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मधु के ग्राहक बहुत मिले ,
क्रय कर ली अभिलाषाएं।
अब मोल चुका कर रोती
कुचली अतृप्त आशाएं ॥
अव्यक्त कथा कुछ ऐसी,
आँचल में सोई रहती।
हसने की अभिलाषा में,
आंसू में भीगी रहती ॥
मेरे दृगमबू सुमनों पर,
तुहिन कणों से बिखरे है
स्नेहिल सपनो के रंग में,
पोषित होकर संवरे है ॥
-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ''राही''
1 comment:
डॉ.राही की राह हमें तो जम रही है,सुमन भाई को धन्यवाद।
जय जय भड़ास
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