हमारे देश में कई बार ऐसा होता है कि किसी अत्यंत गम्भीर मामले पर केस संवैधानिक प्रक्रिया में हो और कानून का जानकार वकील उस प्रक्रिया की टांग तोड़ देता है ये कह कर कि ऐसा कोई कानून नहीं है। मामला अक्सर जब जुडीशियरी और भ्रष्टाचार से जुड़ा हो तो ये बातें देखने में आती हैं। केन्द्रीय सूचना आयोग के निर्णय के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय द्वारा दिल्ली के उच्च न्यायालय में अपील करने की एक अभूतपूर्व घटना हमारे देश में हुई। सबसे बड़ा मजाक तो न्याय प्रणाली में ये हुआ कि उच्चतम न्यायालय को उच्च न्यायालय में रिरियाते-घिघियाते हुए न्याय की अपील करनी पड़े यानि कि हो गयी पूरे जुडीशियल सिस्टम में गंगा उल्टी। भारत के मुख्य न्यायाधीश श्री के.जी.बालाक्रष्णन ने कहा कि न्यायाधीश अपनी संपत्ति का ब्योरा देने के लिये बाध्य नहीं है। उन्होंने कहा था कि ऐसा कोई कानून नहीं है जो न्यायाधीशों पर उनकी संपत्ति घोषित करने के लिये बाध्यकारी हो लेकिन इसके बावजूद हमारे न्यायाधीश अपनी संपत्ति का ब्योरा मुख्य न्यायाधीश के समक्ष पेश कर रहे हैं। ये बातें इन्होंने तब कहीं जब कि केन्द्रीय सूचना आयोग ने अदालत के सूचना अधिकारी से दस दिन के अंदर संपत्ति की जानकारी देने को कहा।
अरे यार! ये कब तक चलाओगे? पूरी दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान हमारे देश का है और देश में संविधान लागू हुये जमाना बीत गया और अब तक ये कहा जाता है कि ऐसा कोई कानून नहीं है....... हद कर दी भाई, अगर कानून नहीं है तो संविधान की समीक्षा कराई जाए और तत्कालीन परिस्थितियों के आधार पर उसमें आवश्यक बातें जोड़ी जाएं साथ ही अनावश्यक बातें हटायी भी जाएं। संविधान कोई धर्मपुस्तक तो है नहीं कि कोई बदलाव नहीं करना है। समीक्षा करो, इस बात से मत डरो कि कहीं लिबलिबे से हो चुके लचीलेपन के कारण तुम्हें जो उपलब्धियां है वो खत्म हो जाएंगी अगर ऐसा न करा तो तुम ही खत्म हो जाओगे। अंग्रेजों की सुविधा के लिये बने डेढ़ सौ साल पुराने जर्जर संविधान को ओवरहालिंग की आवश्यकता है। जस्टिस आनंद सिंह इसी सुर को बुलंद करे हुए हैं और भड़ास इस बदलाव के संग है।
जय जय भड़ास
4 comments:
डॉ साहब ये तो हमारे देश की न्याय व्ययवस्था की बात है , यहा तो कोई किसी पुलिस के हवालदार की सम्पति की जाच नहीं कर सकता , हवालदार ही क्यों , इस देश मे किसी भी विभाग का चपरासी भी इतनी शानो शौकत से रहता है की आप देखते रह जाये
सही कहा रूपेश जी, इन कानून वालों ने ही कानून की वाट लगा रखी है। इस बात को समझने का प्रयास ही नही करना चाहते कि पारदर्शिता ही विकास सृजित करेगी। अगर संपत्ति घोषित करने के लिए देश का कोई भी आम नागरिक बाध्य है, तो नेता, कानून वाले और वो हर शख्स बाध्यकारी होने चाहिए जो इस देश में रहता है। ...जो हिंदुस्तान का नागरिक है।
यही कानून वाले कहते हैं, समानता के अधिकार की बात करो, लेकिन जब खुद की काली कमाई या काली करतूतों के खुलने की बारी आती है, इनकी संपत्ति का ब्योरा मांगा जाता है, तो संविधान में प्रोविजन नहीं होने का हवाला दे देते हैं।
लोकतंत्र है भाई, लोकतांत्रिक व्यवस्था और पारदर्शिता का साथ तो देना ही होगा। अगर फिर भी संपत्ति घोषित नहीं की, तो मुझ जैसा कोई भाई आएगा, जो रोटी खाए बिना रह जाए, लेकिन खोजी पत्रकारिता बिना नहीं रह सकता और एक-एक की संपत्ति की पड़ताल ब्लॉग पर चला देगा।
मुहिम चलाइए हम भी आपके साथ हैं।
गुरुवर,
मुद्दा तो सटीक उठाया है और इसी तरह के मुद्दे के लिए तो भड़ास है, कुछ हो या ना हो भड़ास अपनी मुहीम जारी रखेगा और इन जुगाली करने वालों के लिए मोर्चा खोल देगा, कुछ भी हो हमारे देश के लिए पुनः हमें ही तो संघर्ष करना है. अंग्रेजियत के दलालों और सड़े गले कानून के नुमाइंदों से देश को फिर से आजाद जो कराना है. हम सब साथ हैं, देखिये कारवां बनता चला जाएगा.
जय जय भड़ास
mari man ki bat hai.
Post a Comment