पंखों वाली भड़ास पर वे एक दूसरे की सहलाने के लिये इकट्ठा हो गये हैं। कल तक यही विस्फोट चलाने वाले संजय तिवारी यशवंत दादा की नजर में ढक्कन किस्म के आदमी थे लेकिन आज उपयोगी जान पड़े तो चलो इनके ही साथ खड़े हो लो जब तक मामला गरम है भड़ास की आत्मा चोरी होने का..... :-)
मुखौटा लगा कर संत बनने का इन्हें तो अभ्यास है यही तो इनके शो केस का मुख्य आइटम है जिससे ए अब तक लोगों को भरमाते आये हैं। तिवारी जी भी विस्फोट को लेकर अगर व्यवसायिक हो चले हैं तो सावधान रहें हम भड़ासियों से कि हम विस्फोट की भी आत्मा चुरा लेंगे फिर कुछ मत कहना। हम कानून-कानून खेल लेंगे क्योंकि हमें कोई काम धंधा नहीं है। जो हो वो बने रहिये बनिये मत बनिए अगर बने और लोगों के प्यार और भावनाओं को बेचने की कोशिश करी तो फिर..............
जय जय भड़ास
2 comments:
डाक्टर साहब,
दोनों मुखौटेबाज हैं, नाटक की कला में माहिर. गवई और देहाती का लबादा लगा कर लोगों को भरमाने की कला में शातिर. विस्फोट का ब्लॉग बंद हुआ था तो ये संजय जी इनके लिए चूतिये से ज्यादा नही थे और जब बात फायदे की पहुँची तो लाला जी की तरह किसी से मरवा लो, किसी को बाप बना लो.
वैसे इन्हें तरजीह और तवज्जो देने की जरुरत नही है, कारन आप देख ही रहे हैं अपने पेट के लिए रात के बारह बजे तक लिट्टी चोखा, और बात बहुत सारी.
सब क्षद्मता है, ढोंग और पाखण्ड.
जय जय भड़ास
चलो दोनो एक तो होकर सामने आये कि देखो दुनिया वालों हम एक जैसे ही हैं जैसा यशवंत वैसे ही संजय तो भाई अब जो हाल भड़ास का हुआ है वही विस्फोट का होगा मुझे पक्का यकीन है
जय जय भड़ास
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