डेढ़ सौ साल पुराने संविधान में बस पुनर्विचार के लिये दफ़ा 377 ही बची है???

बड़ी खुशी के साथ वो लोग बौद्धिकता की बातें करने लगे जिन्हें कि गुदामैथुन और मुखमैथुन आदि करने के शौक ने पागल बना रखा है। साले अपने बिलों में से निकल कर डेढ़ सौ साल पुराने कानून पर पुनर्विचार करने के लिये सामने आ रहे हैं कि समलैंगिक संबंधों को कानूनन जायज़ कर दिया जाए। बस संविधान में और कुछ पुनर्विचार या समीक्षा के लायक नहीं है मुंबई के राजठाकरे से लेकर बाल ठाकरे तक के गुर्गे हगने मूतने तक की बातों पर सड़क पर उतर कर नंगनाच करने लगते थे लेकिन इस तरह की परेडों को रोकने के लिये कोई आगे नहीं आता, जबकि वेलेन्टाइन डे पर जितने भी समाज के ठेकेदार हैं लोगों को सताने पीटने निकल पड़ते हैं तालिबानियों के हिंदुस्तानी संस्करण बन कर। इस पूरे मामले में मीडिया का खास तौर से प्रिंट मीडिया का सबका बहुत ही विशेष बनियापे भरा रवैया रहा है। कल मत रोना भड़ासियों जब तुम्हारा बेटा किसी सुरेश या रमेश से शादी कर ले या बेटी किसी बबली या मोना से।
जय जय भड़ास

1 comment:

मनोज द्विवेदी said...

Guruji Sach kahu to sabse jyada bhrastachar judicary me ho raha hai..apka kam police station me bhale na ho lekin court me paisa dekar ho jayega..inko bas yahi ek mudda mila tha aur timing dekhiye ki idhar petrol 4 rs badh gaye lekin gay wala mudda uthakar ise daba diya gaya...ye sab gov ki sochi samjhi rajniti ka hissa hai

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