आगे अगर जैन हिन्सक है तो है और अहिसंक है तो है. किसी
के लिखने से या कहने से स्थिति व इतिहास नही बदलता है विषय का अध्ययन
धरातल को साथ रखने से ही होता है न कि उपर उपर बात करने से
कैसी भोली बात करते हो? नकारात्मक बात किसी के कहने से
पैदा नही होती है अमीत- उसको इतिहास की हकीकते गवाही देती है
जीण (जीन) का एक अर्थ काटन कपङे से है दुसरा "जिन" का अर्थ
हल्की किस्म की आतमा से है जो आदमी व जानवरो के शरीर मे प्रकट हो जाती
है. तीसरा "जिन" (जिन्स) का अर्थ है बारीक अंश जो शरीर का निर्माण करने
से महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है तथा आपके दिमाग मे चौथा "जिन" भी हो
सकता है तो वो भी बताईये? तथा यह भी बताइये कि इन मे से कौन से "जिन" से
तालुकात रखते है आप
ये "जि" धातु क्या है?
आप स्वंय "जिन" है या जिन के अनुयाई है? आप खुद कि
अक्षरावली व भाषा बना कर लोगो के दिमाग मे चढाना चाहते है, ये तो सरासर
गलत साबित हो रहा है. "जि" माने धातु , "जि" माने जीतना , किसको जीतना
चाहते है जैन? मन, वाणी व काया को कौन जीतेगा ? कैसे जीतेगा ? ये वाक्य ही
अमीत गलत लिखा गया है
वाणी, मन व काया का कुदरती नियम से उपयोग करने पर इन्सान
को दिव्य ञान की प्राप्ति होती है ब्रम्ह प्रकट होता है तथा इन्सान के
शरीर मे नभीपना प्रकट होता है, वह पृरूष भुले हुए शक्शो को तारने का काम
करता है और इसिलिये औरौ को तारना यानी अवतार के नाम से जाना जाता है वह
पुरूष ईश्वरीय शक्तिमान कहलाता है यह काम प्रथम वाणी का सदउपयोग करने से,
और आगे चलकर कुदरत के साधारण नियम पर चलने व पालन करने से होता
है..................................... आप कह रहे है "जिन" बन जाता है
यह तो आप अपने खुद कि अक्षरावली व भाषा का उपयोग कर रहे है, यानी खुद की
मनमानी कर रहे है
"जिन भगवान का धरम" हमने पहली बार सुना है भगवान का भी
कोई धरम होता है या भगवान तो अपने आप मे परमसत्य व दिव्यशक्ति है यहा पर
कुछ उलझन आपको हो गयी है आपका वाक्य ही गलत है वैसे कृपया "भगवान" का
अर्थ समझा दिजिये?
(आपके "जिन भगवान" के नाम व तस्वीर भी भेजिये)
अमीत--- धरम कही से निकलता नही है वह पृथ्वी पर विदमान है
अजर है अमर है धरम बनाया नही जाता- धरम सत्य का दुसरा नाम है "सत्यमेव
जयते" ना कि "जैनम जयति शासनय" धरम का अर्थ जिवों की रक्षा करना जिवों
के साथ हो रहे अन्याय को रोकना मातृभुमि की रक्षा करना है
अमीत--- बनिया, वाणीया, वणीक, महाजन, सोदागर, सेठ व
साहुकार ये सभी अक्षर जैन वंश के पारंपरीक अक्षर है इसिलिये आपको पूछा
गया है अब आप इनका अर्थनही बताना चाहते तो कोई बात नही हम बता देते है
"जैन अक्षर" अभी कुछ वर्षो कि परंपरा है इससे पहले पुरे हिन्दुस्तान में
जैन वंश को बणीया वंश के नाम से जानते थे और आज भी पूरा ग्रामीण भारत व
बङे से बङा शहर जैन वंश को बणीयो के नाम से ही संबोधित करते है शायद आप
यह कहेगे कि हम बनिये नही है
बनिया अक्षर का असली अर्थ बिगङी औलाद से है जो अर्थ
ङिक्सनरी से नही मिलता है सौदागर का अर्थ होता है जो पुरूष माँ के घर मे
चोरी करता है वह सौदागर के नाम से जाना जाता है महाजन का अर्थ होता है
माँ के साथ बेटा, पति की तरह वर्ताव करके औलाद पैदा करे- उस औलाद को
महाजन वंश कहाँ गया है अमीत..... याद रहे ये सभी टाईटल भी उन्ही अकुदरती
इन्सानो द्वारा खुद को दिये गये है (न कि किसी मानव वंश द्वारा) और खुद
की ओलख जगत के मानव जाती मे उन्होने खुद ने दी है "कि हम लोग कौनसे वंश
के है" अतः इसमे हमे बुरा कहने की जरुरत नही है आज आप प्यार से खुद को
जैन बोलते है न? और जब संसार के मानव जाती को भेद समझ आ जाएगा कि "जैन"
अक्षर का अर्थ तो "जिन" होता है तब जैन कही दुसरे अक्षर की आङ लेकर
"प्रवासी" बनकर विश्व मे घुमना शुरु करेगे कि वे तो प्रवासी है जैन नही
है, जैन कोई और जाती है हम लोगो का जैन जाती से कोई तालुकात नही
है......................... लेकिन ऐसी लुपा चुपी चल नही पा रही ईन्सान
भुल सकता है कुदरत नही!
हाँ अमीत...... यह खरा सत्य है लेकिन ऐसा करते करते एक
दिन तो जरूर पकङे जाएँगे? सत्य हमेशा सत्य रहता है जो बिल्कुल सरल है
किसी भी किमत पर नही बदलता
धरम के नाम पर लाखो ढकोसले चल पडे, हिन्दुस्तान का सविधान
सब धर्मो को समान अधिकार देता है, उसमे राक्षस धर्म को भी अधिकार मिल गया
परंतु कौनसा ढकोसला धर्म है और कौनसा ढकोसला पाप है उसकि कसौटि वक्त ने
अभी कि नही है किसी ने कुछ रूकावट नही डाली इसका अर्थ वह धरम नही बन
सकता कसाई खुदका धरम समझकर जीव काटता है वैश्या धरम समझकर शरीर बेचती
है चोर धरम समझकर चोरी करता है ये सब अपवाद है ये धरम नही बन सकते
अपराधी कब कहेगा कि वह अपराधी है
अमीत..... आपका उत्तर बिल्कुल गलत है, परिस्थितियाँ अलग
परिभाषित करती है यह बंदरो का खेल लाख वर्षोसे शुरू हुआ है
"अहिँसा" हम आपसे पुछते है कि दुनियाँ में वक्त वक्त पर
बहुत महापुरूष पैदा हुए है सबने ईश्वर को सर्वोपरी माना व ईश्वर के नियम
पर चलने कीहिदायत दी किसी ने भी इस अक्षर को अलग नही किया, यह अक्षर दया,
ईश्वर के नाम के बाद न्याय के साथ साथ जुडा है "जैन" धर्म को इसे खासकर
अलग करने की जरूरत क्यो पडी इसमे बडा षडयन्र नजर आ रहा है हिंसा तो आज
तक छुडाई नही? पर कहने के लिये कि वे अहिंसा के अनुयाई है........... समझ
मे नही आता कि आप..........
"जैन भगवान" का अनुयाई है या "जिन" का अनुयाई है या
"अहिंसा" का अनुयाई है? जैन व धरम परस्पर विरोधि अक्षरहै जिसे आप एक करके
अपनी खुद की अक्षरावली का निर्माण कर रहे है संसार के मानवजाती ने आजतक
किसी भी वंश को चोर नही कहाँ है भले वो राक्षसवंश ही क्यो न रहा हो-
फिरभी जैन वंश अपने आपको साहुकार वंश कहलाने का दावा कर रहे है यह भी एक
विशेषता लग रही है ऐसा लगता है कि कुछ खास बात ऐसा करने के पिछे छुपाई
हुई है जैन वंश अपने आपको सेंठो व साहुकार के नाम से हिन्दुस्तान में
मशहुर करते है नगर सेठो के नाम से मशहुर कर रहे है इसका अर्थ भी यह
निकलता है कि उनके पास पूरे हिन्दुस्तान का धन इकट्ठा किया हुआ है जिसे
वे सरकार के खजाने में देना नही चाहते है और सेठ व साहुकार की पदवी भी
छोडना नही चाहते है वे चाहते है कि दुनियाँ के लोगो को पुरा खाली कर
दीया जाए लेकिन उनके धन पर कोई हाथ नही लगावे वे दुनियाँ के सबसे धनी लोग
बन कर राज करना चाहते है ऐसा भी इरादा उनका लगता है इसिलिये वे "जैनम
जयति शासनय" का दावा करते है यानी पृथ्वी पर जैनो का राज्य हो
अमीत...........
"जैन उदगम" जगह भारत है और आजकी तालुकात में विश्व में
सबसे ज्यादा पाप हिन्दुस्तान (भारत) मे हो रहा है आपका अहिँसा परमोधरम
किस कोने में छुपा हुआ है जरा उसे पकड कर चौराहे पर लाएँगे क्या? हिंसा
का अर्थ है जिवों को दुखी करना, विभिन्न तरिको से दुखी करना और अगर आप यह
कहे की हम हिंसा रोकने का काम करते है, तब तो कुछ बात बनती है..........
खाली कहने पुर्ता अहिंसा के अर्थ का कोई मायना नही है हिन्दुस्तान में
कसाई जिवो को मार कर पाप करते है तथा देवताओं के नाम पर हिन्दु मुसलमान
भी जिव मार कर पाप करते है तथा कत्लकारखानों मे जिव मारकर पाप किया जा
रहा है तथा मनुष्य बिमारी की आड में विभिन्न पाप के तरीको से मारा जा रहा
है तथा युद्ध मे मनुष्य मारा जा रहा है लेकिन इस पाप को आप मन स्थिती को
कैसे संभोदित करते है यह तो हकिकत है मन की स्थिती की बात नही है क्या
अप्रत्यक्ष रूप से जैन इसमें सम्मिलित है? जैनो को यहाँ पर क्यो साथ मे
लिया गया है उसका कारण यह है कि आप अहिँसा को अपनाने का बाना पहने है
इसका असली अर्थ यह है कि आपको असली हिंसा का असली अर्थ अच्छी तरह से
मालुम है तभी तो आप उसे छोडकर अहिंसा के पथ पर चलने की कोशिश कर रहे है
फिर भी कहने के लिये आप उस हिँसा को छुपा रहे है जिससे आप बच कर चलना
चाहते है फिर भी आप इसे मन स्थिती की बात कहकर टालते है यहाँ पर आप बहुत
बडा रहस्य छुपायें रखें है उसे आपको खोलना पडेगा- जिस सिद्धांत के आधार
पर जैन धरम की रचना की गयी है उसे आप खुद ही मनो स्थिती कह रहे है यह तो
सरासर ढोंगी भाषा है
अमीत---- जैन अक्षर हमारा भाई अक्षर नहो सकता है किसी भी युग में नही
जय नकलंक देव
जय जय भडास
7 comments:
अनूप मंडल के मानसिक रोगी दोस्तों ( माफ़ करना मैंने आप को दोस्त कहा क्योकि आप सभी लोग किसी भी जैन को अपना भाई न मानाने की कसम खा कर बैठे है ) आप के द्वारा लिखे गए को पढने के बाद पता चालक की क्यों इस समाज मे बुद्धिमान लोग कह गए है की दुश्मनी किसी बुद्धिमान के साथ कर लो पर दोस्ती कभी किसी मुर्ख या पागल से मत करना / मैंने आप से दोस्ती करने की गलती की है , पर मै अब उस गलती को सुधारता हु , ओर अब से आप को दोस्त , मित्र , के संबोधन से नहीं संबोधित करुगा / आप की मन स्थिति बिलकुल उस मानसिक विभ्रम के रोगी की तरह है जो अपने मन स्थल से उठने वाले अजीबोगरीब विचारो से परेशान रहता है , आप जिस किसी भी इश्वर को मानते है वो आप को सध्बुधि दे साथ मे इतना सामर्थ्य भी दे की आप इस देश के सभी धर्मो का आदर कर सके न की खुद अपने आप को सर्वश्रेस्ट मान ले / मै तो समझा था की आप विचारविमर्श करने के लिए आये है परन्तु आप जैसे मूढ़मति मंडल को सिर्फ अनसुना कर के भोकने ( सज्जन किर्पया इस शब्द पर ध्यान ना दे )के लिए छोड़ देना चाहए /
अहिंसा को पर्योग करने के बाद राष्ट्र पिता महत्मा घंडी ने भारत को आजाद कराया / आपका जैसा व्यक्ति या मंडल अब राष्ट्र पिता शम्भोधन मे सारे पिता का जिन (जीन ) ढूढ़ लेगा ये मुझे आशा है ............:)
जैनम जयती शासनम
जैनम जयती शासनम
जैनम जयती शासनम
अमित जी ये कोन मादर्चोद हे
अरे जैनियो यह वोह सख्स है जो तुम सब जैनियो की पोल खुल्ले आम खोलता है यदि दम है तो आमने सामने बैठकर उनसे बात करो।
पेज 223 क्युकि ससार के लोगो को तो तुम्हारे पापकी खबर नहीं सो कोई तो यह कहने लगते हे कि जो बेइमान होगे जीन होने चलाया होगा ओर कोइ यह कहता हे कि हमको खबर नही जब मे कहता हु कि राक्षसी बेध ओर गर्ह चाला के टीपना कीसने चलाये हे ओर राध लहु की कुन्डीया बनाइ हे जीस की सोभा ससार मे कीसने चलाइ हे ओर मरी ओर काल ओर जानवरो ओर मनुष देह को रोग कीसने चलाये हे ओर सभो को बीमार तो करते हो जादु से ओर सुझा देतें हो देवतो का सो देवतो के उपर भी रावण की तरह से पाप करना शरू कर दीया हे ओर कच्ची उमर मे आदमी ओर अनबोले मरते हे ओर टीपनो मे छे महीने पहीले सुनाते हे सो यह कीसने चलाये हे ओर मै तो तुम्हारे राक्षसी पाप मे अच्छी तरह से केद हू सो मे वाकीफ हू
क्युकि जाल तुम्हारे कुल ने चलाया हे यह जाल तुम राजा बादशाह ओर सब ससार के आगे मेरे जीतेजी छोडा दो सो तुम भी उभरो ओर जो कि तुमने पाप अपने कुल मे ससार के गारत कराने को चलाया हे सो तुम्हारी तुम भुगतोगे मै तो तुम्हारे जाल को ससार मे प्रधट करता हू सो ससार को भी अपने बच्चे प्यारे लगते हे ओर ससार भी अपने बच्चे को गारत कराना अच्छा नही समझते हे परन्तु तुम बनीये तो यह समझते हो कि चोदा कूट मे ओर चोदा भान मे ससार को गारत करके अपना राज करगे कि जब ससार के आदमी थोड़े ह जावेगे ओर हम बनीयो के कुल के आदमी जीयादा रह जावेगे जब रावण की तरह से चार कूट मे राज करेगे सो रावण भी चार कूट मे राज करने नही पाया ओर बीच मे ही मारा गया सो मै तो सनीश्रर की तरह परमेश्वर के वास्ते ओर ससार के बच्चे उभरने के वास्ते तुमको राक्षसी पाप करने से मना करता हू कि पाप का करना छोडदो सो तुम मेरे जीतेजी छोडदो तो तुम भी उभरो तो बनीये बेइमान मुझपर गुस्सा होकर गालीया देने लग जाते हे
ओर कहते हे कि राजा बादशाह से कह ओर पुकार सो इनकी यह बाते तो मै इनहोके मेलो मे जा 2 के ओर समझा 2 के सोदागर महाजनान को कहता हू कि तुम यह पाप छोडदो तो तुम भी उभरो ओर पुस्तक भी सोदागर महाजनान को बताता हू ओर पढवाता हू
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