डा.रूपेश श्रीवास्तव ने कहा था सबसे बड़ी उपलब्धि कुछ है वो है यशवंत दादा से मुलाकात.....






घबराए हुए, बौखलाए हुए से निर्णयों से खुद ही परेशान हैं हमारे यशवंत दादा......। पता नहीं बाजार की भीड़ में हमारा भड़ासी भाई कहां खो गया है, उलझा हुआ है धनिया की जगह घोड़े की लीद के पैकेट बना कर बेचने के चक्कर में हर दिन....। कितने अच्छॆ और सुख के दिन थे उनके जब वे आराम से शाम को थोड़े से सुरूर में आकर डा.रूपेश श्रीवास्तव को फोन करते थे और सुख-दुःख बांटते थे, गाने सुनाते थे, रोते थे, हंसते थे.......। दूसरे दिन डा.साहब हम सब को बताते थे कि यशवंत दादा का फोन आया था और कितनी मजेदार बाते करते हैं कितने भावुक हैं वगैरह...वगैरह। व्यापारी होना किधर बुरा है लेकिन लोगों की भावनाओं को दुकान में सजा देना और हर भावना को रुपये में तब्दील करने की सोच ने पता नहीं कहां से हमारे प्यारे भाई के दिल में घर कर लिया है और भड़ास बन गया भड़ास4मीडिया...... लेकिन यकीन है हम सब को कि एक दिन हमारे भाई को जैसे आज सिर्फ़ दिखावे के तौर पर गलती का एहसास हो रहा है वो सच में होगा और वो हम सबके लिये रोएंगे और हम सब सारे वैचारिक मतभेद भूल कर उन्हें गले लगा लेंगे लेकिन क्या प्यार धागा तोड़ कर जो वो जोड़ना चाहेंगे उसमें गांठ नहीं रह जाएगी। डा.रूपेश श्रीवास्तव हमेशा कहते हैं कि यदि सामाजिक जीवन में उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि कुछ है तो वो है यशवंत दादा से मुलाकात.........। लेकिन अब सब बदल गया है भड़ास का दर्शन विवादित हो गया है। कहीं ऐसा तो नहीं कि डा.रूपेश श्रीवास्तव ही गलत आदमी से मिले रहे हों असली चेहरा अब सामने आया है पता नही क्या सच है और किसका असली चेहरा क्या है.... मेरा असली चेहरा तो मुझे उस आइने में देखने को मिला जिसे आप सब डा.रूपेश श्रीवास्तव के रूप में जानते हैं। और कितनी गलतियां करके हम सबका दिल दुखाओगे.......? आयुषवेद के नाम का आधार याद है न?? या ये भी भुला दिया?????????



जय जय भड़ास

4 comments:

अजय मोहन said...

दीदी ये आप क्या लिख रही हैं ये आदमी एक नंबर का धूर्त है अपनी मीठी-मीथी बातों से डा.साहब को बेवकूफ़ बनाता रहा अब जब असली चेहरा सामने आया तो आप सब भौचक्के रह गये लेकिन मुझे तो पहले से ही इस बात का अनुमान था~
जय जय भड़ास

भूमिका रूपेश said...

सच तो ये है कि यशवंत जी ने जिस तरह के लोगों से मिल कर जिंदगी के प्रति अपनी आइडियोलाजी बनाई होगी दोष उनका है वे मिले होंगे मीठे ठगों से,धूर्तों से, धोखेबाजों से .... तो वे भी वैसे ही बन गये..... इसमें उनका दोष नहीं कि उन्होंने मनीषराज को इस्तेमाल करा या डा.रूपेश को भड़ास के admin rights का झुनझुना एक दो दिन थमा कर हटा दिया ये कह कर कि आपने गलती से ये हटा दिया या मनीषराज ने प्रधानजी.कॉम का पासवर्ड गड़बड़ कर दिया....ये सब टोटके उन्होंने उन लोगों से सीखे होंगे जिनसे जीवन के मानदंड बनाए...वे भी सच को जी सकेंगे कभी तो ऐसा लगता है जब भरपूर धन देख लेंगे......
जय जय भड़ास

फ़रहीन नाज़ said...

मैंने इनको अपने घर पर आपके हाथ से बनाया खाना खाते देखा है,मुझे ये आदमी एकदम कांइया लगा जो मीठा बोल कर आपको आसानी से मूर्ख बना देता है अगर आप जरा से भी सेंटीमेंटल हैं तो गये इसके चक्कर में~
जय जय भड़ास

MANISH RAJ said...

भूमिका रुपेश जी,
अंतरजाल के विराट सागर में तैरते उतारते महीनों बाद आज जब भडास पर आया तो बहुत कुछ बदला हुआ नजर आया ,पिछले दिनों की याद ताजा हो गयी की कैसे गेहूं और मक्का बेच कर मेरे जैसा देहाती ब्लोगिंग कर रहा था. कुछ सपने और आशा को लेकर डाक्टर रुपेश जैसे नायक और यशवंत दादा जैसे लोगों के साथ जिन्दगी को उस मुकाम पर ले जाउंगा जहाँ जाना मेरे नसीब में नही था. मगर दिल्ली की यात्रा ने कुछ अच्छे तो कुछ ऐसे जख्म दिए जिसके सदमे से अब तक उबार नही पाया हूँ. जहाँ तक प्रधान जी डॉट कॉम के पासवर्ड के गूम होने की बात है तो अपनी इकलौती बेटी की कसम ......सच्चाई यशवंत सिंह से बेहतर कौन जानता होगा.
खैर इस ब्लोगिंग की दुनिया में आज फ़िर आ गया......शायद फाल्गुनी की जन्मपत्री का लोभ या डाक्टर साहब से कुछ अन्तिम अपेक्षा...... देखते हैं आगे ...
धन्यवाद आपका की कमसे कम मुझे याद तो किया वरना आज कौन किसे याद रखता है?

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