पत्रकारिता के बुजुर्गवार ने हत्यारा और भ्रष्टाचारी को गाँधी कहा।

एस एन विनोद वरिष्ट पत्रकार हैं। पूर्व में दक्षिणी बिहार और अब झारखण्ड के लोकप्रिय हिन्दी दैनिक प्रभात ख़बर के संस्थापक सम्पादक रहे हैं, आज उम्र के इस मुकाम पर अपनी बीते दिनों की पत्रकारिता को याद कर ( जब कंप्युटर पत्रकारों के लिए अछूत हुआ करता था) नए सक्षम और काबिल पौध के बीच पुराने संबंधों के बहाने पैठ करने की कोशिश में हैं। विनोद जी का ब्लॉग चीरफार यानि की किसका चीर फार ये ब्लॉग मोडरेटर को नही पता या फ़िर लोकप्रियता का ये फंडा भी आजमा लो।

प्रभात ख़बर का पुराना पाठक होने के कारण और इंडियन नेशन के वरिष्ठ पत्रकार गजेन्द्र नारायण चौधरी के सन्निकट होने के कारण विनोद जी से अनभिग्य नही रहा, कारण साफ़ की आर्यावर्त, इंडियन नेशन और प्रभात ख़बर हमारे यहाँ प्रारंभिक दिनों से आते रहे हैं। पिछले दिनों भड़ास फॉर मीडिया ने विनोद जी को अपना हीरो बनाया तो पढ़ कर और देख कर मिश्रित विचार ही आए, कारण स्पष्ट है की पत्रकारिता को नजदीक से जानने वाले जानते हैं की सफेदी का ये चादर किन किन लोगों से मैला हुआ है।

भड़ास फॉर मीडिया के हीरो, क्या पत्रकारिता के भी ????

चलिए मैं मुद्दे से बहुत भटक चुका अब और नही सो बात गुरु जी की यानी की एस एन विनोद की माने तो आधुनिकभारत के गांधी की ! माना की विनोद जी ने बहुतेरे साल पत्रकारिता को दिए हैं ( बिहार के मिथिला में लोग जानते हैं की ये नौकरी की आखिरी जगह है) सालों गुरु जी के साथ पत्रकारिता की, झारखंड के जंगलों में गुरु जी के साथ ख़ाक छानी है मगर क्या ये काफ़ी है गुरु जी को गांधी बनाने के लिए और पत्रकारिता के नायक को बताने की

लोकतंत्र के चीरहरणकर्ता के गांधी!

कहने को बहुत होगा की झारखंड के जंगलों में गुरु जी के नाम से लाशों की कब्रगाह है, अनपढ़ आदिवाशियों को शिक्षा देने के बजाय जिस तरह से गुरु जी ने अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा पर हमारे वनांचल के लोगों का मानसिक शोषण कर राजनैतिक पैठ बनाई, किसी से छिपी नही और इसके लिए किसी विनोद की जरुरत नही। आदिवासियों के शव पर सत्ता हासिल करना से लेकर सांसदों को बेच कर लोकतंत्र को गिरवी रखने वाला हमारे पत्रकार की माने तो गांधी है, बड़ी आप्त सचिव के द्वारा अनजाने में हुए भांडे फोड़ के बाद अपने बड़ी आप्त सचिव शशि नाथ झा की ह्त्या और उसके बाद उसमे आरोपी होने के साथ हवालात में (गांधी जी भी हवालात में रहे थे शायद इस लिए समानता देखी होगी) वैसे अब तक कौन राजनेता हवालात में रहा है जो गुरु जी रहते सो कानून की बखिया उघेड़ते शशि नाथ झा के शव पर सत्ता पाने वाले गांधी और लोगों के साथ विश्वास घात कर सत्ता सुख भोगने के लिए सारे तिकड़म। अगर गुरु जी गांधी हैं तो आगे सम्भव है की विनोद जी गोडसे को भी गांधी कहेंगे और कसाव भी भावी गांधी होगा।

राष्ट्रीयता के नजरिये से देखें तो सम्बंधित पत्रकार पर देशद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए जो पत्रकार का चोगा ओढ़ कर लोकतंत्र का पैरोकार बनने की कोशिश में है और हमारे राष्ट्रपिता की तुलना अपराधी से कर रहा हैनि:संदेह आज जरुरत है लोकतंत्र के इस टूटे हुए पाये को सही करने के लिए सरकार का सेंसर टी वी मीडिया के साथ साथ मीडिया के तमाम रूपों पर लगाया जाय, राष्ट्रहित सर्वोपरि ना की पत्रकारिता का चीरहरण करने वाले इन देशद्रोहियों की बेलगाम जुबान

क्या ये हमारे पत्रकार हैं और ये हमारी पत्रकारिता तो लानत है हमारे लोकतंत्र के इस नासूर पर, और इस नासूर को अपना हीरो बताने वालों पर ! अगर सरकार इन बिगडे सांढो पर नकेल लगा रही है तो नि:संदेह आम जनता को सरकार का साथ देना चाहिए क्यूँकी हमें ना ही ऐसे पत्रकार चाहिए और ना ही ऐसी पत्रकारिता।

6 comments:

anuradha srivastav said...

विनोद जी ने चाटुकारिता की सारी हदें पार कर दी इससे अधिक क्या कहा जा सकता। पत्रकारिता के अपने दायित्व का तथा इस पेशे में अपनी वरिष्ठता का ज़रा भी ख्याल रखते तो शायद ऐसा लेख कभी नहीं लिखते।

शोभा said...

rajneesh ji,
aapne sahi kaha. gandhi ki tulna aaj kisi bhi neta se nahin ki ja sakti. jis insaan ne sara jeevan desh aur desh wasiyon ki seva main laga diya uska aisa uphas? nirbhik lekh ke liye badhayi.

संजय तिवारी said...

आपकी इस बात से सहमत हूं कि एसएन विनोद ने शिबू को दूसरा गांधी कहना सही नहीं है. लेकिन इस बात से असहमति है कि आदिवासी अनपढ़ हैं तो उन्हें असभ्य मान लिया जाए.

सही प्वाईंट पकड़ा. गुरूजी ने आदिवासियों के साथ भी धोखा ही किया है इसलिए उनकोदूसरा गांधी तो दूर दूसरा नेहरू भी नहीं कहा जा सकता.

रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) said...

तिवारी जी,
मैंने आदिवासियों के अशिक्षित होने की बात कही है असभ्य नही कहा और आदिवासी नेता होने के कारण शिबू का कर्तव्य था की हमारे वनांचल के लोगों में शिक्षा लाते ना की उनकी अशिक्षा पर पत्रकारों (विनोद जी) के सहायता से सत्ता सुख का साधन जुटाते , रही बात असभ्यता की तो नि:संदेह ये शब्द एस एन विनोद पर सटीक बैठती है.

muskurahat said...

Bahut Barhia Rajneesh jee...ehina aaina dikhaail kariyau...dhanyawad

रंजनी कुमार झा (Ranjani Kumar Jha) said...

बेहतरीन लिखा भाई,
कलम का तीखापन एहसास करता है की कलम वाले दलाली की किस हद तक जा सकते हैं.
बधाई

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