हिन्दी ठेकेदारों मुझ गंवार को मारपीट कर मानक हिंदी सिखाओ

भाई भड़ासियों जब से हिंद युग्म ने राजेन्द्र यादव और मसिजीवी जैसे लोगों के मंच पर बुला कर भाषा का ठेका दिया है मेरे पेट में मरोड उठ रही है बार बार कोशिश करने पर भी कुछ निकलता नहीं है और जो निकलता है वह निर्धारित मानक पर खरा नहीं होता। हिन्दी भाषा के विकास, मानकीकरण आदि का ठेका आजकल इन लोगों के पास है ये ठेका इन खड़ी व मानक बोली बोलने व लिखने वालों को किसने दिया ये तो ईश्वर ही जाने जिसने गले में वोकल कॉर्ड लगाया है जो सिर्फ़ मानक हिंदी नहीं बल्कि देसज(देशज) स्वरूप को भी उच्चारित करता है और भला हो उस दिमाग के साथ कान का जो इन्हें सुन समझ सकता है। ठेकेदारों से प्रार्थना है कि वे देसी, नीच, घटिया, तुच्छ, पातकी, क्षुद्र, हलकट(ये शायद मानक हिंदी का श्ब्द न हो), भाषाई दरिद्री प्राणी को कसकर जुतियाएं क्योंकि इनके जूतों की महान धूल से ही हम जैसे गंवार कीचड़ और गोबर से जुड़े लोग पवित्र हो कर मानक हिंदी सीख जाएं। जो सिगाराश्रित, बर्गरसेवी, पिज्जाहारी हंस उड़ाने वाले कबूतरों के परवाज़ का मानकी करण करने पर उतारू हैं उन्हें बगुले और कौव्वे कहां भाएंगे तो लीजिये लिट्टी, बाटी, चोखा, गोबर के कंडों, मिट्टी का चूल्हाछाप एक कविता आपके समक्ष है राजेन्द्र यादव मानक व मौलिक हिंदी में गालियां दें व कोसें ऐसा इस देसी कविता के रचियता का दुराग्रह है..............एक बात का यकीन है कि अगर गले से नीचे उतर गयी हजम हो जाएगी,पेट खराब न होगा क्योंकि कविता सुपाच्य है....... जिसे जमें तो चख कर देखो भाई अच्छी लगे तो पूरी निगल लेना वरना उल्टी कर देना।



हिंदी गुणगान करौ..हिंदी गुणगान करौ



यस - नो के रोग सै भासा बीमार भई,



बोली की गोली सूं जाए पहलवान करौ



हिंदी गुणगान करौ..हिंदी गुणगान करौ



लेखन के खेतन में क-ख-ग जोत बोय



एक-एक विधा कूं सौ-सौ खलिहान करौ



हिंदी गुणगान करौ..हिंदी गुणगान करौ



रीत रह्यौ कोस जो हिंदी कौ मीत मोए



रचना के गहना गढ़ इए धनवान करौ



हिंदी गुणगान करौ..हिंदी गुणगान करौ



रहन-सहन हाव-भाव बोल चाल लील लियौ



पच्छिम कौ कलचर जौ आज हमै रह्यौ चर



लरकन औ बच्चन को तनिक को सावधान करौ



हिंदी गुणगान करौ..हिंदी गुणगान करौ



ए-बी-सी भासा के भूसा को झटक फटक



अंगरेजी कागद कौ मरघट मसान करौ



देवन की लिपी लिखौ देसज अभिमान करौ



हिंदी गुणगान करौ..हिंदी गुणगान करौ



अम्मा और बाबूजी कहन में लजाए रहे



मम्मी और पापा जू पुरखन को भूल गए



दादन-परदादन को नैक तो सम्मान करौ



हिंदी गुणगान करौ..हिंदी गुणगान करौ



(स्वरचित है भाई कहीं से मारी नहीं है वैसे भड़ासी बुरे और चोर किस्म के हैं अगर ऐसा कर भी दें तो दोषमुक्त रहते हैं)

जय जय भड़ास

5 comments:

भूमिका रूपेश said...

इन्हें मानक आकार के जूते का रसास्वादन कराया जाए तब ही इन स्याही पीकर जिंदा रहने वालों का पेट भरेगा। बूढ़ी हो चुकी मां को ब्यूटी पार्लर ले जा कर उसका भी मानकीकरण करवा दें कि स्त्री के स्तन और कमर का मानक ३६-२६-३६ है लेकिन ये बुढ़िया मानकों पर खरी नहीं है इस लिये स्त्री नहीं है। कमीने हैं इन्हें तो मंच पर ही कस कर लतिया देना चाहिये था...
जय जय भड़ास

मनोज द्विवेदी said...

guruji aapbhi itani badhiya kavita karte hain. abhi tak hamein bharama ke rakha tha.. bahut umda baate likhi hai aapne ise samjhane ke liye pavkilo ka bheja chahiye...

फ़रहीन नाज़ said...

हिंदी का ठेका इनके हाथ है तभी तो कम्प्यूटिंग में यूनिकोड आने में इतना समय लग गया,इच्छाशक्ति शून्य है इन बूढ़े बगुलों की...इन्हें बस एवार्ड्स चाहिये और एक दूसरे को गरियाते हैं कि फलनवा "बुकरचोर" है ढिकनवा "मैगसेसे चोर" है।
इन्हें जब तक भड़ासी मिल कर रोज बिना नागा लतियाएंगे नहीं तब तक इनमें सुधार की गुंजाइश नहीं है वैसे ये साले हैं बड़ी मोटी चमड़ी के..गैंडे की प्रजाति के साहित्यिक प्राणी......
जय जय भड़ास

ज़ैनब शेख said...

वाह जनाब अब तक आप हमें बुद्धू बनाते रहे कि आप को कविता की बिलकुल समझ नहीं है लेकिन आप तो रुस्तम हैं भाई... एकदम सोंधी मिट्टी की सुगंध से भरी है आपकी कविता....
जय जय भड़ास

रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) said...

जय हो गुरुदेव की,
शानदार भड़ास तुकबंदी पेली है, किसी की हिम्मत ना होगी कहने की कि ये सुश्री मारी हुई है भले ही अपने मार ली हो ;-) वैसे आपको बातों ये तथाकथित हिन्दी के ठेकेदार और मठाधीश बहुरूपिये कि तरह हिन्दी का चोला पहनकर गवई बन लोगों को चुतिया बनाने में कोई कसर नही छोरते. बड़े घीसे क्षद्मरुपी जीव हैं ये.
जय जय भड़ास

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