राजू भइया ने मुझ जैसे चिरकुट को प्रिय रुपेश भइया लिख कर सम्बोधित करा है तब से मेरे पैर जमीन पर नहीं हैं। वल्दियत की बात के साथ मेरे "लाला" खून और ख़ुद के "ठाकुर" खून के तापमान का जिक्र करा है| वल्तियत तो डी.एन.ए.की जांच ही सही बता पाती है अगर माताजी की बात पर भरोसा न हो तो। रक्त की गर्मी का वर्गीकरण बाभन , ठाकुर , बनिया , कायथ , मेहतर ,भंगी, चमार ,नाऊ, हिंदू , मुसलमान , मरद , जनाना , जनखा आदि आदि इत्यादि के आधार पर करके राजू भइया अपनी फिरंगी सोच के थर्मामीटर की प्रामाणिक शुद्धता जता रहें हैं। इनके ब्लॉग पर कमेन्ट माडरेशन की नीति है की अगर नारी की मारी तो उस पर परदा लटका देतें हैं और अगर मेरी मारी तो उस पर सर्च लाईट लगाए रहेंगे । अब ख़ुद को मर्द तो लिख नहीं सकता क्योंकि मर्दानगी का सबूत तो उस गडिया के पास है जो सुरेश चिपलूनकर का मुखौटा लगा कर राजू भइया को मेरे बारे में समझा रहा हैं और भइया है कि समझे पड़े हैं टिप्पणी सजाये हुए । इसलिए अब सब को मेरा रेट पता चल ही गया है कि बीस रूपए है तो कोई ठरकी मोलभाव नहीं करेगा कि यार तुम्हारे गाँव का दलाल तुम्हारा रेट बीस रुपया लिख कर टाँगे है और तुम हो कि ज्यादा मांग रहे हो कपडे उतारने के ......
राजू भइया आप जिस अपनी टिप्पणी को भड़ास पर छापने की बात कह रहे हैं तो ख़ुद ही कष्ट कर लीजिये पधार तो चुके ही हैं हम गंदे,बुरे,गलीज़ लोगों के बीच में ..... सीधे ई मेल कर दीजिये ताकि आपका महान नाम बदनाम न हो मात्र भड़ास नाम आयेगा। अपने ब्लॉग पर कुछ अलग टिप्पणी और हमारे ब्लॉग पर कुछ और ..... यही तो है नीयत का दुरंगा और फिरंगी टोडीपना।
कोई शराफत का दिखावा नहीं है कोई पाखण्ड नहीं है। भड़ासी स्वभाव से "मुहनोचवा" नहीं हैं लेकिन मुखौटा नोचना हमारा मिशन है ताकि कुकर्मियों का असली राक्षसी चेहरा सामने लाया जा सके।
जय जय भड़ास
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