes ago

Suman said...

nice

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