मैं इस छद्मलोकतांत्रिक देश का एक आम आदमी हूं जिसकी उम्र देश की आजादी की उम्र से पंद्रह साल ज्यादा है। मैंने जब होश सम्हाला था तब देश में गांधी,जिन्ना,और तमाम उग्रविचारधारा के नेता येन-केन-प्रकारेण देश से अंग्रेजों को विदा करने के लिये कवायद कर रहे थे। अंग्रेज गए, उन्होंने इस देश में अपने राजकाज को सुचारू रूप से चलाने के लिये लिखित संविधान बनाया अपनी सुविधानुसार, देश की आजादी हुई और हमने उसी संविधान को अपना लिया। पता है आपको कि आजाद हिंद फौज के सिपाहियों को वापस सेना में नहीं लिया गया और उन्हें सेना का बागी ही माना गया। विरोधाभासों के बीच मैं बड़ा होता गया, पढ़ाई-लिखाई, नौकरी, शादी, बच्चे..... जिम्मेदारियां...बुढा़पा और अब भड़ास..........। इतना कुछ भरा है भीतर कि उबल कर अगर बाहर न आए तो शायद मैं मर जाऊं। नेता का सीधा सा अर्थ है वो व्यक्ति जो आम जनता की नुमाइंदगी उच्चतम स्तर तक कर सके न कि आम जनता को उस तक पहुंचने के लिये जूते का पुल बनाना पड़े। मैं किसी को मतदान नहीं करना चाहता ताकि दिल में सुकून रहे कि जो सत्यानाश हो रहा है उसके लिये मैं तो जिम्मेदार नहीं हूं। डा.रूपेश की कही बात से पूरी तरह सहमत हूं कि आम जनता बाबर और राम के मामलों पर एकजुट होकर मस्जिद गिरा देती है, साबरमती एक्सप्रेस जला देती है जिसमें कई लोग जिंदा जल जाते हैं फिर गोधरा में बदला लिया जाता है......। क्या इन विघटनकारी घटनाओं के पुरोधाओं में से ही जो लोग नामांकन देकर मेरे क्षेत्र से प्रत्याशी हैं तो जबरदस्ती है क्या कि मैं मतदान करूं ही? नहीं करता जाओ क्या सजा दोगे? अगर इनको वोट देना है तो मैं उसके बदले में इनसे रुपए की मांग करूंगा क्या सजा दोगे?मेरी मतदान की योग्यता रद्द करने का कानून बनाओ तो मानूं कि संविधान में जो संशोधन हुए हैं वो आम आदमी के हित में थे। लोकतंत्र के अनुकूल ही नहीं है भारत की जनता...फ़ार्मूला फ़ेल हो चुका है सुप्रीम कोर्ट खुद ही अपना मजाक बना रहा है.... बस करो भाई! वोट न करने के लिये मुझे कोसा जाना बंद कर दीजिये।
जय जय भड़ास
1 comment:
Matdaan mat keejiye jabaran...bilkul nahee..mere apne Dada-Daadee swatantrata senani the...donone ek pooree sadee dekhi..mumbai chhod graam sewa karne ganvme aa base...lekin antak, ek wyaktiko nahee,lekin parti ko maddenazar rakh matdaan kiya aur phir jobhi chun aate, nidartaase unkaa barabar peechha kiya...aur wo jeete hue numainde, jaisebhi the, aur kayee baar yebhi jante the,ki, daadaajine unhen vote nahee diye honge...unke aage aankh uthake bolneki himmat nahee kee..ye shakti hai lokshaaheeki aur yahi shakti hai sachhayeeki..
Aapko gar koyi vote dene layaq nahee lagta, to "protest vote" darj karayen..wo suvidha ab uplabdh hai...kamse kam numaindonko khabar to ho,ki, jantaa unke baareme kya sochtee hai...
mai kya sazaa de sakti hun? De sakti hun? Maine to ek naagrik ke haisiyatse apnee kaifiyat rakhee...kya ham aanewali naslko apni zimmedaaree nibhanese khudko wanchit rakhna nahee sikha rahe? Maine kaha na,ki, maine ek ladkeko "protest vote" kaa adhikaar nibhate hue apnee aankhonse dekha...aur usne us haq ke liye apne 3 ghante lagaye...aur wo ek behad wyast naukareepeshaa hai...aap kamse apna virodh darj karayen, ye baat to mai zaroor kahungee...warna ham nahee to kaun hamare deshkaa khevenhaar hai? Ham sab haath dho lete hain aur koyi aur hamaree naiyyaka khevanhaar bane ye ummeed rakhte hain...aisa kyon? Apnaa, apna, kirdaar to nibhahee sakte hain...kya is baatkee bhee aap khilaafat karenge?
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