कोई अपना बन के मिले। (यादें लल्लन जी की...)

लल्लन जी की यादें उनके शब्दों से आज भी जीवित है, अपने अग्रज को उन्ही के शब्दों को याद करते हुए श्रद्धांजलि। अभियंता का होना लल्लन जी के कलम प्रेम पर कभी बाधित नही हुआ और अपनी लेखनी को वो कागज़ पर उकेड़ते रहे, उन्ही की रचना कुसुम जी के माध्यम से एक बार फ़िर लोगों के बीच।



सब सपना बन के मिले, कोई अपना बन के मिले ।


सुख जब साथी होता है,
लाख सहारे मिलते हैं,
फूलों की फुलवारी में,
फूल हमेशा खिलते हैं,
विरानो के आँगन में ,
बरसों में एक फूल खिले।


सब सपना बनके मिले कोई अपना बन के मिले।


सुख की उजली राहों पर,
हर राही चल सकता है,
घर की चारदीवारी में,
हर दीपक जल सकता है,
गम की तेज़ हवाओं में,
कोई कोई दीप जले।


सब सपना बन के मिले कोई अपना बन के मिले।


आबादी में चैन कहाँ,
ऐ दिल चल तनहाई में,
शायद मोती हासिल हो,
सागर की गहराई में,
अपना कोई मीत नहीं,
धरती पर आकाश तले।
सब सपना बन के मिले, कोई अपना बन के मिले।


गीतकार : लल्लन प्रसाद ठाकुर

7 comments:

निर्मला कपिला said...

लल्ल्न जी की अछ्हाई और मानवता का अन्दाज़ा उनकी इस सुन्दर कविता से ही लगाया जा सकता है ऐसे सुन्दर अभ्व्यक्ति जरूर किसी महान शख्सीयत की ही हो सकती है भगवान उनकी आत्मा को शान्ति दे आभार्

Tripat "Prerna" said...

achi abhivyatki hai!

Vijay Kumar Sappatti said...

rajneesh ji

is link ke liye dhanywad..

bahut sundar kavita hai ,,ache bhaav ban padhe hai .. aur abhivyakiti ko shabdo ke praan mile hue hai ..

meri dil se badhai sweekar kariyenga

dhanywad..

aapka
vijay

p.s. meri nayi kavita " tera chale Jaana ' padhiyenga pls..

dhanywad.

वन्दना said...

lajawaab..............adbhut.

kya khoob rachna hai.......nishabd hun.

रंजनी कुमार झा (Ranjani Kumar Jha) said...

सुन्दर रचना ,
ठाकुर जी के श्रधांजलि और आपका आभार.

अग्नि बाण said...

लल्लन जी कि सुन्दर कृति,
आपको और कुसुम जी के ढेरों बधाई,
प्रस्तुति जारी रखिये.

रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) said...

प्रतिक्रया के लिए सभी साथी का आभार !

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