मोनोलॉग ड्रामा और मज़हर शेख,वैभव देशमुख बनाम शाहरुख खान

घर में भांजा दोस्त से मांग कर एक पाइरेटेड डी.वी.डी. ले आता है, समय तो है नहीं कि बैठ कर कोई फिल्म पूरी देख सकें तो कभी नाश्ता करते, कभी व्यायाम करते जितना सीन सामने आ गया उतना ही देख कर आनंदित हो लेते हैं। हाल ही में रिलीज हुई शाहरुख खान की फिल्म " रब ने बना दी जोड़ी" का एक सीन देखा जिसमें शाहरुख एक प्लास्टिक के पुतले से बात कर रहे हैं जिसमें लेखक ने एक निहायत ही बचकाना(बल्कि बेवकूफ़ाना) आधार लेकर कहानी को विस्तारित करा है कि एक सीधे से आदमी की परिस्थिति वश एक आधुनिक विचारों की लड़की से शादी हो जाती है और फिर वो आदमी उस आधुनिक विचारों की लड़की का दिल जीतने के लिये अपनी मूंछे काट कर और हेयर स्टाइल बदल कर एक आधुनिक लड़का बन कर अपनी पत्नी से मिलता है, दोस्ती....प्यार...गाने... बेवकूफ़ी भरे सीन और इसी तरह के तमाम मसाले लिये फिल्म प्रेम के आदर्शवाद के तड़के के साथ समाप्त हो जाती होगी(मैं पूरी देख न सका अगर समय होता भी तो झेल न पाता)। धन्य है निर्देशक-लेखक और साथ में दर्शक जो मात्र मूंछ और बालों के बदलने से पत्नी द्वारा पति को न पहचाने जाने की कहानी को अब तक सहन(पसंद) कर रहे हैं। पुतले के साथ शाहरुख का वार्तालाप देखा, तीन मिनट के आसपास रहा होगा(पता नहीं कितने रीटेक्स हुए होंगे इस सीन में...... या न भी हुए हों)। यहीं मुंबई में चल रहे उर्दू पुस्तक मेले में उर्दू अदब के प्रसिद्ध नाटककार श्री इक़बाल नियाज़ी द्वारा लिखे ’एकपात्रीय एकल चारित्रिक’ नाटक "ये किसका लहू बहा....." देखने का सौभाग्य मिला और सौभाग्य रहा अभिनय के

सच्चे नगीनों से मिलने का। इस नाटक में वैभव देशमुख, मज़हर शेख और मोहिनी जैसे स्टेज अभिनेताओं से मिला। मज़हर शेख ने मनसुख भाई पटेल की आत्मा का अभिनय करा और डामर लगा कर छतों/सड़कों के छेद बंद करने वाले का अभिनय करा वैभव देशमुख ने........ यकीन मानिये कि बीस से तीस मिनट तक लगातार चलने वाले इनके द्वारा करे गये इन वाक्याभिनयों को देख कर मुझे शाहरुख खान इन लोगों के आगे एकदम चिरकुट लगे। काश हो पाता कि शाहरुख और वैभव या मज़हर एक मंच पर आमने सामने हो पाते तो दर्शकों को भी समझ मे आता कि अभिनय क्या है और निर्देशन के आयाम क्या होते हैं। हम तो बस इतना ही कहेंगे कि जियो मज़हर भाई जियो वैभव और जियो मोहिनी.... ऐसे ही रंग बरसाओ अभिनय के..........।
जय जय भड़ास

2 comments:

मनोज द्विवेदी said...

bilkul sahi kaha aapne guruji. theater ke kalakar kahi jyada achchhe abhineta hain. maine bhi DELHI ke MANDI HOUSE me kai aise pratibhawan kalakar dekhen hain....lekin baat phir ghum phirkar wahi aa jati hai---JO DIKHTA HAI WO BIKATA HAI..

रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) said...

मनोज भाई ने सही कहा, जो दिखता है वो बिकता है, हीरा जौहरी के इन्तजार में ही रह जाता है. वैसे डाक्टर साहब हम भडासी अपने मंच के माध्यम से इन सभी भाइयों के साथ रहेंगे और भड़ास का मंच इनके लिए सार्थक पहल में सहभागिता करेगा.
जय जय भड़ास

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